मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती मेरे देश की धरती... यह गीत आपने जितनी बार भी सुना होगा आप के दिमाग में एक ही चित्र उभर कर आता है. वह है खेत में हल और बैल के साथ काम करता हुआ एक किसान. लेकिन, आधुनिक होती खेती के दौर में अब हल और बैल से खेत की जुताई के नजारे कम ही दिखते हैं. इनकी जगह ट्रैक्टर से जुताई समेत अन्य उपकरणों ने ले ली है. ऐसे में आज हम आपको यंत्र-तंत्र के खास सीरीज में पुराने दौर में प्राकृतिक तरीके से और कम संसाधनों के साथ की जाने वाली खेती की तकनीक के बारे में बताएंगे. वर्तमान में देश में प्राकृतिक खेती को लेकर हो हल्ला मचा हुआ है. ऐसे में आज इस कड़ी में हम हल और बैल से होने वाली खेती के फायदे और वर्तमान खेती के तरीकों से होने वाले नफा-नुकसान पर बात करेंगे.
मौजूदा समय में भी कई ग्रामीण क्षेत्र के किसान पारंपरिक तरीके से ही दो बैलों की जोड़ी और हल के साथ खेतों की जुताई कर रहे हैं. अन्नदाता की यह परंपरा शायद अपने अंतिम दौर में है. पारंपरिक तरीके से खेती का यह स्वरूप अब विलुप्त होता जा रहा है. आपको बता दें कि मिट्टी की गुणवत्ता को बनाने में जितना अधिक हल-बैल से जुताई करने में योगदान होता है वह किसी अन्य प्रकार के हल में मौजूद नहीं है, लेकिन समय की बचत के कारण अब तकनीकी रूप से किसान आधुनिक मशीनों की ओर रूख कर रहे हैं.
ये भी पढ़ें:- यूपी के एग्रीकल्चर सेक्टर में काफी पोटेंशियल, आधुनिक तकनीक से बढ़ेगी किसानों की आय
हल बैल से खेती के तरीके में लकड़ी का बना एक जुआ होता है, जिसमें दो बड़े खाने बने होते हैं. इन खानों को बैलों की गर्दन के पिछले हिस्से में बने कूबड़ पर पहना दिया जाता है. जिससे दोनों बैल एक समान दूरी पर खड़े हो जाते हैं. इसके बाद लकड़ी और लोहे की लगभग 5 मीटर लंबी छड़ से लोहे का एक हल जुड़ा होता है, जिसका नुकीला भाग जमीन को फाड़ कर मिट्टी को पलटता है और वह नीचे की ओर होता है. जबकि उसको संभालने के लिए ऊपर एक मुठिया बनाई जाती है, जिसे किसान अपने हाथ में पकड़ता है. बाई ओर चलने वाले बैल से एक रस्सी बंधी होती है जिसे नाथ बोलते हैं और यह भी किसान अपने एक हाथ में पकड़ कर रखते हैं, जिससे बैल को किसी भी दिशा में घुमाने में मदद मिलती है और खेतों में हल के माध्यम से जुताई होती है.
हल और बैल से खेती करने में खेत की मिट्टी में मौजूद सभी पोषक तत्व और जीव प्राकृतिक तौर पर फसलों की ग्रोथ में मदद करते हैं. खेत में पाए जाने वाला फसल मित्र केंचुआ हो या अन्य दूसरे कीट खेत में पहले के समान ही जुताई के बाद भी बने रहते हैं, जो बीज के अंकुरण में बड़ी भूमिका निभाते हैं.
हल-बैल से जुताई से इन फसल मित्रों के साथ ही उगने वाली लाभदायक घास को निचले हिस्से से काटता है, जिससे वह घास मिट्टी में मिलकर सड़ जाती है और खाद का काम करती है. इससे फसल में खाद का इस्तेमाल भी न्यूनतम हो जाता है. उस दौर में भी रासायनिक खादों का इस्तेमाल नहीं होता था, तब इस तरह की घास और पौधे खेत की मिट्टी में सड़कर खाद बन जाया करते थे.
1. आधुनिक खेती में इस्तेमाल होने वाले रसायनों और उर्वरकों से मिट्टी की क्वालिटी में कमी आती है.
2. मशीनों से खेत की जुताई करने से मिट्टी की उर्वरक क्षमता कम होती है.
3. ट्रैक्टर से खेतों की जुताई करने से खेत में पाए जाने वाले फसल मित्र नष्ट हो जाते हैं.
4. प्राकृतिक तौर पर उगे खरपतवार, जो फसलों के लिए खाद का काम करते हैं वो भी नष्ट जो जाते हैं
5. आधुनिक तकनीक से खेती करने से सबसे अधिक नुकासन पार्यावरण को है.
Copyright©2024 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today