सब्जी की खेती से समय और कम लागत में ज्यादा आमदनी हो जाती है. इस वजह से अब किसानों का ध्यान इन फसलों की खेती पर आ रहा है. वहीं केंद्र सरकार ने हाल में प्राकृतिक खेती के लिए राष्ट्रीय मिशन (National Mission on Natural Farming) की घोषणा की है. इसी कड़ी में चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय कानपुर के वैज्ञानिक डॉ राजीव द्वारा बताया गया कि पत्ता गोभी, लोबिया (गर्मी), लोबिया (खरीफ) मटर, तोरई तथा मूंग, टमाटर पर प्राकृतिक खेती का शोध किया जा रहा है. फसलों पर विभिन्न प्राकृतिक घटकों जैसे जीवामृत, गोबर की खाद, जीवामृत व जैविक मल्चिंग का प्रयोग तथा गोबर की खाद व जैविक मल्चिंग का इस्तेमाल करके शत प्रतिशत रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग के तुलनात्मक अध्ययन किया जा रहा है.
डॉ राजीव ने बताया कि गत वर्ष के अध्ययन के अनुसार सब्जी फसलों में गोबर की खाद 20 टन/हे० व जैविक मल्चिंग 7.5 टन/हे० के प्रयोग से सर्वाधिक पत्ता गोभी में 210.09 कुंतल, लोबिया (गर्मी फसल) में 89.28 कुंतल, लोबिया (खरीफ फसल) में 87.12 कुंतल, मटर में 82.12 कुंतल, तोरई में 168.02 कुंतल, मूंग में 9.10 कुंतल तथा टमाटर में 350.68 कुंतल प्रति हेक्टेयर पैदावार हुई तथा इस प्राकृतिक विधि से प्राप्त उपज रासायनिक उर्वरकों की पैदावार के लगभग बराबर रही.
उन्होंने बताया कि शोध लगातार 3 साल तक किया जाएगा तथा 3 साल के परिणाम के आधार पर सब्जी आधारित फसल पद्धतियों के लिए प्राकृतिक खेती का मॉडल विकसित होगा. डॉ राजीव बताते हैं कि प्राकृतिक खेती के विस्तार के लिए केंद्र सरकार की कैबिनेट ने 25 नवंबर को कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के तहत देश में राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन को मंजूरी दी है जिसका लक्ष्य एक करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती के लिए प्रेरित करना है.
उन्होंने बताया कि खेती में रासायनिक उर्वरकों एवं कृषि रक्षा रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग से मिट्टी की सेहत खराब हो रही है, तथा गुणवत्ता युक्त उत्पाद भी नहीं मिल पा रहा है. इसलिए प्राकृतिक खेती अपनाना वर्तमान समय की मांग है जिससे मिट्टी की सेहत में सुधार होगा एवं खेती की लागत में कमी आएगी तथा टिकाऊ खेती का सपना साकार होगा. प्राकृतिक खेती का उद्देश्य सबके लिए सुरक्षित एवं पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराना है. इससे जैव विविधता को भी बढ़ावा मिलेगा.
दरअसल, किसान पैदावार बढ़ाने के लिए बड़ी मात्रा में रासायनिक खाद का उपयोग करते हैं. उससे न केवल शरीर को नुकसान पहुंचाता है बल्कि भूमि की उर्वरा शक्ति भी कम हो रही है. जमीन और उर्वरा शक्ति बढ़ाने और बेहद कम लागत में भरपूर पैदावार के लिए किसानों ने प्राकृतिक खेती करना शुरू कर दिया है.
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