scorecardresearch
NDRI में जन्मी गिर नस्ल की पहली क्लोन बछिया गंगा, दूध उत्पादन बढ़ाने में मिलेगी मदद

NDRI में जन्मी गिर नस्ल की पहली क्लोन बछिया गंगा, दूध उत्पादन बढ़ाने में मिलेगी मदद

गिर गाय की क्लोनिंग पर वैज्ञानिकों की टीम पिछले दो साल से काम कर रही थी. इस टीम में डॉ. नरेश सेलोकर, मनोज कुमार सिंह, अजय असवाल, एस.एस. लठवाल, सुभाष कुमार, रंजीत वर्मा, कार्तिकेय पटेल और एमएस चौहान शामिल रहे. टीम के सभी वैज्ञानिक और डॉक्टर क्लोन गायों के उत्पादन के लिए स्वदेशी विधि विकसित करने के लिए काम करते रहे हैं.

advertisement
एनडीआरआई करनाल में पैदा हुई गिर गाय की क्लोन गंगा एनडीआरआई करनाल में पैदा हुई गिर गाय की क्लोन गंगा

हरियाणा के करनाल स्थित राष्ट्रीय डेयरी अनुसधान ने एकबार फिर इतिहास रचा है. करनाल में देश की पहली क्लोन गिर गाय की बछिया पैदा हुई है जिसका नाम गंगा रखा गया है. भारत की देशी गायों की ब्राजील, अमेरिका, मैक्सिको, और वेनेजुएला में बहुत मांग है. माना जा रहा है कि देश में दूध का उत्पादन बढ़ाने के लिए पहली क्लोन गिर गाय की बछिया बहुत कारगर सिद्ध होगी. गिर गाय की गंगा बछिया को क्लोन क्षेत्र में बड़ी क्रांति बताई जा रही है जिसे लेकर वैज्ञानिक बेहद उत्साहित हैं.

राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (NDRI) ने 2021 में उत्तराखंड लाइवस्टॉक डेवलपमेंट बोर्ड, देहरादून के सहयोग से गिर, साहीवाल और रेड सिंधी जैसी देशी गायों की क्लोनिंग का काम शुरू किया. इसी परियोजना के तहत 16 मार्च को गिर नस्ल की एक क्लोन बछिया पैदा हुई. जन्म के समय इसका वजन 32 किलोग्राम था, जो कि स्वस्थ है. गिर गाय भारत के देशी गाय की एक प्रसिद्ध नस्ल है. यह नस्ल मूल रूप से गुजरात में पाई जाती है. 

देशी गायों के सरंक्षण और संख्या में वृद्धि के लिए पशु क्लोनिंग तकनीक विकसित करना एक बहुत ही चुनौतीपूर्ण काम माना जाता है. लेकिन एनडीआरआई ने इसमें बड़ी उपलब्धि हासिल की है. गिर नस्ल की क्लोनिंग का उपयोग अन्य नस्लों के गुणवत्ता सुधार के रूप से किया जा रहा है. गिर गाय अन्य गाय की नस्लों के अपेक्षा बहुत अधिक सहनशील होती है, जो अत्यधिक तापमान और ठंड आसानी से सहन कर लेती है. गिर नस्ल अलग-अलग ऊष्ण कटिबंध रोगों के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए जानी जाती है. इसी कारण से भारत की देशी गायों का ब्राजील, अमेरिका, मैक्सिको और वेनेजुएला में बहुत मांग है.

ये भी पढ़ें: दूध के नहीं म‍िल रहे थे दाम... अब म‍िठाई की दुकान खोल कर मोटा मुनाफा कमा रहा क‍िसान

गिर गाय की क्लोनिंग पर वैज्ञानिकों की टीम पिछले दो साल से काम कर रही थी. इस टीम में डॉ. नरेश सेलोकर, मनोज कुमार सिंह, अजय असवाल, एस.एस. लठवाल, सुभाष कुमार, रंजीत वर्मा, कार्तिकेय पटेल और एमएस चौहान शामिल रहे. टीम के सभी वैज्ञानिक और डॉक्टर क्लोन गायों के उत्पादन के लिए स्वदेशी विधि विकसित करने के लिए काम करते रहे हैं. क्लोन गंगा बछिया को विकसित करने में इस टीम को दो साल से अधिक का समय लगा है.

Gir cow clone Ganga

वैज्ञानिकों की टीम के प्रमुख डॉ. नरेश सेलोकर ने बताया, करीब 15 साल से भैंस की क्लोनिंग पर काम कर रहे थे. अनुभव के बाद निर्णय लिया कि कैटल की भी क्लोनिंग करनी चाहिए. इसे देखते हुए राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान ने 2021 में उत्तराखंड लाइवस्टॉक डेवलपमेंट बोर्ड, देहरादून के सहयोग से राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान करनाल के पूर्व निदेशक डॉ. एमएस चौहान के नेतृत्व में गिर, साहीवाल और रेड सिंधी जैसी देशी गायों की क्लोनिंग का काम शुरू किया. डॉ. सेलोकर कहते हैं, कैटल क्लोनिंग की काफी चुनौतियां थीं, अंडे नहीं थे. बाद में ओपीयू तकनीक से अंडों को निकाला और क्लोनिंग पर काम किया.

डॉ. सेलोकर कहते हैं, तीन ब्रीड सलेक्ट की थी. साहीवाल में कुछ असफलताएं हाथ लगीं, लेकिन रिसर्च के बाद 16 मार्च 2023 को गिर गाय की क्लोन पैदा हुई है. गिर गाय का सेल साहीवाल की ओपीयू से निकाला. उसके बाद केंद्रक निकाला गया. जिस बछिया गंगा का क्लोन करना था, गिर का क्लोन उसके अंदर डाला. इस विधि में अल्ट्रासाउंड निर्देशित सुइयों का उपयोग करके जीवित पशु से अंडाणु लिया जाता है. फिर अनुकूल परिस्थिति में 24 घंटे के लिए परिपक्व किया जाता है. 

ये भी पढ़ें: पैदावार घटने की बात अभी जल्दबाजी होगी, गेहूं के नुकसान पर कृषि मंत्री ने दिया बयान

डॉ. सेलोकर ने बताया, क्लोनिंग में उच्च क्वालिटी वाली गाय की कोशिकाओं का उपयोग दाता के रूप में किया जाता है, जो ओपीयू - से उत्पन्न किए गए अंडाणु से जोड़ा जाता है. सात-आठ दिन के इन विट्रो-कल्चर के बाद विकसित ब्लास्टोसिस्ट को गाय में ट्रांसप्लांट कर दिया जाता है. इसके नौ महीने बाद क्लोन बछड़ा या बछिया पैदा होती है. इस स्वदेशी विधि पर पिछले दो साल से काम हो रहा था जिसके बाद डॉक्टर्स की टीम को सफलता मिली है.