पहाड़ों पर हो रही लगातार बर्फबारी का असर उत्तर भारत में देखा जा सकता है. वाराणसी और आसपास के खेती प्रधान इलाके भी इससे अछूते नहीं हैं. नए साल की शुरुआत के साथ ही मंगलवार को तीसरे दिन भी भगवान भास्कर ने दर्शन नहीं दिए. इस पूरे इलाके में पारे में लगातार गिरावट (cold wave) देखी जा रही है. वाराणसी में अधिकतम तापमान 15 डिग्री तो न्यूनतम तापमान 10 डिग्री तक आ पहुंचा है. तीन दिनों से कोहरा भी वाराणसी को ढके हुए है. मौसम की इस मार से न केवल इंसान बल्कि फसलों पर भी खतरा मंडराने लगा है.
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU) के भू-भौतिकी विभाग के कृषि मौसम वैज्ञानिक शिवमंगल सिंह का कहना है कि अभी सप्ताह भर इसी तरह कोहरा छाया रहेगा. पारा और भी गिरने का उम्मीद है जिससे ठंड बढ़ जाएगी. उन्होंने बताया कि आने वाले दिनों में शीतलहर बढ़ने की संभावना है. शिवमंगल सिंह ने कहा कि किसान भाई-बहनों को इस मौसम में फसलों को बचाकर चलना है. कृषि वैज्ञानिक शिवमंगल सिंह कहते हैं, इस मौसम में मुख्य फसल गेहूं, मटर और आलू है. इन सब फसलों पर शीतलहर का असर पड़ता है. मौसम के कारण फसलों को झुलसा रोग भी हो जाता है. इन सब फसलों पर दवाओं का छिड़काव करना चाहिए.
गेहूं को लेकर कृषि वैज्ञानिक शिवमंगल सिंह कहते हैं, अगर मौसम खराब हो रहा है तो गेहूं की खेतों में सिंचाई कर देनी चाहिए. हल्की सिंचाई करने से मौसम का प्रभाव (cold wave) इन फसलों पर नहीं पड़ता. इसी प्रकार आलू के खेतों में भी पानी भर देना चाहिए. पशुपालन के हिसाब से उन्होंने बताया कि पशुओं को छायादार स्थान पर ही बांधना चाहिए और धुंआ कर देना चाहिए ताकि उन पशुओं पर मौसम का कम प्रभाव पड़े और जूट के बोरे से उनको ढक देना चाहिए. इंसानों की तरह मवेशियों को भी मौसम की मार झेलनी पड़ती है. ठंड से वे भी उतने ही प्रभावित होते हैं जितने की इंसान. ऐसे में मवेशियों की सेहत का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए.
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आने वाले दिनों में कोहरा और ओस बढ़ने की संभावना है. ऐसे में तापमान तेजी से गिर सकता है. चार डिग्री से अधिक तापमान होने पर पाला (cold wave) पड़ने की संभावना कम रहती है. लेकिन पारा तेजी से गिरे तो पाला फसलों को चौपट करता है. कोहरा फसलों के लिए लाभदायक है. जहां सरसों की फसल में फूल गिर गए हैं, उनके लिए कोहरा फायदेमंद है. जबकि सरसों में 50 प्रतिशत से अधिक फूल रहने पर सफेद रोली रोग लगने की आशंका रहती है. गेहूं, जौ, चना और सब्जियों के लिए कोहरा फायदेमंद है. कोहरे से पाला पड़ने की संभावना कम रहती है. वही अगर शीतलहर या पाला पड़ने लगे तो फसलों को भारी नुकसान होता है.
रात के समय पौधों को प्लास्टिक से ढंक दें. इससे फसलें शीतलहर और पाले से बच जाती हैं. खेतों में उगाए गए फलदार पौधे या सब्जियों को फूस की बनी टाट या पुआल से ढंक सकते हैं. ध्यान रखें कि टाट भारी न हो, वरना पौधों के टूटने का खतरा रहता है. सरसों को पाले से बचाने के लिए उस पर थायोयूरिया का छिड़काव करना चाहिए. इसके लिए थायोयूरिया आधा ग्राम या 2 ग्राम घुलनशील गंधक एक लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए. इस छिड़काव से फसल को 15 दिन तक पाले से बचाया जा सकता है.
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फल और सब्जियों के पौधों को रात में प्लास्टिक की शीट से कवर कर देना चाहिए. इससे फसलों पर पाला नहीं पड़ता और रात में मिट्टी का तापमान भी नहीं गिरता. सुबह धूप होने पर प्लास्टिक की शीट हटा दें ताकि धूप पौधों पर पड़े और पाला का असर खत्म हो. पपीता को पाले से बचाना हो तो खेत के चारों ओर शेड बना दें या पौधे के ऊपरी हिस्से को पुरानी बोरी या पराली से ढंक दें. खेतों के आसपास धुआं करने से भी पाले से बचा जा सकता है.(इनपुट-रोशन जायसवाल)
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