जल संकट से जूझ रहे राज्यों में खेती की एक्वापोनिक्स तकनीक बहुत काम की साबित हो सकती है. क्योंकि पारंपरिक खेती और ड्रिप के मुकाबले इस तकनीक में 90 फीसदी तक पानी की बचत होती है. खेती के लिए सबसे ज्यादा भू-जल का दोहन होता है. ऐसे में किसानों के माध्यम से पानी बचाने की मुहिम में यह तकनीक मील का पत्थर साबित हो सकती है. दरअसल, लोगों की बढ़ती जरूरतों और घटते संसाधनों के बीच खेती में नए-नए तरीके अपनाए जा रहे हैं. इसी में से एक है एक्वापोनिक्स. इस तकनीक में मछली और सब्जियों की इंटीग्रेटेड खेती की जाती है. खेती के लिए खाद की व्यवस्था मछलियों के वेस्ट से हो जाती है. इसके जरिए अब सब्जियां मिट्टी में ही नहीं बल्कि 'पानी' में भी उग सकती हैं, वह भी मछलियों वाले पानी में.
कृषि वैज्ञानिक शिंदे धीरज और चंद्रकांत दाते ने दावा किया है कि पानी से उगने वाली इन सब्जियों में मिट्टी में उगने वाली सब्जियों की तुलना में अधिक पोषक तत्व होते हैं. इस तकनीक से सब्जी उत्पादन में पानी की मात्रा भी कम लगती है. जल संकट के दौर में खेती के लिए यह तकनीक बहुत कारगर साबित हो सकती है.
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एक्वापोनिक्स में कम जगह में ज्यादा उत्पादन होता है. पानी की खपत की बात करें तो पारंपरिक खेती और ड्रिप के मुकाबले इस तकनीक में 95 फीसदी तक पानी की बचत होती है. इस तकनीक में सिर्फ जैविक खेती होती है और फसल में रोग नहीं होते हैं. हालांकि इसमें पूंजी की जरूरत ज्यादा होती है. इसके साथ ही तकनीक का भी पूरा ध्यान रखना चाहिए.
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक इस तकनीक में पानी के टैंक या छोटे तालाब बनाए जाते हैं, जिनमें मछलियों को रखा जाता है. मछलियों के मल से पानी में अमोनिया की मात्रा बढ़ जाती है. इस पानी को पौधों के टैंक में डाल दिया जाता है. टैंक में मिट्टी की जगह प्राकृतिक फिल्टर बनाया गया होता है, जहां पौधे पानी से आवश्यक पोषक तत्व सोख लेते हैं. फिर पानी को वापस मछलियों के टैंक में डाल दिया जाता है. इस प्रकार यह प्रक्रिया दोहराई जाती है और पानी की बर्बादी नहीं होती.
एक्वापोनिक्स तकनीक का उपयोग मरुस्थल, लवणीय, रेतीली, बर्फीली किसी भी प्रकार की जमीन पर किया जा सकता है. इससे देश में लाखों हेक्टेयर बंजर जमीन का उपयोग किया जा सकता है. एक्वापोनिक्स में साधारण खेती के मुकाबले 90 प्रतिशत कम पानी लगता है. मिट्टी में उगने वाली फसल के मुकाबले इस तकनीक से उपज तीन गुना तेजी से बढ़ती है. प्रति वर्ग फीट में अधिक पैदावार होती है. मिट्टी के मुकाबले इस तकनीक से फसल में 40 प्रतिशत तक अधिक पोषक तत्व होते हैं और ये पूरी तरह जैविक होते हैं. इसके अलावा मछलियों का उपयोग भी आय को बढ़ाने के लिए किया जा सकता है.
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