UP Maize Crop: योगी सरकार की मक्का पर मेहनत रंग लाई, लक्ष्य से 113 फीसदी ज्यादा हुई बुआई

UP Maize Crop: योगी सरकार की मक्का पर मेहनत रंग लाई, लक्ष्य से 113 फीसदी ज्यादा हुई बुआई

यूपी में योगी सरकार ने साल 2027 तक मक्का का उत्पादन दो गुना करने का लक्ष्य तय किया है. इसे पाने के लिए किसानों को मक्का की खेती के लिए जागरूक करने और बीज वितरित करने जैसे तमाम उपाय किए जा रहे हैं. इन उपायों के परिणामस्वरूप जायद सीजन में किसानों ने लक्ष्य से 113 फीसदी ज्यादा रकबे पर मक्के की बुआई की है.

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UP Maize Crop: योगी सरकार की मक्का पर मेहनत रंग लाई, लक्ष्य से 113 फीसदी ज्यादा हुई बुआईयूपी में मक्का की खेती को बढ़ावा दे रही है योगी सरकार, फोटो: साभार फ्रीपिक

यूपी में 2021-22 के दौरान मक्के का उत्पादन 14.67 लाख मीट्रिक टन था. योगी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में मक्के का उत्पादन साल 2027 तक दोगुना कर इसे 27.30 लाख मीट्रिक टन तक ले जाने का लक्ष्य तय किया है. इसके लिए सरकार मक्का का रकबा बढ़ाने के साथ इसकी उत्पादकता एवं उत्पादन बढ़ाने पर लगातार जोर दे रही है. इसके लिए तय किए गए उपायों को लागू करने का सिलसिला जायज के मौजूदा सीजन से शुरू हो चुका है. किसानों ने भी मक्के की फसल को मुनाफे का सौदा बनाने के लिए इसे अपनाना शुरू कर दिया है. सरकार ने इस साल  जायद की फसलों के तहत मक्का की बुआई का रकबा 1.71 लाख हेक्टेयर तक ले जाने का लक्ष्य तय किया था. कृष‍ि विभाग द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के मुताबिक जायद सीजन में किसानों ने 1.93 लाख हेक्टेयर रकबे में मक्के की बुआई की है. यह लक्ष्य का करीब 113 फीसद है.

किसान के लिए लाभप्रद है मक्का की खेती

यूपी में मक्का की खेती का रकबा बढ़ा कर 2027 तक इसकी उपज दोगुना करने के लक्ष्य के पीछे सरकार की मंशा, किसानों की आय में इजाफा करना है. जानकारों की राय में मक्का की खेती किसानों के लिए बहुपयोगी है. कई खूबियों से लैस मक्का की उपज तीनों फसली सीजन में हर तरह की जमीन में हो सकती है. 

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बात चाहे पोषक तत्वों की हो, उपयोगिता की हो या बेहतर उपज, सहफसली खेती या औद्योगिक प्रयोग की हो, मक्का इन सब के लिए मुफीद है. यह रबी, खरीफ एवं जायद, सभी सीजन में जल निकासी के प्रबंधन वाली हर तरह की जमीन में पैदा हो जाता है. इसीलिए किसानों के लिए खेती में मक्के काे लाजवाब माना गया है.

इथेनॉल से लेकर पशु आहार एवं औषधीय उपयोग

मक्के का प्रयोग ग्रेन बेस्ड इथेनॉल उत्पादन करने वाली औद्योगिक इकाइयों में होता है. इसके अलावा कुक्कुट पालन एवं पशुओं के पोषाहार में भी मक्का अहम भूमिका निभाता है. साथ ही दवा, कॉस्मेटिक उत्पादों, गोंद, कपड़े, कागज और अल्कोहल इंडस्ट्री में भी इसका प्रयोग होता है. खाद्य पदार्थों में मक्के को आटा, ढोकला, बेबी कॉर्न और पाप कॉर्न के रूप में खाया जाता है. इतना ही नहीं विभि‍न्न प्रकार के सूप में भी इसका अनिवार्य तौर पर इस्तेमाल होता है.

मक्का के बहुआयामी उपयोग काे देखते हुए इसकी खेती किसानों के लाभप्रद है. इसीलिए बाजार में मक्का की लगातार बढ़ रही मांग को देखते हुए सरकार, किसानों को इसकी उपज बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है.

एमएसपी के दायरे में मक्का

जानकारों की राय में मक्का बहुपयोगी है. इस कारण आने वाले समय में मक्के की मांग तेजी से बढ़ेगी. इसका अधिकतम लाभ प्रदेश के किसानों को मिले, इसके लिए सरकार मक्के की खेती के बारे में किसानों को लगातार जागरूक कर रही है. उनको खेती के उन्नत तौर तरीकों की जानकारी देने के साथ सीड रिप्लेसमेंट यानि बीज प्रतिस्थापन की दर को भी बढ़ाया जा रहा है.

किसानों को मक्के की उपज का वाजिब दाम मिले, इसके लिए सरकार पहले ही इसे न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के दायरे में ला चुकी है. मक्का को एमएसपी के दायरे में लाने के बाद से ही किसानों का रुझान इसके प्रति बढ़ा है. गौरतलब है कि मक्का में कार्बोहाइड्रेट, शुगर, वसा, प्रोटीन, फाइबर, विटामिन और मिनरल प्रचुर मात्रा में होता है. इस लिहाज से मक्का की खेती, कुपोषण के खिलाफ जंग साबित हो सकती है.

उन्नत खेती से बढ़ेगी उपज

विशेषज्ञों की मानें तो उन्नत खेती के जरिये मक्के की प्रति हेक्टेयर उपज 100 क्विंटल तक भी संभव है. देश में मक्के का प्रति हेक्टेयर सर्वाधिक उत्पादन लेने वाला राज्य तमिलनाडु है. यहां इसकी औसत उपज 59.39 कुंतल प्रति हेक्टेयर है. वहीं राष्ट्रीय स्तर पर मक्का की औसत उपज 26 कुंतल प्रति हेक्टेयर है.

यूपी में 2021-22 में मक्का की औसत उपज 21.63 कुंतल प्रति हेक्टेयर रही थी. ऐसे में यूपी में मक्के की उपज बढाने की भरपूर संभावना है. सरकार इस दिशा में कारगर उपाय अपनाते हुए निरंतर किसानों को मक्का की उपज बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है. 

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बुआई का समय एवं तरीका

क्रील सिस्टम इनीसिएटिव फॉर साउथ एशिया (सीसा) के कृष‍ि वैज्ञानिक डा.अजय कुमार के अनुसार खरीफ की फसल की बुआई के लिए 15 जून से 15 जुलाई तक का समय उपयुक्त होता है. अगर सिंचाई की सुविधा हो तो मई के दूसरे-तीसरे हफ्ते में भी इसकी बुआई की जा सकती है. इससे मानसून आने तक पौधे ऊपर आ जाएंगे और भारी बारिश से होने वाली क्षति नहीं होगी.

इसकी बुआई के लिए प्रति एकड़ करीब 8 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है. अच्छी उपज के लिए इसकी बुआई कतारबद्ध तरीके से की जाती है. एक लाइन से दूसरी लाइन की दूरी 60 सेमी एवं पौधे से पौधे की दूरी 20 सेमी रखी जाती है. बुआई के  दौरान यदि उपलब्ध हो तो किसान, बेड प्लान्टर का प्रयोग कर सकते हैं.

डा कुमार ने कहा कि कृषि जलवायु क्षेत्र के अनुसार मक्का की उन्नत प्रजातियों की बुआई करना बेहतर होता है. इसकी उन्नत प्रजातियों में डंकल डबल, कंचन 25, डीकेएस 9108, डीएचएम 117, एचआरएम-1, एनके 6240, पिनैवला, 900 एम और गोल्ड को बेहतर उत्पादकता वाला माना जाता है. वैसे तो मक्का 80-120 दिन में तैयार हो जाता है, मगर पॉपकॉर्न के लिए यह सिर्फ 60 दिन में ही तैयार हो जाता है.

 

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