दूसरे गन्ने की तुलना में अधिक उपज देंगी ये दो नई किस्में, रोगों से लड़ने में भी दमदार

दूसरे गन्ने की तुलना में अधिक उपज देंगी ये दो नई किस्में, रोगों से लड़ने में भी दमदार

उत्तर प्रदेश के किसान सीओ-238 किस्म से कम उपज मिलने के कारण काफी निराश हो रहे थे, लेकिन अब उन्हें एक नई उम्मीद मिली है. कृषि वैज्ञानिकों ने गन्ना की दो नई किस्मों का विकास किया है, जो न केवल ज्यादा उपज देंगी, बल्कि चीनी रिकवरी भी बेहतर होगी. इन नई किस्मों में अधिक चीनी रिकवरी, रोग प्रतिरोधक क्षमता और कम समय में अधिक उत्पादन की क्षमता है, जिससे किसानों की आय में वृद्धि हो सकती है. उत्तर प्रदेश के गन्ना विकास विभाग ने राज्यभर के किसानों को इन नई किस्मों को अपनाने की सलाह दी है. इस कदम से यूपी के किसानों के गन्ना की उपज में बढ़ोतरी और अच्छा मुनाफा मिलेगा. यह पहल न केवल किसानों के लिए लाभकारी होगी, बल्कि उत्तर प्रदेश के गन्ना उद्योग को भी मजबूती प्रदान करेगी.

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दूसरे गन्ने की तुलना में अधिक उपज देंगी ये दो नई किस्में, रोगों से लड़ने में भी दमदारगन्ने की दो नई वैरायटी तैयार

किसान अब बसंतकालीन गन्ना बुवाई की तैयारी कर रहे हैं. इसी बीच, उत्तर प्रदेश गन्ना विकास विभाग गन्ना आयुक्त की अध्यक्षता में "उ.प्र. बीज गन्ना एवं गन्ना किस्म स्वीकृति उप समिति" की एक अहम बैठक 11 फरवरी 2025 को हुई. इस बैठक में गन्ने की नई किस्मों पर विचार किया गया और किसानों के हित में अहम निर्णय लिए गए. उत्तर प्रदेश गन्ना विकास विभाग ने किसानों के लिए दो नई गन्ना किस्मों को. शा. 19231 जिसको ‘लाहिड़ी’ और को.से. 17451  पहचान की है,  जो लोकप्रिय किस्म सीओ -238 की तुलना में इस साल बेहतर उपज और अधिक चीनी  रिकवरी देने वाली है. उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद, शाहजहांपुर ने भी इन दो नई किस्मों को विशेष रूप से उत्तर प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में बेहतर परिणाम देने वाला बताया है क्योंकि इनकी उपज दर और चीनी की रिकवरी पिछली कई किस्मों से बेहतर है.

नई किस्म लाहिड़ी से मिलेगी भरपूर उपज

गन्ना शोध परिषद, शाहजहांपुर द्वारा विकसित की गई गन्ना किस्म को. शा. 19231 को ‘लाहिड़ी’ नाम दिया गया है. यह किस्म गन्ने की अधिक उपज देने वाली किस्म में पहचान की गई है. गन्ना विभाग के आंकड़ों के अनुसार, इस किस्म की इस साल औसत उपज 92.05 टन प्रति हेक्टेयर है. इसके साथ ही, गन्ने के रस में चीनी का प्रतिशत जनवरी माह में 17.85% और गन्ने में चीनी का रिकवरी प्रतिशत 13.20% पाया गया है.

वही दूसरी किस्म को.से. 17451 है, जिसे सेवरही संस्थान में विकसित किया गया है. इस किस्म का औसत उपज 87.96 टन प्रति हेक्टेयर है और जनवरी माह में गन्ने के रस में चीनी 16.63% और गन्ने में चीनी का रिकवरी 12.82% पाई गई है. जबकि, 0238 की किस्म ने एक दशक से अधिक समय से किसानों के बीच अपनी उपज और चीनी प्रतिशत के कारण लोकप्रियता हासिल की है. इस किस्म की इस साल औसत उपज 82.97 टन प्रति हेक्टेयर है. जनवरी गन्ने के रस में चीनी 17.8 और चीनी की रिकवरी 13.20% प्रतिशत पाई गई है. 

नई किस्में इन एरिया के लिए बेहतर

उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद ने इन नई किस्मों को किसानों के लिए जारी किया है. अब को.शा. 19231 किस्म को सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश में बोने के लिए सिफारिश की गई है, जबकि को.से. 17451 किस्म को विशेष रूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश के लिए बेहतर माना गया है.

गन्ना की नई किस्म को.शा. 19231 की विशेषता यह है कि गन्ने के पौधों में बारीक छिद्र और हल्के रोयें होते हैं, जिससे यह किस्म औसत से लेकर अच्छे गुणवत्ता वाले गन्ने का उत्पादन करती है. यह गन्ना लाल सड़न रोग के प्रति मध्यम रोगरोधी है, जिससे किसान को इसे उगाने में कम परेशानी होती है. को.से. 17451 किस्म के गन्ने में मध्यम मोटाई और ठोस संरचना होती है, और यह गन्ना लंबा और पोरी आकार में उगता है. इन दोनों किस्मों की खेती कर इससे गन्ना उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ चीनी मिलों में चीनी की मात्रा में भी बढ़ोतरी हो सकती है.

गन्ना किस्म 238: एक लोकप्रिय किस्म, पर अब चुनौतियां

गन्ने की किस्म 238 एक समय में किसानों के बीच बहुत लोकप्रिय थी. इसकी लोकप्रियता का कारण था इसकी अधिक उपज और चीनी की रिकवरी मात्रा का अधिक होना. लेकिन, समय के साथ इस किस्म में कुछ समस्याएं आने लगी हैं. गन्ना की सीओ 238 किस्म में लाल सड़न रोग का प्रकोप ज्यादा होने लगा है, जिससे गन्ने की उपज में भारी गिरावट आ गई है क्योंकि लाल सड़न रोग के कारण अब इस किस्म से पहले जैसी उपज नहीं मिल पाती है और अब इस किस्म में चीनी की मात्रा भी कम हो गई है.

इसलिए गन्ना विकास विभाग ने नई किस्मों को अपनाने की सलाह दी है क्योंकि नई किस्में वैरायटी 238 से अधिक उपज देती हैं. इन किस्मों में चीनी की मात्रा अधिक होती है, जिससे किसानों को अधिक लाभ मिलता है. कुछ नई किस्में लाल सड़न रोग के लिए प्रतिरोधी हैं, जिससे किसानों को कम नुकसान होता है.

 

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