कृषि, कुदरत, किसान, आम इंसान और कीट पतंगों की सेहत के लिए मुफीद माने गए मोटे अनाज यानी मिलेट्स (Millets) की खूबियों से दुनिया वाकिफ तो है, लेकिन कुछ दशकों में गेहूं और चावल के इस्तेमाल की होड़ में मिलेट्स पीछे रह गए. मक्का, ज्वार, बाजरा, कोदों और सावां जैसे पारंपरिक अनाजों के महत्व को भारत की पहल पर दुनिया ने एक बार फिर समझा है. इसके मद्देनजर ही उत्तर प्रदेश सरकार ने मिलेट्स की उपज और उपभोग को बढ़ाने के लिये आक्रामक रणनीति अपनाते हुए एक खास कार्य योजना अमल में लाना शुरू किया है.
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने साल 2023 को ‘अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स ईयर’ (International Year Of Millets) के रूप में मनाने की पहल की है. विश्व में मिलेट्स के कुल उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी 41 प्रतिशत है. मोदी सरकार का लक्ष्य इसे बढ़ाकर 50 प्रतिशत तक लाना है. मिलेट्स उत्पादन के मामले में उत्तर प्रदेश भारत के अग्रणी राज्यों में शामिल है. इसे देखते हुए योगी सरकार ने मोटे अनाज का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य बनकर भारत को अग्रणी मिलेट्स उत्पादक देश बनाने में मददगार बनने का लक्ष्य तय किया है. इसके लिए सरकार ने मोटे अनाजों को लोकप्रिय बनाने की पहल तेज कर दी है.
उप्र के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने एक बयान में कहा कि राज्य के 51 जिलों में मिलेट्स की खूबियों के प्रति किसानों एवं जनसामान्य को जागरूक करने के लिए 2023 में आक्रामक प्रचार अभियान चलाया जाएगा. इसमें फसल चक्र पर आधारित खेती में मोटे अनाजों को शामिल करने से होने वाले लाभ के बारे में किसानों को जानकारी दी जाएगी. इसके साथ ही पोषण की दृष्टि से विशेष पोषक तत्व, प्रोटीन, जिंक, आयरन और विटामिन से भरपूर पौष्टिक खाद्यान्न के विकास को प्रोत्साहित किया जाएगा. इसके लिए राज्य एवं जिला स्तर पर सप्ताह में दो-दो दिन की संगोष्ठियां भी आयोजित होंगी.
उन्होंने कहा कि आम तौर पर मोटे अनाजों की खेती कम बारिश वाले इलाकों में अनुपजाऊ जमीन पर की जाती है. लेकिन सरकार की योजना है कि मोटे अनाज की खेती का रकबा और उपज बढ़ाने के लिए वर्षा आधारित क्षेत्रों में उर्वर भूमि पर भी किसान मिलेट्स की खेती को अपनाएं. इस कवायद के तहत राज्य सरकार किसानों को 5000 क्विंटल बाजरा, 7000 क्विंटल ज्वार, 200 क्विंटल कोदो और 200 क्विंटल सावां के बीज उपलब्ध कराएगी. प्रगतिशील किसानों को पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर इनके बीज की निःशुल्क मिनीकिट भी दी जायेंगी.
मिलेट्स की खेती करने के लिये किसानों को आक्रामक प्रचार अभियान के माध्यम से जागरुक एवं प्रोत्साहित किया जायेगा. इसके लिये समूचे बुंदेलखंड, पूर्वांचल एवं पश्चिमी उप्र के 51 जिलों में रोड शो किये जायेंगे. साथ ही होर्डिंग्स और वाॅल पेंटिग आदि के माध्यम से भी किसानों को मिलेट्स उपजाने के लिये प्रेरित किया जायेगा. इतना ही नहीं जिला एवं ब्लॉक स्तर पर राष्ट्रीय मिलेट्स दिवस मनाया जायेगा. प्रमुख मिलेट्स उत्पादक जिलों में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर इनकी खरीद की जायेगी. सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में मिलेट्स को बढ़ावा दिया जायेगा. समेकित बाल विकास एवं पुष्टाहार योजना और आश्रम पद्धति के विद्यालयों में मिलेट्स को बच्चों के पोषाहार में शामिल किया जाएगा. राज्य सरकार मिलेट्स की प्रोसेसिंग कर बिस्कुट, बेकरी, केक, ब्रेड, नूडल्स एवं कुकीज आदि बनाने वाली औद्योगिक इकाइयों की भी हर संभव मदद करेगी.
विश्व खाद्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक मोटे अनाज पैदा करने वाले प्रमुख देश भारत, नाइजर और सूडान हैं। इनके उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी करीब 41 फीसद है। मिलेट्स का उत्पादन में अग्रणी होने के बावजूद भारत मिलेट्स के निर्यात में पांचवें पायदान पर है. इस मामले में पहले तीन स्थान पर नेपाल, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब हैं। यूक्रेन एवं रूस के बाद भारत पांचवें स्थान पर है.
इसके मद्देनजर केंद्र सरकार ने केंद्रीय पूल में मिलेट्स की खरीद का लक्ष्य बढ़ा दिया है. साल 2021 में मिलेट्स की खरीद का लक्ष्य 6.5 लाख टन था. साल 2022 के लिए इसे बढ़ाकर 13 लाख टन कर दिया गया. खरीफ सीजन में नवंबर तक लक्ष्य से अधिक खरीद हो चुकी थी. इसके साथ ही राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम) के तहत देश के 14 प्रमुख मिलेट्स उत्पादक राज्यों के 212 जिलों में "पोषक फ़ूड मिशन योजना" लागू की जाएगी.
एनएफएसएम के अंतर्गत “न्यूट्री सीरियल्स” श्रेणी की फसलों में उप्र के कुल 24 जिले शामिल हैं. इनमें ज्वार के लिए बांदा, चित्रकूट, हमीरपुर, कानपुर देहात एवं कानपुर नगर को शामिल किया गया है. बाजरा के लिए 19 जिलों (आगरा, अलीगढ़, प्रयागराज, औरैया, बदायूं, बुलंदशहर, एटा, इटावा, फिरोजाबाद, गाजीपुर, हाथरस, जालौन, कानपुर देहात, कासगंज, मैनपुरी, मथुरा, मिर्जापुर, प्रतापगढ़ एवं संभल) को चुना गया है. सावां एवं कोदों के लिए एनएफएसए योजना के तहत सोनभद्र जिले को चुना गया है. केंद्र सरकार की इस योजना का लाभ इन जिले के किसानों को भी मिलेगा. पोषक फ़ूड मिशन योजना के तहत मोटा अनाज उगाने वाले किसानों को बेहतर प्रजाति के बीज, खेती के उन्नत तौर तरीकों, फसल संरक्षण के उपाय, उत्पादन के भंडारण के उचित तरीकों और प्रसंस्करण के बारे में जानकारी दी जाएगी.
बाजरा एवं ज्वार भारत के दो प्रमुख मोटे अनाज हैं. राजस्थान, उत्तर प्रदेश एवं महाराष्ट्र अग्रणी बाजरा उत्पादक राज्य हैं. राजस्थान में 43.48 लाख हेक्टेयर, उत्तर प्रदेश में 9.04 लाख हेक्टेयर और महाराष्ट्र में 6.88 लाख हेक्टेयर जमीन पर बाजरे की खेती होती है. बाजरे की उपज के लिहाज से उत्तर प्रदेश अव्वल है. उत्तर प्रदेश में बाजरे की उपज 2156 किग्रा प्रति हेक्टेयर है. इसकी राजस्थान में 1049 किग्रा और महाराष्ट्र में 955 किग्रा प्रति हेक्टेयर उपज है. उत्तर प्रदेश में रकबा और उपज दोनों बढ़ाने की खासी संभावना है.
इसके अलावा महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, तमिलनाडु एवं उत्तर प्रदेश ज्वार के प्रमुख उत्पादक राज्य हैं. रकबे के मामले में कर्नाटक एवं प्रति हेक्टेयर उपज के मामले में कर्नाटक अव्वल है। उत्तर प्रदेश में ज्वार का भी रकबा और उपज बढ़ाने की संभावनाएं हैं. योगी सरकार ने इसी मंशा के साथ 2021 में 1.71 लाख हेक्टेयर की तुलना में 2023 में ज्वार के रकबे का आच्छादन क्षेत्र 2.24 लाख हेक्टेयर करने का लक्ष्य रखा है. इसी तरह लुप्तप्राय हो रहे सावां, कोदो के आच्छादन का लक्ष्य भी 2023 के लिए करीब दोगुना कर दिया है. यह लक्ष्य हासिल करने के लिये राज्य में मिलेट्स की “क्लस्टर आधारित खेती” को बढ़ावा दिया जा रहा है.
कृषि विशेषज्ञ गिरीश पांडे ने मिलेट्स को प्रोत्साहन देने के सरकार के प्रयासों को सराहनीय बताते हुए कहा कि 2018 में ही भारत सरकार ने ‘राष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष’ मनाया था. इसके बाद से ही योगी सरकार ने उप्र में मिलेट्स को लोकप्रिय बनाने का काम शुरू कर दिया था. इस कड़ी में राज्य सरकार ने 18 जिलों में एमएसपी पर बाजरे की खरीद भी शुरू कर दी थी. पांडे ने कहा कि भारत मिलेट्स की उपज का रकबा और उत्पादकता बढ़ाकर इनके निर्यात को बढ़ाने के मकसद से आगे बढ़ रहा है. उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश ने प्रमुख बाजरा उत्पादक राज्य होने के नाते मिलेट्स के निर्यात के लाभ से अपने किसानों को जोड़ने के लिए यह अभियान तेज किया है.
पांडे के मुताबिक मिलेट्स को प्रोत्साहन देने से न सिर्फ प्रकृति एवं इंसानों की सेहत को लाभ होगा बल्कि खेती के लिए भी यह अनुकूल है. उन्होंने पर्यावरण से जुड़ी शोध संस्था सीएसई की एक रिपार्ट के हवाले से दलील दी कि बीते 150 सालों में विश्व में कीट पतंगों की 5 से 10 फीसद प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं. विलुप्त हुई प्रजातियों की संख्या 2.5 से 5 लाख तक हो सकती है. जैव विविधता के इस विनाश से भारत भी अछूता नहीं है. एक अन्य रिपोर्ट का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि भारत में 97 स्तनधारी, 94 पक्षियों एवं 482 पादप प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर है. पांडे ने कहा कि इसके लिए खेती में इस्तेमाल हो रहे कीटनाशकों की महत्वपूर्ण भूमिका है. आने वाले समय में जहरीली खेती की यह परंपरा प्राकृतिक असंतुलन के खतरे का पर्याय बन गई है. कम पानी से अनुपजाऊ जमीन में पैदा होने वाले मोटे अनाजों की खेती इस जैव संतुलन को बनाए रख सकती है. प्रकृति में सह अस्तित्व के लिए यह संतुलन जरूरी है.
मोटे अनाज सहित अन्य भारतीय पारंपरिक फसलों के बीज संग्रह से जुड़े ‘पद्मश्री’ बाबूलाल दाहिया ने भी खेती के गलत तरीके से पनप रहे जैव संकट को धरती के लिये गंभीर समस्या बताया. दाहिया, मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल बघेलखंड इलाके में मोटे अनाजों के संरक्षण का अभियान बीते दो दशक से चला रहे हैं. दाहिया ने इस समस्या के समाधान के बारे में कहा, “हमें उन फसलों की ओर लौटना होगा जो संक्रामक रोगों एवं कीटों के लिए प्रतिरोधी हों. अगर ये फसलें किसी भी तरह की मिट्टी में कम पानी और कम समय में उपजाई जाएं तो ज्यादा बेहतर होगा. बेशक, ये फसलें मोटे अनाजों की ही हो सकती हैं.”
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