मिर्च का नाम सुनकर हमारे दिलों दिमाग में इसके तीखेपन बार-बार खयाल आता है. वाराणसी सब्जी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों के द्वारा मिर्च की एक खास किस्म विकसित की गई है जिसका इस्तेमाल तीखेपन के लिए नहीं बल्कि सौंदर्य प्रसाधन के लिए इस्तेमाल हो रहा है. इस मिर्च को सलाद की तरह हम चबा भी सकते हैं. काशी सिंदूरी किस्म को विकसित करने वाले वैज्ञानिक राजेश कुमार ने बताया कि 5 वर्ष के लंबे प्रयास और प्रयोग के बाद इस खास किस्म को विकसित किया गया है. अब मिर्च को लाल, पीला, भूरा और नारंगी रंग में उगाया जा सकता है. वहीं कई विदेशी कंपनियों के द्वारा इस मिर्च से लिपस्टिक को बनाया जा रहा है. इस मिर्च की खेती करने वाले किसानों की आय में भी इजाफा होगा.
वाराणसी में स्थित भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान में अब तक सौ से ज्यादा सब्जी की उन्नत किस्मों विकसित किया जा चुका है. इसी संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ राजेश कुमार ने काशी सिंदूरी नाम की लाल मिर्च की एक विशेष किस्म को विकसित किया है. उन्होंने बताया कि यह देखने में लाल जरूर है, लेकिन इसमें तीखापन बिल्कुल भी नहीं है. इसे सलाद की तरह बड़े ही आराम से खाया जा सकता है. प्राकृतिक रंग के लिए इस मिर्च की किस्म को विकसित किया गया है. इस मिर्च की खेती करने वाले किसानों की आय में भी इजाफा होगा. सौंदर्य प्रसाधन कंपनियां इससे निकलने वाले प्राकृतिक लाल रंग को कई तरह से इस्तेमाल कर रही हैं.
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भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ राजेश कुमार ने बताया कि अमेरिका सहित कई यूरोपीय देशों में लिपस्टिक और कॉस्मेटिक आइटम बनाने के लिए लाल मिर्च के प्राकृतिक रंग का उपयोग किया जा रहा है. वही इस मिर्च के प्राकृतिक रंग का इस्तेमाल दवाओं से लेकर केक और सॉस बनाने में भी किया जा रहा है. काशी सिंदूरी मिर्च के पिगमेंट को सौंदर्य प्रसाधन में इस्तेमाल होने से किसानों को खूब आय में वृद्धि होगी. भारतीय बाजारों में हर्बल कॉस्मेटिक उत्पादों की मांग लगातार बढ़ रही है. इस लिहाज से यह मिर्च काफी ज्यादा उपयोगी मानी जा रही है. मिर्च की इस खास किस्म को उत्तर प्रदेश की जलवायु को ध्यान में रखकर तैयार की गई है.
भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के द्वारा विकसित काशी सिंदूरी की 1 हेक्टेयर में खेती करने के लिए 400 से 500 ग्राम बीच की जरूरत होती है. इस मिर्च को रबी और खरीफ दोनों ही मौसमों में बोया जा सकता है. बीज बोने के 30 दिनों के बाद पौधे को 45 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाया जाना चाहिए. वहीं मिर्च के लिए प्रति हेक्टेयर 110 किलोग्राम नाइट्रोजन, 80 किलोग्राम फास्फोरस और 80 किलोग्राम पोटाश की जरूरत होती है.
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