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ऊपर से कभी न करें बैंगन की सिंचाई, इससे गंभीर बीमारी लगने का रहता है खतरा

ऊपर से कभी न करें बैंगन की सिंचाई, इससे गंभीर बीमारी लगने का रहता है खतरा

अगर किसान चाहें, तो बैंगन के पौधों को फंगल संक्रमण से बचाने के लिए जैविक कवकनाशी, जैसे नीम का तेल, लहसुन का अर्क या तांबा आधारित स्प्रे का उपयोग कर सकते हैं. फंगल रोगों के प्रसार को रोकने के लिए इनका छिड़काव काफी कारगर होगा. इसके अलावा ट्राइकोडर्मा जैसे बायोकंट्रोल एजेंटों के उपयोग से भी फंगल रोगजनकों को प्रभावी ढंग से दबा सकते हैं.

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बैंगन की फसल में इन वजहों से लगते हैं रोग. (सांकेतिक फोटो) बैंगन की फसल में इन वजहों से लगते हैं रोग. (सांकेतिक फोटो)

भारत एक कृषि प्रधान देश है. यहां पर किसान खरीफ और रबी फसलों के साथ- साथ बड़े स्तर पर बागवानी भी करते हैं. खास कर किसान हरी सब्जियों में बैगन की सबसे अधिक खेती करते हैं. क्योंकि मार्केट में इसकी पूरे साल डिमांड रहती है. इसका सबसे ज्यादा उपयोग सब्जी बनाने के लिए किया जाता है. लेकिन बैंगन की फसल में फंगल रोग भी सबसे अधिक लगते हैं. इससे बैंगन की फसल को बहुत अधिक नुकसान पहुंचता है. इससे उत्पादन में गिरावट आ जाती है. ऐसे में किसानों को भी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है. लेकिन किसानों को चिंता करने की जरूरत नहीं है. वे नीचे बताए गए तरीकों को अपनाकर बैंगन की फसल को फंगल रोग से बचा सकते हैं.

एक्सपर्ट का कहना है कि फसल चक्र के तरीकों को अपना कर फंगल संक्रमण के खतरे को काफी हद तक कम किया जा सकता है. मिट्टी में फंगल रोगजनकों के निर्माण को कम करने के लिए लगातार एक ही स्थान पर बैंगन की फसल लगाने से किसानों को बचना चाहिए. इसके अलावा किसानों को रोगमुक्त और स्वस्थ बीच का ही हमेशा चयन करना चाहिए. साथ ही उन्हें विश्वसनीय स्रोतों से बीच की खरीदारी करनी चाहिए. क्योंकि संक्रमित बीज की वजह से फसल में फंगल रोग असानी से लगते हैं. ऐसे में संभव हो प्रमाणित रोग प्रतिरोधी किस्मों का खेती के लिए चयन करें.

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इस तरह करें फसल की सिंचाई

बैंगन ऐसी सब्जी है, जिसके पौधों को हवा और धूप की बहुत अधिक जरूरत पड़ती है. इसलिए कतार और उचित अंतराल पर ही बैंगन के पौधे रोपें. कम दूरी पर पौधे रोपने पर आर्द्र वातावरण बन सकता है, जो फंगल विकास और प्रसार का कारण भी बन सकता है. वहीं, कवक रोगों को रोकने के लिए बैंगन की सिंचाई जरूरत के हिसाब से ही की जानी चाहिए. इसलिए किसान बैंगन के खेत में ज्यादा पानी देने से बचें, क्योंकि जरूरत से अधिक नमी फंगल विकास को बढ़ावा दे सकती है. इसके बजाय, सिंचाई के तरीकों को अपनाएं जो मिट्टी में संतुलित नमी का स्तर बनाए रखें. इसके अलावा किसान को ऊपर से भूलकर भी बैंगन की सिंचाई नहीं करनी चाहिए. इससे बीमारी और ज्यादा तेजी से फैलती है.

इन कीटनाशकों का करें छिड़काव

अगर किसान चाहें, तो बैंगन के पौधों को फंगल संक्रमण से बचाने के लिए जैविक कवकनाशी, जैसे नीम का तेल, लहसुन का अर्क या तांबा आधारित स्प्रे का उपयोग कर सकते हैं. फंगल रोगों के प्रसार को रोकने के लिए इनका छिड़काव काफी कारगर होगा. इसके अलावा ट्राइकोडर्मा जैसे बायोकंट्रोल एजेंटों के उपयोग से भी फंगल रोगजनकों को प्रभावी ढंग से दबा सकते हैं. वहीं, जानकारों का कहना है कि बैंगन के पौधों को स्वस्थ और फंगल हमलों के प्रति प्रतिरोधी बनाए रखने के लिए मिट्टी में उचित पोषक तत्वों का स्तर बनाए रखना बहुत जरूरी है.

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ये हैं फंगल रोग के लक्षण

बैंगन की फसल में फंगल रोग लगने पर इसकी पत्तियों पर धब्बे आ जाते हैं. साथ ही पत्तियां मुरझाने लगती हैं. ऐसे में फंगल बीजाणुओं के प्रसार को रोकने के लिए संक्रमित पौधों के हिस्सों को काटें और हटा दें. संदूषण और आगे के संक्रमण से बचने के लिए, इन हिस्सों का खेत से दूर उचित ढंग से निपटान करें.