Fish Seed: जीरा साइज बीज से ऐसे बनती है बड़ी मछली, लेकिन हर बीज नहीं बन पाता मछली

Fish Seed: जीरा साइज बीज से ऐसे बनती है बड़ी मछली, लेकिन हर बीज नहीं बन पाता मछली

Fish Seed Size मछली के बीज को दो-तीन तरीके से तैयार किया जाता है. हालांकि बाजार में सबसे ज्यादा बिकने वाला जीरा साइज का बीज होता है. लेकिन इसके अलावा एक तरीका ये भी है कि जीरा साइज बीज को पहले नर्सरी तालाब में पालकर फिंगर साइज तक का तैयार कर लेते हैं, उसके बाद ही उसे तालाब में ट्रांसफर करते हैं. ऐसा करने से बीज से मछली बनने का प्रतिशत बढ़ जाता है. 

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Fish Seed: जीरा साइज बीज से ऐसे बनती है बड़ी मछली, लेकिन हर बीज नहीं बन पाता मछलीमछली पालन और तालाब में खाद का इस्तेमाल. (सांकेतिक फोटो)

Fish Seed Size तालाब में मछली पालन शुरू करने से पहले बाजार से मछलियों का बीज खरीदकर लाना होता है. तालाब में यही बीज वक्त के हिसाब से बड़ी और वजनदार मछली बनते हैं. लेकिन ये भी जरूरी नहीं है कि सभी बीज बड़ी मछली बनकर तैयार होंगे. हैचरी एसोसिएशन के अध्यक्ष रवि कुमार येलंका ने किसान तक को बताया कि अगर तालाब में एक हजार बीज डाले जा रहे हैं तो उसमे से 250-300 बीज ही बड़ी मछली बनेंगे. तालाब में मछली तैयार करने के लिए भी बीज को इस्तेमाल करने का एक तरीका होता है. 

कैसा होता है बीज से मछली बनने तक का सफर? 

  • मछली पालन के लिए सबसे ज्यादा बीज (हैचरी) पश्चिम बंगाल और आंध्रा प्रदेश में हैं. 
  • मछली का बीज तीन साइज जीरा, स्पान और फिंगर साइज में तैयार किया जाता है. 
  • बाजार में सबसे ज्यादा जीरा साइज बीज बिकता है. 
  • जीरा साइज बीज एक-एक हजार के पैकेट में बिकता है. 
  • जीरा साइज बीज को सीधे तालाब में लाकर डाल दिया जाता है. 
  • जीरा साइज बीज तालाब में सीधे इस्तेमाल करने पर 25 फीसद ही कामयाब होता है. 
  • जीरा साइज बीज ट्रांसपोर्ट करने के दौरान भी बड़े पैमान पर खराब हो जाता है.  
  • हैचरी से जीरा बीज लाकर पहले उसे नर्सरी में रखने से सफलता दर बढ़ जाती है. 
  • हैचरी से नर्सरी में रखने और फिर तालाब में डालने पर सफलता दर 35 से 40 फीसद हो जाती है. 
  • जीरा साइज बीज को नर्सरी में रखने पर फिंगर साइज या 100 ग्राम तक का हो जाता है. 
  • जीरा साइज को नर्सरी में रखने पर सरसों की खल और चावल के छिलके का चूरा खि‍लाया जाता है. 
  • जीरा साइज को पहले नर्सरी तालाब में रखने से मछलियों में जल्दी बीमारी भी नहीं होती है. 
  • रोहू, कतला और मृंगाल ब्रीड की मछलियां 18 महीने में डेढ़ से दो किलो वजन की हो जाती हैं.

निष्कर्ष- 

मछली पालन का मुनाफा पूरी तरह से मछली के वजन पर निर्भर करता है. वजन जितना ज्यादा होगा तो उस मछली के दाम उतने ही अच्छे मिलेंगे. लेकिन इसके लिए जरूरी है कि शुरुआत से ही मछली को तालाब में अच्छा वातावरण मिले और वो हैल्थी रहे. 

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