Sugarcane farming: मॉनसून में इतना तेजी से बढ़ता है गन्ना, ये काम ज़रूरी वरना नुकसान तय!

Sugarcane farming: मॉनसून में इतना तेजी से बढ़ता है गन्ना, ये काम ज़रूरी वरना नुकसान तय!

मॉनसून का जुलाई महीना गन्ने की फसल के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इस समय कल्लों का बनना कम हो जाता है और गन्ने का विकास तेज़ी से शुरू हो जाता है. दूसरे मौसमों की तुलना में इस दौरान गन्ना कहीं अधिक तेज़ी से बढ़ता है. इस समय गन्ने के पौधे तेज़ बारिश और हवाओं का सामना करते हैं. उनकी सही देखभाल न की जाए, तो उपज में 50 फीसदी तक की भारी गिरावट आ सकती है इसलिए क्या करना जरूरी है जानिए.

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Sugarcane farming: मॉनसून में इतना तेजी से बढ़ता है गन्ना, ये काम ज़रूरी वरना नुकसान तय!गन्ने की खेती में कुछ खास बातों का ध्यान रखना जरूरी

मॉनसून का जुलाई महीना गन्ने की फसल के लिए बेहद अहम होता है. इस समय शरदकालीन और बसंतकालीन गन्ने में कल्ले निकलने की प्रक्रिया पूरी हो चुकी होती है और गन्ना तेज़ी से बढ़ता है. थोड़ी सी भी लापरवाही, खासकर कीटों या बीमारियों के कारण, उपज में भारी गिरावट ला सकती है. अगर फसल 15 दिन भी प्रभावित रहती है, तो बढ़वार और उपज दोनों पर बुरा असर पड़ता है. लेकिन कुछ उपायों को अपनाकर आप मॉनसून के दौरान अपनी गन्ने की फसल को सुरक्षित रख सकते हैं और बेहतर उपज प्राप्त कर सकते हैं. मॉनसून में बारिश को देखते हुए कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि गन्ने की फसल में मिट्टी चढ़ाने का काम समय पर कर लेना चाहिए. इस दौरान मिट्टी मुलायम होती है और फसल के पौधे काफी कमज़ोर होते हैं, जो तेज़ हवा चलने पर गिर सकते हैं.

ऐसे में, मिट्टी चढ़ाने और बंधाई करने से पौधों को मज़बूती मिलती है. जूलाई महीने में मिट्टी चढ़ाने का काम कर लेना चाहिए. अगस्त महीने में गन्ने की बंधाई का कार्य करें, क्योंकि गन्ना विशेषज्ञों के अनुसार, मॉनसून काल (जुलाई, अगस्त और सितंबर) में गन्ना 4.9 इंच प्रति सप्ताह की दर से बढ़ता है. इस समय यदि आवश्यक कदम न उठाए जाएं, तो गन्ने की उपज में 50 फीसदी तक का नुकसान हो सकता है.

गन्ने के दो प्रमुख रोगों से रहें सावधान

पोक्का बोइंग रोग:  इस महीने में पोक्का बोइंग रोग का प्रकोप भी देखा जा सकता है. पोक्का बोइंग रोग फ्यूजेरियम नामक कवक के कारण फैलता है. यह रोग विशेष रूप से रुक-रुक कर होने वाली बारिश और धूप के मौसम में तेज़ी से फैलता है, जो इसके अनुकूल परिस्थितियां पैदा करता है. गन्ने की जहां पत्ती तने से जुड़ती है वहां पर सफेद धब्बे दिखाई देने लगते हैं. पत्तियां मुरझाकर काली पड़ जाती हैं, और पत्ती का ऊपरी भाग सड़कर गिर जाता है, जिससे गन्ने का सामान्य विकास रुक जाता है.

ग्रसित पत्तियों के नीचे का अगोला छोटा और सामान्य से अधिक घना हो जाता है. गन्ने की पोरियों पर चाकू से कटे जैसे निशान भी दिखाई दे सकते हैं. यह रोग उन गन्ने की किस्मों को ज़्यादा प्रभावित करता है जिनकी पत्तियां चौड़ी होती हैं. इस बीमारी के कारण गन्ना छोटा और बौना रह जाता है, जिससे उपज में भारी गिरावट आती है. इसके रोकथाम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का 0.2 फीसदी घोल या बावस्टीन का 0.1 फीसदी घोल का छिड़काव करें. यह छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर दो बार करें.

लाल सड़न रोग: इस रोग में गन्ने के अगोले की तीसरी-चौथी पत्तियां एक या दोनों किनारों से सूखना शुरू हो जाती हैं, और धीरे-धीरे पूरा अगोला सूख जाता है. ऐसे पौधों पर विशेष ध्यान दें और उन्हें तुरंत खेत से हटा दें. गन्ने की फसल में लाल सड़न रोग के बचाव के लिए गन्ने के पौधों पर 2 से 3 बार 0.1% थियोफिनेट मेथिल या काबेन्डाजिम या टिबूकोनाजोल का छिड़काव किसानों को करना चाहिए.

मिलीबग कीट से रहें सावधान

गन्ने की फसल में इस समय मिलीबग कीट का प्रकोप भी होता है. इससे गन्ने की बढ़वार बहुत प्रभावित होती है और पौधे की पत्तियां काली दिखाई देने लगती हैं. प्रभावित खेतों में संक्रमित पौधों की पत्तियों को निकालकर नष्ट कर दें. इसके बाद एक एकड़ खेत के लिए इमिडाक्लाप्रिड 250 मिलीलीटर और ड्राईक्लोरोवास (नुवान) 100 मिलीलीटर का 250 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रभावित खेतों में छिड़काव करें.

बेधक कीटों से रहें सतर्क

चोटी बेधक, जड़ बेधक (रूट बोरर) और तना बेधक (स्टेम बोरर) से गन्ने की फसल को बहुत नुकसान होता है. इस महीने इन कीटों का आक्रमण तेज़ हो सकता है, जिससे गन्ने की उपज में भारी गिरावट आ सकती है. इसके लिए इस्तेमाल करना इस समय करना बेहतर होता है. एक ट्राइकोकार्ड में परजीवी कीट ट्राइकोग्रामा (Trichogramma) के लगभग 10,000 अंडे होते हैं. इन कार्डों को चार-चार टुकड़ों में काटकर खेत में गन्ने की निचली पत्तियों पर रस्सी या स्टेपलर से बांध दिया जाता है. कार्ड में मौजूद परजीवी कीट तितली बनकर निकलते हैं और गन्ने के दुश्मन कीटों जैसे चोटी बेधक, जड़ बेधक और तना बेधक के अंडों को खा जाते हैं, जिससे उनकी संख्या बढ़ती नहीं है. अगर इन कीटों का प्रकोप ज़्यादा हो, तो हर 15 दिन के अंतराल पर ट्राइकोकार्ड का उपयोग करना चाहिए.

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