भारत में लोकसभा चुनावों के बारे में कई ऐसे नियम हैं जिनके बारे में अक्सर कई बातें होते हैं. कुछ नियम ऐसे हैं जो आज तक चल रहे हैं और कुछ नियम या तो बदल गए या फिर खत्म कर दिए गए हैं. इनमें से ही एक नियम था लोकसभा में एंग्लो इंडियन के लिए आरक्षित सीटों का होना. साल 2019 में इस नियम को खत्म कर दिया गया था. आम चुनावों के बाद दिसंबर में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने विधायी निकायों में एंग्लो-इंडियन के लिए आरक्षण हटाने को मंजूरी दे दी. उस समय जब देश में नागरिकता (संशोधन) कानून पर बहस हो रही थी तो उसके बीच ही सरकार इसे हटाने से जुड़ा नियम लेकर आई थी.
दिसंबर 2019 में लोकसभा में एंग्लो-इंडियन समुदाय के सदस्यों को नामित करने से जुड़ा नियम खत्म करने वाला विधेयक भी पास कर दिया. पिछले 70 सालों से अनुसूचित जाति और जनजातियों को जहां आरक्षण मिलता रहा है. वहीं एंग्लो-इंडियन समुदाय के लोगों को भी संसद और राज्य की विधानसभाओं में नामित करने की परंपरा भी चली आ रही थी. लेकिन 25 जनवरी 2020 के बाद इस परंपरा को नरेंद्र मोदी सरकार ने समाप्त करने का फैसला लिया है.
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एंग्लो इंडियन समुदाय का जरूरी प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए एंग्लो-इंडियन को लोकसभा में दो नामांकित सीटें और राज्य विधान सभाओं में एक नामांकित सीट प्रदान की गईं. एंग्लो-इंडियन एक धार्मिक, सामाजिक और साथ ही भाषाई अल्पसंख्यक हैं. संख्या पर अगर गौर करें तो यह अत्यंत ही छोटा समुदाय है. पूरे भारत में फैले होने के कारण, एंग्लो-इंडियन को विधायी निकायों में आरक्षण प्रदान किया गया था. एंग्लो-इंडियन समुदाय के लिए आरक्षण को 95वें संशोधन 2009 के जरिए साल 2020 तक बढ़ा दिया गया था. मूल रूप से, यह प्रावधान 1960 तक लागू था.
संविधान के अनुच्छेद 366 एंग्लो-इंडियन को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है जिसके पिता या जिनके पुरुष वंश में कोई पुरुष पूर्वज यूरोप का रहने वाला है या फिर उसका यूरोप से कोई कनेक्शन है लेकिन जो भारत के किसी हिस्से में रहता है या फिर ऐसे क्षेत्र में पैदा हुआ है जहां पर उसके माता-पिता रहते हैं या वहां का निवासी है. ऐसा व्यक्ति जो सिर्फ अस्थायी प्रयोजनों के लिए वहां स्थापित नहीं किया गया है.
अनुच्छेद 331 के तहत अगर समुदाय का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है तो राष्ट्रपति एंग्लो-इंडियन समुदाय के दो सदस्यों को लोकसभा में नामांकित कर सकते हैं.
अनुच्छेद 333 के तहत अगर राज्यपाल की राय है कि एंग्लो इंडियन समुदाय को विधान सभा में प्रतिनिधित्व की जरूरत है और वहां उनका पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है, तो वह उस समुदाय के एक सदस्य को विधानसभा में नामांकित कर सकते हैं. संविधान के अनुच्छेद 334(बी) के तहत सन् 1949 में विधायी निकायों में एंग्लो इंडियन समुदाय का आरक्षण 40 वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया था.
जब सरकार के प्रस्ताव का विपक्ष ने विरोध किया तो सरकार ने कहा था कि यह नियम अनुसूचित जाति के साथ भेदभाव करने वाला है. तब सरकार का कहना था कि एंग्लो इंडियन समुदाय के 296 लोग ही भारत में हैं. ऐसे में 20 करोड़ की अनुसूचित जाति के साथ नाइंसाफी करना ठीक नहीं है.
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