गेहूं की महंगाई को देखते हुए केंद्र सरकार ओपन मार्केट सेल स्कीम (OMSS) के तहत एक फरवरी 2022 से अब तक काफी सस्ते दाम पर खुले बाजार में 55 लाख टन से अधिक गेहूं बेच चुकी है. इसके बावजूद न तो गेहूं का दाम कम हुआ है और न आटे का. दोनों की महंगाई जस की तस बनी हुई है. आम आदमी को इसका कोई फायदा होता हुआ नहीं दिख रहा है. तो फिर सवाल यह है कि आखिर ओएमएसएस का किसे और क्या फायदा? क्या इस स्कीम के बहाने किसी खास वर्ग को फायदा देने की कोशिश की जा रही है और पर्चा फट रहा है उपभोक्ताओं के नाम. किसानों का तो सौ फीसदी इससे नुकसान हो ही रहा है. जबकि आटे और गेहूं का न्यूनतम और अधिकतम दोनों दाम बढ़ चुका है. इसकी तस्दीक खुद सरकारी रिपोर्ट कर रही है.
उपभोक्ता मामले विभाग के प्राइस मॉनिटरिंग डिवीजन के अनुसार 15 जनवरी 2023 को गेहूं का अधिकतम दाम 47 रुपये प्रति किलो था, जो 15 जनवरी 2024 को बढ़कर 54 रुपये प्रति किलो हो गया. यानी 7 रुपये किलो की वृद्धि हो गई. पिछले साल 15 जनवरी को गेहूं का न्यूनतम दाम 20 रुपये किलो था जो इस साल एक रुपये किलो बढ़कर 21 के स्तर पर पहुंच गया. गेहूं के आटे का अधिकतम दाम 15 जनवरी 2023 को 64 रुपये किलो था जो 15 जनवरी 2024 को बढ़कर 69 रुपये किलो हो गया, यानी पांच रुपये की वृद्धि हो गई. जबकि न्यूनतम दाम 23 से बढ़कर 27 रुपये किलो हो गया. यानी चार रुपये किलो की वृद्धि दर्ज की गई. इसके बावजूद सरकारी अधिकारी ओएमएसएस का प्रचार ऐसा कर रहे हैं जैसे कि यह गेहूं और आटे की महंगाई कम करने वाला ब्रह्मास्त्र है.
इसे भी पढ़ें: एक्सपोर्ट बैन से प्याज उत्पादक किसानों को कितना नुकसान, इस रिपोर्ट को पढ़कर हो जाएंगे हैरान
केंद्र सरकार गेहूं की महंगाई कम करने के नाम पर 31 मार्च 2024 तक तक कुल 101.5 लाख टन गेहूं ओएमएसएस के तहत रियायती दर पर बेचने वाली है. ताकि गेहूं और आटा की कीमतें कंट्रोल में रहें. लेकिन इसमें से जो 55 लाख टन बिक चुका है उसका बाजार पर कोई असर नहीं दिख रहा. क्योंकि गेहूं और आटे की कीमतें तो बढ़ गई हैं. अब इसका खेल समझिए. ओएमएसएस के तहत केंद्र सरकार आम उपभोक्ताओं को सस्ता गेहूं नहीं देती. आम उपभोक्ताओं को सस्ता गेहूं देती तो बात समझ में आती. इसके तहत बाजार भाव से काफी कम दाम पर बड़े मिलर्स और सहकारी एजेंसियों को गेहूं दिया जाता है.
केंद्र सरकार ने 2125 रुपये प्रति क्विंटल पर किसानों से गेहूं खरीदा. उसके बाद उसके रखरखाव और ट्रांसपोर्टेशन पर प्रति किलो करीब 10 रुपये खर्च किया. यानी सरकार को गेहूं लगभग 32 रुपये किलो पड़ा. जबकि मिलर्स को उसने औसत 22 रुपये किलो पर इसलिए गेहूं दिया ताकि महंगाई कम हो. अब सोचिए कि 55 लाख टन गेहूं इसी तरह रियायती दर पर निजी क्षेत्र को दिया जा चुका है. इस तरह सरकारी पैसे का भारी नुकसान हुआ और जनता तक उसका फायदा नहीं पहुंचा.
दरअसल, मिलर्स ने सरकार से सस्ता गेहूं तो लिया लेकिन उसका फायदा जनता को नहीं दिया. इस बात की पुष्टि खुद सरकार के ही आंकड़े कर रहे हैं. ये तो रहा मॉनिटरिंग डिवीजन की रिपोर्ट का विश्लेषण. अब जरा चार राज्यों के मंडी भाव को भी समझ लेते हैं कि इस साल गेहूं बाजार का क्या रुख रहने वाला है.
(Source: e-NAM/15-01-2024)
देश की अधिकांश मंडियों में गेहूं का दाम 2,125 रुपये प्रति क्विंटल की एमएसपी से अधिक है. वो भी तब जब 13 मई 2022 से गेहूं का एक्सपोर्ट बैन है और महंगाई कम करने के नाम पर ओएमएसएस के तहत निजी क्षेत्र को सस्ता गेहूं दिया जा रहा है. बहरहाल, कुछ मार्केट विशेषज्ञों का मानना है कि गेहूं के दाम की चाल को देखते हुए ऐसा लगता है कि सरकार इस साल भी बफर स्टॉक के लिए पर्याप्त गेहूं नहीं खरीद पाएगी. पिछले दो साल से वो लक्ष्य पूरा नहीं कर पा रही है. क्योंकि ओपन मार्केट में अधिक दाम मिलने की वजह से किसान सरकार को गेहूं बेचना पसंद नहीं कर रहे हैं.
इसे भी पढ़ें: Pulses Price: एक साल में ही 79 रुपये किलो महंगी हुई अरहर की दाल, जानिए क्या है वजह
इस साल सरकार के पास इसे पूरा करने वाले दो हथियार मौजूद हैं. एक ओएमएसएस और दूसरा एमएसपी पर बोनस. जब किसानों के खेत में गेहूं की फसल तैयार हो जाएगी तब सरकार ओएमएसएस के तहत रियायती दर पर निजी क्षेत्र को इतना गेहूं बेच देगी कि अचानक दाम गिर जाएगा. क्योंकि नई फसल आने से मंडियों में आवक भी बढ़ जाएगी. इस तरह किसान एमएसपी पर सरकार को गेहूं बेचने के लिए मजबूर हो जाएंगे. इससे किसानों को नुकसान पहुंचेगा. क्योंकि ओएमएसएस के तहत जान बूझकर उनका दाम गिराने की कोशिश की जाएगी. दूसरा हथियार यह है कि, राजस्थान और मध्य प्रदेश में वहां की राज्य सरकारें एमएसपी पर बोनस देकर 2700 रुपये प्रति क्विंटल पर गेहूं खरीदने वाली हैं इसलिए इन दोनों सूबों में बंपर सरकारी खरीद हो सकती है.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today