भारत में Green Revolution के नाम पर रासायनिक खेती का प्रचलन शुरू होने से पहले प्राकृतिक तरीके से गौ आधारित खेती करने की ही परंपरा थी. इसमें खेती के लिए जरूरी संसाधनों की उपलब्धता, बाजार पर निर्भर नहीं थी. इसलिए Traditional Farming में खाद, बीज, सिंचाई और ऊर्जा जैसे संसाधनों को लेकर किसान आत्मनिर्भर थे. इसी वजह से किसानों के लिए खेती की लागत भी बहुत कम थी. Chemical Farming की वजह से कृषि लागत बढ़ने के कारण किसानों के लिए खेती घाटे का सौदा साबित होने लगी. इस वजह से अब किसान एक बार फिर पारंपरिक तरीके से खेती करने की ओर लौटने लगे हैं. इस काम में सरकार भी किसानों की मदद कर रही है. इसका असर बुंदेलखंड जैसे इलाकों में दिखने लगा है. सरकारी आंकड़ों के हवाले से बताया गया है कि बुंदेलखंड में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के कारण इस इलाके के 243 गांवों में 17 हजार से ज्यादा किसानों ने रासायनिक खेती से दूरी बना कर गौ आधारित खेती को अपना लिया है.
यूपी में Yogi Govt ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए Bundelkhand Division के सभी जिलों में क्लस्टर बनाकर किसानों को रसायन मुक्त खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया है. इसके फलस्वरूप इस इलाके में साल दर साल प्राकृतिक खेती का दायरा बढ़ रहा है.
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कृषि विभाग के आंकड़ों को मुताबिक झांसी मंडल में जालौन, ललितपुर और झांसी जिले के 17 हजार किसानों ने चालू खरीफ सीजन में Chemical Fertilizer से दूरी बना ली है. ये किसान प्राकृतिक खेती में इस्तेमाल होने वाले जीवामृत, घनजीवामृत और नीमास्त्र सहित अन्य जैविक दवाओं का इस्तेमाल खरीफ फसलों में कर रहे हैं. इसकी वजह से रासायनिक खाद और दवाओं की खपत में भी गिरावट दर्ज की जा रही है. 50 हेक्टेयर से शुरू हुई प्राकृतिक खेती को अब 243 गांवों के 17 हजार किसानों ने अपना लिया है.
कृषि विभाग के झांसी मंडल के संयुक्त निदेशक एलबी यादव ने बताया कि प्राकृतिक खेती अपनाने वाले किसानों को सरकार की ओर से खाद, बीज और दवाएं मुहैया कराई जा रही हैं. उन्होंने बताया कि खरीफ सीजन में बुंदेलखंड के किसान धान के अलावा मुख्य रूप से मूंगफली, उड़द, मूंग और तिल की फसल उगाते हैं.
इन फसलों की बुआई से पहले खरीफ सीजन के लिए खेत तैयार करने के लिए सरकार प्राकृतिक खेती अपनाने वाले किसानों को Green Manure के रूप में ढेंचा और सनई का बीज दे रही है. इसकी खेत में बुआई करके किसान खेत की मिट्टी में नाइट्रोजन की पूर्ति करते हैं. ढेंचा या सनई की उपज को खेत की मिट्टी में मिलाने के बाद खरीफ सीजन की फसलें बोने के लिए किसानों को अरहर, मूंग, उड़द, तिल और मूंगफली की उन्नत किस्मों के बीज भी मुहैया कराए गए हैं.
इसके अलावा इन किसानों को गुड़, गोबर, गौमूत्र और बेसन से जीवामृत बनाने की विधि भी सिखाई गई है. ये किसान अब Vermi Compost के रूप में जैविक खाद भी बनाना सीख गए हैं. इनके इस्तेमाल से किसान अब रासायनिक खाद एवं दवाओं की निर्भरता से मुक्त हो गए हैं.
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यादव ने बताया कि प्राकृतिक तरीके से खेती कर रहे किसानों की उपज को बाजार में उचित कीमत मिले, इसके लिए भी सरकार किसानों की मदद कर रही है. उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती के उत्पादों की बिक्री के लिए उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग द्वारा झांसी सहित अन्य स्थानों पर बिक्री केंद्र भी खोले गए हैं. ये केंद्र प्राकृतिक खेती से जुड़े किसानों के द्वारा ही संचालित हो रहे हैं.
उन्होंने कहा कि इन केंद्रों पर किसान प्राकृतिक खेती से उपजाए गए उत्पादों को उचित कीमत पर बेचते हैं. अब तक के अनुभव से पता चला है कि रासायनिक खेती की तुलना में प्राकृतिक खेती करने पर शुरुआती 2-3 साल में उत्पादन कम होता है. लेकिन, किसानों को प्राकृतिक खेती की उपज का दाम रासायनिक खेती की तुलना में बेहतर मिल जाता है.
यादव ने बताया कि रासायनिक खेती करने वाले किसान को औसतन प्रति एकड़ 25 से 50 हजार रुपये का लाभ मिलता है, वहीं प्राकृतिक खेती करने वाले किसान का लाभ 70 हजार रुपये से 1 लाख रुपये प्रति एकड़ तक है. यही वजह है कि किसान अब प्राकृतिक खेती अपनाने लगे हैं. उन्होंने बताया कि प्राकृतिक खेती की उपज का प्रसंस्करण कर Byproduct यानी गेहूं से दलिया, आटा आदि बनाने वाले किसानों को इससे भी ज्यादा लाभ मिल जाता है.
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