ICAR-नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर बनाना (ICAR-NRCB) ने केले की खेती को बदलने वाली एक अनोखी तकनीक विकसित की है. यह नई तकनीक बायोरिएक्टर आधारित है, जिससे केला लगाने के लिए उच्च गुणवत्ता वाले पौधे बड़ी मात्रा में और कम लागत पर तैयार किए जा सकते हैं.
इस तकनीक में एम्ब्रायोजेनिक सेल सस्पेंशन (ECS) और एक खास तरह का टेम्परेरी इमर्शन बायोरिएक्टर (TIB) इस्तेमाल होता है. यह दुनिया का पहला ऐसा बायोरिएक्टर सिस्टम है, जिससे सोमैटिक एम्ब्रियो यानी बनावटी बीज बनाए जाते हैं. कुछ ही बूंदों की सेल कल्चर से लाखों स्वस्थ पौधे उगाए जा सकते हैं.
इस सिस्टम की मदद से ग्रैंड नाइन, रसथाली, पोवन, नेन्द्रन, नेय पोवन और रेड बनाना जैसे लोकप्रिय किस्मों के पौधों को बड़ी संख्या में तैयार किया गया. खास बात यह है कि ये पौधे अपने मूल पौधों जैसे ही हैं- न तो उनके विकास में फर्क है और न ही उपज में.
यह तकनीक तिश्यू कल्चर विधि को और भी सस्ता और असरदार बना देती है. इससे केले की खेती में अच्छी गुणवत्ता वाले पौधों का उपयोग बढ़ेगा और उत्पादन भी अधिक होगा. अभी केवल 20-30% केले की खेती में ही तिश्यू कल्चर पौधे उपयोग किए जाते हैं. नई तकनीक से यह प्रतिशत बढ़ सकता है.
भारत दुनिया का सबसे बड़ा केला उत्पादक देश है, हर साल लगभग 3.8 करोड़ मीट्रिक टन केले की पैदावार होती है. इस तकनीक से भारत की कृषि को नई दिशा मिलेगी और देश को ग्लोबल लेवल पर केले के उत्पादन में और मजबूती मिलेगी.
ICAR-NRCB की यह तकनीक सिर्फ केले तक सीमित नहीं है. इससे अन्य फसलें, सजावटी पौधे और जंगलों में लगने वाले पौधे भी बड़ी मात्रा में उगाए जा सकते हैं. वैज्ञानिक अब इस तकनीक को व्यावसायिक स्तर पर ले जाने के लिए बड़े बायोरिएक्टर और क्रायोप्रिज़र्वेशन (फ्रीज करके स्टोर करना) जैसी विधियों पर भी काम कर रहे हैं.
ICAR-NRCB की यह खोज भारत को सस्टेनेबल एग्रीकल्चर यानी टिकाऊ खेती की दिशा में एक मजबूत कदम देती है. जैसे-जैसे दुनिया में खाने की मांग बढ़ रही है, वैसे-वैसे ऐसी तकनीकों की ज़रूरत भी बढ़ती जा रही है. यह इनोवेशन न केवल किसानों की आमदनी बढ़ाएगा, बल्कि खेती को भी अधिक सुरक्षित और प्रभावी बनाएगा.
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