जब मथुरा में अटल बिहारी वाजपेयी को मिली थी करारी हार, जानिए यूपी की हाई प्रोफाइल सीट का वह किस्‍सा 

जब मथुरा में अटल बिहारी वाजपेयी को मिली थी करारी हार, जानिए यूपी की हाई प्रोफाइल सीट का वह किस्‍सा 

अटल बिहारी वाजपेयी देश के पूर्व प्रधानमंत्री और आज तक एक लोकप्रिय नेताओं की लिस्‍ट में शामिल हैं. शायद ही कभी किसी ने लोकसभा चुनावों में उनकी हार के बारे में ने सोचा होगा. लेकिन एक सीट ऐसी थी जहां पर उन्‍हें इतनी करारी हार का सामना करना पड़ा कि उनकी जमानत तक जब्‍त हो गई.

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जब मथुरा में अटल बिहारी वाजपेयी को मिली थी करारी हार, जानिए यूपी की हाई प्रोफाइल सीट का वह किस्‍सा मथुरा में अटल बिहारी वाजपेयी की जमानत तक जब्‍त हो गई

अटल बिहारी वाजपेयी देश के पूर्व प्रधानमंत्री और आज तक एक लोकप्रिय नेताओं की लिस्‍ट में शामिल हैं. लखनऊ उनका पसंदीदा संसदीय क्षेत्र रहा. वह इतने लोकप्रिय नेता थे कि शायद ही कभी किसी ने लोकसभा चुनावों में उनकी हार के बारे में ने सोचा होगा. लेकिन एक सीट ऐसी थी जहां पर उन्‍हें इतनी करारी हार का सामना करना पड़ा कि उनकी जमानत तक जब्‍त हो गई. हम बात कर रहे हैं मथुरा सीट की जो इस समय राष्‍ट्रीय लोकदल (आरएलडी) के नेता जयंत चौधरी की वजह से काफी चर्चा में है. जयंत ने बीजेपी के साथ जाने की अपनी मंशा साफ कर दी है.   

जमानत तक हो गई थी जब्‍त  

मथुरा, पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश की एक काफी लोकप्रिय सीट है. इस समय यहां पर बीजेपी से हेमामालिनी सांसद हैं. उन्‍होंने साल 2019 में जयंत को मात दी थी. सन् 1957 में जब दूसरे आम चुनाव हुए तो वाजपेयी ने यहां से किस्‍मत आजमाई. वह उस समय भारतीय जनसंघ के टिकट पर चुनाव लड़े थे. वह न केवल मथुरा से चुनाव हारे बल्कि उनकी जमानत तक जब्त हो गई. हालांकि वाजपेयी इस चुनाव में बलरामपुर लोकसभा सीट से भी चुनाव लड़ रहे थे और यहां पर उन्‍हें जीत मिली थी.  

वाजपेयी और कांग्रेस के उम्‍मीदवारों को चुनाव में मथुरा में निर्दलीय उम्‍मीदवार राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने हराया था. इससे पहले के चुनाव में कांग्रेस के प्रोफेसर कृष्ण चंद्र को जिताने वाली जनता ने राजा महेंद्र प्रताप को हाथों-हाथ लिया. जनसंघ के अटल बिहारी वाजपेयी को चौथे नंबर पर ढकेल दिया. वाजपेयी को सिर्फ 10 फीसदी ही वोट मिल पाए थे. 

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वाजपेयी ने की थी अपील 

उस समय वाजपेयी, बलरामपुर के साथ-साथ मथुरा और लखनऊ से भी जनसंघ के उम्‍मीदवार के तौर पर चुनाव लड़े थे. लखनऊ से तो उन्होंने 33 प्रतिशत मत प्राप्त कर अपनी साख बरकरार रखी थी. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के चौधरी दिगम्बर सिंह दूसरे, पूरन निर्दलीय तीसरे व वाजपेयी चौथे स्थान पर रहे. उस समय उन्हें कुल पड़े 2 लाख 34 हजार 19 मतों में से मात्र 23 हजार 620 मत मिले थे. ऐसा कहा जाता है कि जब मतदान में एक-दो दिन ही बचे थे तो वाजपेयी ने खुद मथुरा की जनता से अपील की थी कि वे उन्हें वोट न दें बल्कि राजा महेंद्र प्रताप को ही जिताएं.

फिर पलट गई बाजी 

लेकिन अगले ही चुनावों में मथुरा में बड़ा खेल हो गया. मथुरा ने पलटा खाया और पूरा परिणाम पलट गए. सन् 1962 में, राजा महेंद्र प्रताप दूसरे नंबर पर रहे और चौधरी दिगम्बर सिंह चुनाव जीत गए. मथुरा के सादाबाद क्षेत्र के कुरसण्डा निवासी चौधरी दिगम्बर सिंह उन प्रतिनिधियों में से एक हैं जो इस सीट से तीन बार लोकसभा पहुंचने में कामयाब हुए. 1962 के बाद वह चौथी लोकसभा के दौरान मथुरा के तत्कालीन सांसद गिरिराज शरण सिंह उर्फ राजा बच्चू सिंह के निधन के चलते 1970 में हुए उपचुनाव में विजयी हुए. 

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