भारत दुनिया में वनस्पति तेल का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता और सबसे बड़ा आयातक देश है. भारत में तिलहन का उत्पादन 2016-17 से लगातार बढ़ता जा रहा है. 2015-16 से 2020-21 तक इसमें लगभग 43 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई. ऐसे में इस बढ़ोतरी का कारण जनसंख्या में हुई वृद्धि से लेकर शहरीकरण और पारंपरिक भोजन में हुए बदलाव को बताया जा रहा है.
खाद्य तेल के लगातार बढ़ते आयात को देखते हुए, तेल उत्पादन बढाने के लिए सरकार 2018-19 से देश के सभी जिलों में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन तिलहन की शुरुआत की थी.
अगस्त 2021 में सरकार ने ‘क्षेत्र विस्तार का दोहन करने और मूल्य प्रोत्साहनों के माध्यम से' खाद्य तेलों की उपलब्धता बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय खाद्य तेल-आयल-पाम (एनएमईओ-ओपी) आरंभ किया था. स्कीम का लक्ष्य 2025-26 तक आयल-पाम के लिए 6.5 लाख हेक्टेयर के अतिरिक्तक क्षेत्र को कवर करना और इसे 10 लाख हेक्टेयर के लक्ष्य तक पहुंचना है. इसके अतिरिक्त, स्कीम का लक्ष्य क्रूड पॉम ऑयल (सीपीओ) उत्पादन को बढाकर 2025-26 तक 11.20 लाख टन और 2029-30 तक 28 लाख टन तक पहुंचाना है.
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वहीं ताड़ की गिरी, बिनौला, रेपसीड, और सूरजमुखी के बीज का उत्पादन प्रभावित होने की आशंका से वैश्विक तिलहन उत्पादन अनुमान कम से कम एक मिलियन टन (mt) कम कर दिया गया है. हालांकि, चालू सीजन (नवंबर 2022-अक्टूबर 2023) के दौरान कुल तिलहन उत्पादन पिछले सीजन की तुलना में 6 प्रतिशत अधिक रहने का अनुमान है.
यूएस डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर (यूएसडीए) के मुताबिक, इस सीजन में सोयाबीन का उत्पादन करीब 10 फीसदी बढ़कर 391.17 मिलियन टन होने से तिलहन का उत्पादन ज्यादा होगा, जो एक साल पहले 355.61 मिलियन टन था. जिसको लेकर खाद्य तेल का उत्पादन एक साल पहले 208.95 मिलियन टन था वो 4 प्रतिशत बढ़कर 217.55 मिलियन टन हो जाने का अनुमान लगाया जा रहा है.
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वैश्विक खाद्य तेल की आपूर्ति इस मौसम में कम से कम 7 मिलियन टन अधिक होने की संभावना है, तिलहन उत्पादन में 30 मिलियन टन से अधिक की वृद्धि का अनुमान है. सूरजमुखी के बीजों की उपलब्धता अधिक होने के कारण सोयाबीन की कीमतों में कमी देखी गयी है. ऐसे में जानकारों का कहना है कि आने वाले समय में सोयाबीन और पाम ऑयल दोनों की कीमतों में कमी देखने को मिल सकती है.
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