पूर्वांचल में महक रहा अफ्रीकन मैरीगोल्ड, कम लागत में क‍िसानों को म‍िल रहा अध‍िक मुुनाफा

पूर्वांचल में महक रहा अफ्रीकन मैरीगोल्ड, कम लागत में क‍िसानों को म‍िल रहा अध‍िक मुुनाफा

उत्तर प्रदेश में दो प्रकार के गेंदे के फूल की खेती की जा रही है, जिसमें फ्रेंच मैरीगोल्ड और अफ्रीकन किस्म है. फ्रेंच के पौधे काफी छोटे होते हैं और इनके फूल का आकार भी काफी छोटा होता है, जबकि अफ्रीकन मैरीगोल्ड के पौधे काफी बड़े और इनका फूल काफी बड़े आकार का होता है.

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पूर्वांचल में महक रहा अफ्रीकन मैरीगोल्ड, कम लागत में क‍िसानों को म‍िल रहा अध‍िक मुुनाफा

भारत को त्यौहारों का देश कहा जाता है और इन त्यौहारों में फूलों का विशेष महत्व होता है. वहीं देश के सभी मंदिरों में हर दिन सैकड़ों टन फूल का इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें सबसे ज्यादा गेंदे के फूल की डिमांड रहती है. फ्लोरीकल्चर मिशन के तहत फूलों की खेती को उत्तर प्रदेश में बढ़ावा देने के लिए नेशनल बॉटेनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट के द्वारा भी किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है. पूर्वांचल में फ्लोरीकल्चर मिशन के तहत गेंदे यानी मैरीगोल्ड के फूल की खेती का क्षेत्रफल बढ़ा है, जिसमें सबसे ज्यादा किसानों के द्वारा अफ्रीकन गेंदे की खेती की जा रही है. इस फूल का आकार काफी बड़ा होता है, जिसके चलते किसानों को ज्यादा उपज के साथ अच्छा मुनाफा भी मिल रहा है.

अफ्रीकन मैरीगोल्ड से बदल रही है किसानों की तकदीर

उत्तर प्रदेश में दो प्रकार के गेंदे के फूल की खेती की जा रही है, जिसमें फ्रेंच मैरीगोल्ड और अफ्रीकन किस्म है. फ्रेंच के पौधे काफी छोटे होते हैं और इनके फूल का आकार भी काफी छोटा होता है, जबकि अफ्रीकन मैरीगोल्ड के पौधे काफी बड़े और इनका फूल काफी बड़े आकार का होता है. वाराणसी, चंदौली और जौनपुर में किसानों के द्वारा अफ्रीकन मेरीगोल्ड की खेती बड़े पैमाने पर हो रही है. गेंदे के फूल की खेती के लिए 15 डिग्री सेल्सियस से लेकर 29 डिग्री सेल्सियस तक तापमान होना चाहिए. इसलिए सितंबर से लेकर मार्च तक इस फूल की खेती के लिए सबसे उपयुक्त समय होता है. किसान एक एकड़ में ₹30000 तक लगाकर अफ्रीकन मैरीगोल्ड की खेती से ₹200000 तक मुनाफा हासिल कर सकता है.

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मैरीगोल्ड की खेती का समय

गेंदे की खेती वैसे तो पूरे साल होती है, लेकिन नवंबर महीना खेती के लिए सबसे उपयुक्त समय माना जाता है. वाराणसी के जिला उद्यान अधिकारी सुभाष कुमार ने बताया कि अफ्रीकन और फ्रेंच गेंदा की खेती किसानों के द्वारा की जा रही है. गेंदे खेती के लिए मिट्टी की गुणवत्ता अच्छी होनी चाहिए. वही इसके लिए बलुई दोमट मिट्टी को सबसे उपयुक्त माना गया है. बारिश के मौसम में गेंदे की नर्सरी तैयार की जाती है. वहीं सर्दी के मौसम में उपज मिलना शुरू हो जाती है. गर्मी के मौसम में हर 5 से 7 दिन के अंतराल पर गेंदे के पौधे को पानी की जरूरत होती है. वहीं क्यारियों में पानी के निकास की व्यवस्था भी अच्छी होनी चाहिए.

नेपाल तक है बनारस के फूलों की मांग

वाराणसी  के जिला उद्यान अधिकारी सुभाष कुमार के द्वारा बताया गया की गेंदे के फूल की खेती किसानों के द्वारा वाराणसी में खूब की जा रही है. काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बनने के बाद फूलों की खपत में इजाफा हुआ है. वहीं अफ्रीकन मैरीगोल्ड एक गेंदे की उन्नत किस्में है. इस किस्म के फूल की डिमांड कोलकाता से लेकर नेपाल तक भेजें जा रहे है.

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