पुराने आम के बागों को मिलेगा नया जीवन (Image-Social media)उत्तर प्रदेश में आम का उत्पादन करने वाले किसानों को एक बड़ी राहत भरी खबर है. इसी कड़ी में राजधानी लखनऊ स्थित मेटा एग्रीटेक प्राइवेट लिमिटेड ने अवध आम उत्पादक बागवानी समिति, नबीपनाह, मलिहाबाद के साथ मिलकर 'कवच संरक्षण प्लान' के तहत आम के बागों की वैज्ञानिक कटाई-छंटाई के कार्य का शुभारंभ किया. यह आयोजन जीतबहादुर मार्केट, वाजिदनगर चौराहा, अंधे की चौकी रोड, मलीहाबाद में हुआ. इस अवसर पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के तहत लखनऊ स्थित सेंट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ फॉर सबट्रॉपिकल हॉर्टिकल्चर (Central Institute for Subtropical Horticulture ) रहमानखेड़ा के निदेशक डॉ टी दामोदरन मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद रहे.
मेटा एग्रीटेक के संस्थापक मयंक सिंह ने बताया कि इस कार्यक्रम का उद्देश्य मेटा एग्रो और अवध आम उत्पादक एवम बागवानी समिति द्वारा आम के बागों की देखभाल और उत्पादकता में सुधार हेतु 'कवच संरक्षण प्लान' सेवा का शुभारंभ था. उन्होंने बताया कि मेटा एग्रो द्वारा कवच संरक्षण प्लान के तहत वैज्ञानिक तरीके से बागों की कटाई-छंटाई व पोषण और कीट प्रबंधन किस प्रकार किया जाएगा. वहीं हर बाग का ऑर्चर्ड लॉग बुक, पेड़ों की जियो टैगिंग और डिजिटल मैपिंग के बारे में भी बताया जा रहा है. अवध आम उत्पादक एवम बागवानी समिति के महासचिव उपेंद्र कुमार सिंह ने बताया कि इस बड़ी पहल का उद्देश्य किसानों को आधुनिक तकनीकों से जोड़ना और उनकी आय बढ़ाने में मदद करना है.
उल्लेखनीय है कि हाल ही में उद्यान विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार ने अवध आम उत्पादक एवम बागवानी समिति को 74 बागों की वैज्ञानिक कटाई-छंटाई करने की अनुमति प्रदान की है. उपेंद्र कुमार सिंह ने किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि ज़्यादा से ज़्यादा किसान इस सेवा का लाभ उठायें और अपने बागों में अधिक से अधिक तकनीक और वैज्ञानिक प्रबंधन को अपना कर बाज़ार में वर्चस्व कायम करें. उन्होंने कहा कि आम के बेहतर फलन, अच्छे उत्पादन और न्यूनतम रोग के लिए वैज्ञानिक तकनीक से आम के पेड़ों की कटाई-छंटाई बेहद जरूरी है. वहीं मौजूदा समय आम की कटाई-छंटाई कर लिए काफी उपयुक्त हैं.
उधर, योगी सरकार ने यह भी फैसला लिया है कि आम उत्पादकों को आम के पुराने वृक्षों के जीर्णोद्धार के लिए पेडों की ऊंचाई कम करने और उनकी उत्पादकता बनाये रखने के लिए की जाने वाली कटाई-छंटाई के लिए किसी सरकारी विभाग से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है. इस फैसले से आम के पुराने बागों का कैनोपी प्रबंधन आसान हो गया है. इसका नतीजा आने वाले कुछ वर्षों में दिखेगा. कैनोपी प्रबंधन के कारण आम के पुराने बाग नए सरीखे हो जाएंगे. फलत अच्छी होने से उत्पादन तो बढ़ेगा ही, फलों की गुणवत्ता भी सुधरेगी. इससे निर्यात की नई संभावनाओं का रास्ता साफ होगा. वहीं पुराने आम के बागों को नया जीवन मिलेगा.
बता दें कि प्रदेश में बड़े पैमाने पर आम की खेती की जाती है. यहां 2.6 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में आम की खेती की जाती है. राज्य में 45 लाख टन आम का उत्पादन होता है. हालांकि राज्य में 40 फीसदी अधिक ऐसे बगीचे हैं जिनकी उम्र 40 साल के पार हो चुकी है. जो लगभग एक लाख हेक्टेयर है.
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