पंजाब को गेहूं और धान जैसी फसलों के लिए जाना जाता है. ये वो फसलें हैं जिनके लिए अत्यधिक पानी की जरूरत होती है. लेकिन समस्या यह भी है कि राज्य में भूजल का स्तर दिन पर दिन गिरता जा रहा है. ऐसे में यहां के किसानों ने कुछ ऐसा किया है जो देश के बाकी किसानों के लिए मिसाल बन सकता है. पंजाब में वह प्रयोग हो रहा है जिसके लिए दुनिया में इजरायल को 'मास्टर ' माना जाता है. राज्य में कुछ ऐसी परियोजनाएं चल रही हैं तो जल संरक्षण से जुड़ी हैं और ये परियोजनाएं उम्मीद की नई रोशनी लेकर आती हैं. इस पहल में न सिर्फ भूजल को बचाने में मदद मिलती है बल्कि किसानों, सरकार पर बोझ कम करने और पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देने का भी वादा करती हैं.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार पंजाब राज्य अपनी कृषि क्षमता के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है. लेकिन यह राज्य इस समय पानी की कमी और प्रदूषण के मसलों का सामना कर रहा है. लेकिन हालांकि राज्य में जल संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास हो रहा है. मृदा और जल संरक्षण विभाग के अनुसार पंजाब में प्रति दिन 2200 मिलियन लीटर (एमएलडी) सीवेज पानी पैदा होता है. इसका एक महत्वपूर्ण हिस्सा पहले बिना ट्रीटमेंट के ही छोड़ दिया जाता था. इससे पर्यावरण को भी नुकसान हुआ है. मगर अब एडवांस्ड वॉटर ट्रीटमेंट फैसिलिटीज की वजह से रोजाना 1700 एमएलडी सीवेज वॉटर का ट्रीटमेंट किया जाता है.
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इस पानी से कई शहरी केंद्रों में बने 60 सीवेज उपचार संयंत्रों (एसटीपी) से 330 एमएलडी का उपयोग पहले से ही विभाग की तरफ से बिछाई गई अंडरग्राउंड पाइपलाइनों के जरिये सिंचाई के लिए किया जा रहा है. इस पहल से 10000 हेक्टेयर से ज्यादा खेती वाली जमीन की सिंचाई की जा रही है. इस साल के अंत तक इस क्षमता को 600 एमएलडी और 30,000 हेक्टेयर से कम क्षेत्र तक बढ़ाने की योजना पर काम चल रहा है. इजरायल में, 96 फीसदी सीवेज पानी को ट्रीट किया जाता है. इस 86 फीसदी पानी का प्रयोग सिंचाई के लिए और 10 फीसदी को बाकी मकसद के लिए प्रयोग किया जाता है.
पंजाब में हर दो हेक्टेयर के लिए करीब एक ट्यूबवेल के चलन की वजह से सिंचाई के लिए एसटीपी से उपचारित पानी की उपलब्धता के कारण लगभग 5000 ट्यूबवेल निष्क्रिय हो गए हैं. एक ट्यूबवेल मोटे तौर पर सिंचाई के लिए सालाना करीब 72000 से 80000 रुपये की बिजली की खपत करता है. इस नई पहल से न सिर्फ ट्यूबवेलों को चलाने के लिए उपयोग की जाने वाली बिजली की बचत हुई है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान मिला है. इससे राज्य सरकार पर वित्तीय बोझ से राहत मिली है, जो कृषि ट्यूबवेलों के लिए सब्सिडी वाली बिजली के रूप में भारी मात्रा में धन खर्च करती है. छोटे और सीमांत किसान, जो ट्यूबवेल का खर्च नहीं उठा सकते थे, उन्हें इस पहल से बहुत फायदा हुआ है.
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इसके अलावा मौजूदा ट्यूबवेल वाले किसानों को घटते जल स्तर के कारण उन्हें गहरा करने के वार्षिक खर्च से भी छुटकारा मिल गया है. किसान जो कभी गंदे पानी के प्रयोग पर संदेह करते थे और ऐसी परियोजनाओं का विरोध करते थे, अब इन पहलों को खुलकर स्वीकार कर रहे हैं. ट्रीटमेंट के बाद, गांव की तालाब परियोजनाओं से पानी को भूमिगत पाइपलाइनों के माध्यम से खेतों तक पहुंचाया जाता है. इससे सिंचाई के लिए इसकी सुरक्षा और सुनिश्चित होती है. इसके अलावा, विभाग ने पूरे क्षेत्र में ग्रामीण तालाब जल परियोजनाओं की स्थापना शुरू की है, जिसमें 110 ऐसी परियोजनाएं पहले से ही चालू हैं. इन पहलों का प्रभाव दूरगामी है.
यदि पंजाब में सभी 2200 एमएलडी सीवेज पानी का उपयोग सिंचाई के लिए किया जाता है, तो इससे कम से कम 1.5 लाख हेक्टेयर में सिंचाई की बचत होगी. इससे करीब 75,000 ट्यूबवेल निष्क्रिय हो जाएंगे. यह जल संरक्षण, बिजली बचत और भूमिगत जल संसाधनों के संरक्षण में एक बड़ी उपलब्धि होगी. इसी तरह, पंजाब में सीवेज के पानी के 15,000 तालाब और दो एकड़ भूमि में फैले 5,000 तालाबों के साथ, इन तालाबों के पानी से बड़ी मात्रा में भूमि की सिंचाई की जा सकती है. रोपड़ और मोहाली जिलों के कई हिस्सों में जहां कई ट्यूबवेल सूख गए हैं और 600 से 700 फीट की गहराई तक खुदाई की जरूरत है. इसकी लागत करीब पांच से सात लाख रुपये है. लेकिन किसानों को अब यह उपचारित पानी मुफ्त मिल रहा है. इसके अलावा, इस पानी में कई पोषक तत्व हैं, जिससे उर्वरकों की आवश्यकता कम हो जाती है.
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