scorecardresearch
हमें पता है जब बैलेट पेपर से वोटिंग होती थी तो क्‍या होता था, जर्मनी का उदाहरण हमें न दें...ईवीएम मामले पर सुप्रीम कोर्ट 

हमें पता है जब बैलेट पेपर से वोटिंग होती थी तो क्‍या होता था, जर्मनी का उदाहरण हमें न दें...ईवीएम मामले पर सुप्रीम कोर्ट 

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को वोटर-वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपैट) से निकलने वाली सभी पर्चियों का मिलान इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) से पड़े वोटों के साथ कराने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई की. दो घंटे से ज्‍यादा समय तक चली सुनवाई के बाद, जस्टिस संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता की पीठ ने मामले को आगे की सुनवाई के लिए 18 अप्रैल तक टाल दिया.

advertisement
सुप्रीम कोर्ट में ईवीएम पर अहम सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में ईवीएम पर अहम सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को वोटर-वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपैट) से निकलने वाली सभी पर्चियों का मिलान इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) से पड़े वोटों के साथ कराने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई की. दो घंटे से ज्‍यादा समय तक चली सुनवाई के बाद, जस्टिस संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता की पीठ ने मामले को आगे की सुनवाई के लिए 18 अप्रैल तक टाल दिया. लोकसभा चुनाव 2024 के लिए पहले चरण की वोटिंग 19 अप्रैल को होनी है. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और सोशल एक्टिविस्ट अरुण कुमार अग्रवाल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके ईवीएम के वोटों और वीवीपीएटी पर्चियों की 100 फीसदी मिलान की मांग की है.

'आपको ये डेटा कहां से मिला' 

सुप्रीम कोर्ट ने एडीआर की ओर से पेश सीनियर वकील प्रशांत भूषण ने अपनी दलील के दौरान कहा कि अधिकांश मतदाता ईवीएम पर भरोसा नहीं करते. इस पर जस्टिस दीपांकर दत्ता ने उन्हें टोकते हुए पूछा, 'आपने कहा कि अधिकांश मतदाता ईवीएम पर भरोसा नहीं करते. आपको ये डेटा कैसे और कहां से मिला?' इसके जवाब में प्रशांत भूषण ने कहा- 'एक सर्वे हुआ था'. जस्टिस दत्ता ने कहा- 'हम निजी सर्वे पर विश्वास नहीं करते'.

प्रशांत भूषण ने तर्क दिया कि अधिकांश यूरोपीय देश, जिन्होंने ईवीएम से मतदान का विकल्प चुना था, वापस बैलट पेपर पर लौट आए हैं. इस पर जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा, 'हम अपनी जिंदगी के छठे दशक में हैं और जानते हैं कि जब बैलट पेपर से मतदान होता था, तब क्या समस्याएं आती थीं. हो सकता है आपको याद न हो, लेकिन हम भूले नहीं हैं.' 

यह भ्‍री पढ़ें- केरल में थरूर के किले पर बीजेपी का झंडा लहरायेंगे राजीव चंद्रशेखर, तिरुवंतपुरम में जीत से रचेंगे इतिहास! 

'सरकार के नियंत्रण में होती ईवीएम कंपनियां'  

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश एक वकील ने आरोप लगाया कि ईवीएम पब्लिक सेक्टर यूनिट की कंपनियां बनाती हैं. ये कंपनियां सरकार के नियंत्रण में होती हैं. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- क्या प्राइवेट कंपनी ईवीएम बनाएगी तो आप खुश होंगे? सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील संजय हेगड़े ने शीर्ष अदालत से मांग की कि ईवीएम में दर्ज वोटों का मिलान वीवीपीएटी की 100 फीसदी पर्चियों से किया जाना चाहिए. इस पर जस्टिस संजीव खन्ना ने पूछा- क्या 60 करोड़ वीवीपीएटी पर्चियों की गिनती होनी चाहिए?

यह भी पढ़ें- डिंपल यादव 15.5 करोड़ रुपये से ज्‍यादा की संपत्ति की मालकिन

वकील गोपाल शंकर नारायण ने कहा कि चुनाव आयोग का कहना है कि सभी वीवीपीएटी पर्चियों की गिनती में 12 दिन लगेंगे. एक वकील ने वोट देने के लिए बारकोड का सुझाव दिया. जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा, 'अगर आप किसी दुकान पर जाते हैं तो वहां बारकोड होता है. बारकोड से वोटों की गिनती में मदद नहीं मिलेगी, जब तक कि हर उम्मीदवार या पार्टी को बारकोड न दिया जाए और यह भी एक बहुत बड़ी समस्या होगी. मानवीय हस्तक्षेप से समस्याएं उत्पन्न होती हैं, जब सॉफ्टवेयर या मशीन में अनधिकृत परिवर्तन किए जाते हैं. यदि आपके पास इसे रोकने के लिए कोई सुझाव है, तो हमें बता सकते हैं.'

'यूरोप के उदाहरण यहां नहीं चलते'  

प्रशांत भूषण ने कहा, 'बेहतर तरीका ये है कि वोटर को वीवीपैट से निकलने वाली पर्ची दी जाए और वह इसे देखने के बाद खुद बॉक्स में डाले और फिर उसका ईवीएम से मिलान किया जाए. वर्तमान में चुनाव आयोग प्रति विधानसभा केवल 5 वीवीपैट मशीनों की गिनती कर रहा है, जबकि ऐसी 200 मशीनें लगती हैं. यह केवल पांच प्रतिशत है. मतदाता को वीवीपैट से निकलने वाली पर्ची लेने और उसे मतपेटी में डालने की अनुमति दी जा सकती है. जर्मनी में ऐसा ही होता है.'

प्रशांत भूषण द्वारा जर्मनी के सिस्टम का उदाहरण देने पर जस्टिस दीपांकर दत्ता ने कहा- 'मेरे गृह राज्य पश्चिम बंगाल की जनसंख्या जर्मनी से अधिक है. हमें किसी पर विश्वास जताना होगा. इस तरह से व्यवस्था को नुकसान पहुंचाने की कोशिश मत कीजिए. इस तरह के उदाहरण मत दीजिए. यह एक बहुत बड़ा काम है और यूरोपीय उदाहरण यहां काम नहीं आते.' 

यह भी पढ़ें- CSDS के सर्वे में मोदी सरकार की वापसी तय, 2024 में किसे नफा-किसे नुकसान 

छेड़छाड़ हुई तो कितनी सजा 

जस्टिस संजीव खन्ना ने चुनाव आयोग से पूछा कि अगर ईवीएम के साथ कोई छेड़छाड़ की गई, तो ऐसे में दोषी के लिए क्या सजा निर्धारित की गई है? क्योंकि यह गंभीर बात है. लोगों को डर होना चाहिए कि अगर ईवीएम में कुछ गलत हुआ तो सजा होगी. जवाब में निर्वाचन आयोग ने कहा कि ईवीएम के साथ छेड़छाड़ करने पर सजा का प्रावधान है. जस्टिस खन्ना ने कहा कि अगर कोई हेरफेर किया गया है, तो उसके संबंध में सजा का कोई विशेष प्रावधान नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के वकीलों की दलीलें सुनने के बाद निर्वाचन आयोग से ईवीएम के इस्तेमाल की पूरी प्रक्रिया का चरणबद्ध तरीके से ब्योरा देने को कहा.

यह भी पढ़ें- गूगल पर चुनावी विज्ञापन खर्च में बीजेपी टॉप पर, जानिए किन एड पर पार्टी ने किया सबसे ज्‍यादा खर्च 

वीपीपैट क्या होता है और कैसे काम करता है?

मतदान केंद्र पर ईवीएम मशीन के साथ एक ​और मशीन जुड़ी होती और उसके साथ एक ट्रांसपेरेंट बॉक्स रखा होता है. इसे वीपीपैट यानी वोटर-वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल कहते हैं. जब मतदाता ईवीएम के जरिए अपना वोट डालता है तो वीपीपैट से एक पर्ची निकलती है और बॉक्स में गिर जाती है. उस पर्ची पर मतदाता ने जिस पार्टी को वोट दिया होता है, उसका चुनाव चिन्ह दर्ज होता है. वीवीपैट पर्ची मतदाता को यह देखने में सक्षम बनाती है कि वोट सही तरीके से पड़ा है और वह जिस उम्मीदवार का समर्थन करता है, उसे ही गया है. अगर मतदाता को संदेह है तो वह पीठासीन अधिकारी से शिकायत कर पर्ची देख सकता है और यह सुनिश्चित कर सकता है कि उसने जिस पार्टी को वोट दिया है, उसे ही गया है या नहीं.