उत्तर भारत में 15 दिसंबर से 15 फरवरी तक बहुत अधिक ठंड रहती है. इस समय किसान किसी भी फसल की खेती करने से बचते हैं क्योंकि करीब दो महीने तक रात का तापमान 8 डिग्री सेल्सियस से नीचे रहता है. इस वजह से बीज अंकुरित नहीं होते हैं. इसलिए किसान ग्रीष्मकालीन सब्जी उत्पादन के लिए फरवरी के दूसरे पखवाड़े से सब्जी नर्सरी या सब्जी बुवाई करते हैं .ये बोई गई सब्जी की फसल अप्रैल-मई के महीने में एक साथ तैयार हो जाती है. नतीजतन, बाजार में एक साथ सब्जी की़ उपज आने से किसानों को अच्छा मुनाफा नहीं मिलता है. लेकिन किसान अगर बेहद कारगर और कम लागत की लो- पॉलीटनल तकनीक से इस ठंड के मौसम में खेती करें तो आधा एकड़ जमीन से 40 से 50 दिन की खेती से लाखों की कमाई कर सकते हैं. या अगेती फसल तैयार कर समय से पहले बाजार में बेचकर अधिक मुनाफा कमा सकते हैं.
भारतीय सब्जी अनुसंधान परिषद, वाराणसी के वेजिटेबल साइंस के प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ. सूर्य नाथ चौरसिया ने कहा है कि अधिक ठंड में टमाटर, मिर्च, प्याज, खीरा, लौकी, करेला, तरबूज, खरबूज, चिरचिरा और ककड़ी सहित कई सब्जियों को जनवरी के महीने में लो-टनल पॉलीहाउस में नर्सरी पौध तैयार करके अगेती उपज ले सकते हैं. इस विधि में बीजों का अंकुरण शत-प्रतिशत होता है और अंकुरण के बाद पौधे ठीक से विकसित होते हैं. उन्होंने कहा है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि लो-टनल पॉलीटनल के अंदर का तापमान बीजों के अंकुरण और पौधों की वृद्धि के लिए आदर्श होता है. पौध तैयार करने में कम समय लगता है क्योंकि बीज जल्दी जम जाता है और पौधे ठीक से बढ़ते हैं.
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जब पौधों को लो-टनल पॉलीहाउस तकनीक से उगाया जाता है तो कीटों और बीमारियों का प्रकोप भी अपेक्षाकृत कम होता है. इस प्रकार, किसान स्वस्थ नर्सरी की बुनियाद पर स्वस्थ और क्वालिटी वाली बंपर उपज का आधार रख सकते हैं. उन्होंने कहा है कि अगर कोई किसान बिजनेस करना चाहता है तो वह अपने क्षेत्र के अनुसार सब्जी की पौध तैयार कर और बेचकर अच्छा मुनाफा कमा सकता है.
लो-टनल पॉलीहाउस 2 मिमी की एंटी-जंग रॉड (जिसे आसानी से घुमाया जाता है) या बांस की खपचियों पर बनाया जाता है. इस पर ढकने के लिए 20 से 30 माइक्रॉन की मोटी और दो मीटर चौड़ी सफेद पारदर्शी पॉलीथीन होती है जो बाजार में आसानी से मिल जाती है. इस तकनीक में सबसे पहले नर्सरी बेड बनाया जाता है और बांस के टुकड़े या लोहे की छड़ों को 2-3 फीट ऊंची अर्धचंद्राकार संरचना बनाकर पारदर्शी पॉलीथीन से ढक दिया जाता है.
खेत में 1 मीटर चौड़ाई और जरूरत के अनुसार लंबा बेड बनाते हैं. इसके बाद बेडों में आधा से 1 सेंटीमीटर की गहराई पर बीजों को बोया जाता है. लो-टनल एक छोटी लंबी लंबी टनल की तरह दिखती है, जिसके अंदर नर्सरी पौध उगाए जाते हैं. लो-टनल बनाने के लिए सरियों और बांस के सरकंड़ों पर रखे जाने वाला प्लास्टिक 150 रुपये प्रति मीटर की दर से बाजार में आसानी से उपलब्ध हो जाता है. किसान चाहें तो लो-टनल के अंदर पॉलीबैग में मिट्टी और गोबर की खाद और मिट्टी को 1:1 के अनुपात में भरकर बीज बो सकते हैं. साथ ही प्रो-ट्रे जो 35 से 40 रुपये में बाजार में आसानी से मिल जाते हैं, उसे खरीद कर इसमें बीज बो कर लो-टनल में रख सकते हैं. इस तकनीक में नर्सरी पौध 30 से 40 दिनों में तैयार हो जाती है.
कृषि वैज्ञानिक चौरसिया के अनुसार, सब्जी बीजों के जमने के बाद उसमें फर्टीगेशन ज़रूर करें. यानी NPK का 50 से लेकर 100 PPM तक का घोल बना कर, रोज या एक दिन छोड़कर पौधों में ज़रूर दें. आप हाजरा से भी ऐसी घोल बना कर पौधों पर छिड़काव सकते हैं. बीजों की बुवाई के बाद समय-समय पर हाजरा से सिंचाई करना चाहिए और अगर लो-टनल के उपर धूल या डस्ट जम गई हो तो लो-टनल की धुलाई भी ज़रूरी है.
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इसके अलावा दिन के समय कुछ देर के लिए पॉलीहाउस के पर्दे हटा दें. फिर शाम से पहले बंद कर दें. पॉलीटनल में पौध उगाने से बीज जमाव के बाद दिन में धूप के समय पॉलीथीन को हटा देते हैं, जिससे पौधों का धूप के संपर्क में आने से उनका कठोरीकरण होता है. ऐसे पौधों को खेत में रोपाई करने से उनकी मृत्यु दर नहीं के बराबर होती है.
किसानों के पास इस तकनीक से पैसे कमाने का अवसर है. इस विधि से किसान आधा एकड़ में लो-टनल से अपनी सब्जी नर्सरी के पौधे बेचकर मात्र दो महीने में 2 लाख रुपये लाभ कमा सकते हैं. किसानों को एक पौधा तैयार करने में 50 से 60 पैसे का खर्च आता है. किसान इन पौधों को एक रुपये से लेकर 1.50 रुपये प्रति नग की दर से बेचकर डेढ़ से 2 लाख रुपये की कमाई कर सकते हैं. वे साल में 3 से 4 बार पौधा तैयार करके बेच सकते हैं. इस तरह वे सालाना 5 से 6 लाख रुपये की कमाई कर सकते हैं.
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