हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (HAU) ने फसलों की 5 नई किस्में तैयार की हैं. इन फसलों में ज्वार, बाजरा, काबुली चना और मसूर की किस्में हैं. विश्वविद्यालय ने कहा है कि ये सभी किस्में रोगों के लिए सहनशील और अधिक उपज देने वाली हैं. इन फसलों का लाभ अधिक से अधिक किसानों तक पहुंचे इसके लिए एचएयू ने पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) के तहत एक कंपनी से समझौता किया है. इसी कड़ी में अलग-अलग उन्नत किस्मों (ज्वार, बाजरा, हरियाणा काबुली चना और मसूर) को बढ़ावा देने के लिए स्टार एग्रीसीड्स प्राईवेट लिमिटेड संगरिया हनुमानगढ़ (राजस्थान) के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए हैं.
इस पहल से राजस्थान सहित अन्य राज्यों के किसानों को भी इन उन्नत किस्मों का लाभ मिलेगा. किसान इन उन्नत किस्मों की खेती कर अधिक से अधिक पैदावार ले सकेंगे. आइए जान लेते हैं कि वो उन्नत किस्में कौन सी हैं जिसे एचएयू ने तैयार किया है.
HAU की ओर से विकसित एचएचबी-299 एक बायोफोर्टिफाइड किस्म है. इस किस्म में अन्य किस्मों की तुलना में अधिक पैदावार मिलती है और यह रोग रोधी भी है. यह बाजरा की अधिक लौह युक्त (73 पीपीएम) संकर किस्म है. इसके सिट्टे मध्यम लंबे होते हैं. बाजरा की यह किस्म 75-81 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. यह किस्म हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, गुजरात, पंजाब, महाराष्ट्र और तमिलनाडु के सिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है. अच्छा रख-रखाव करने पर यह किस्म 49.0 क्विंटल/हेक्टेयर तक पैदावार देने की क्षमता रखती है.
देश के सभी चारा ज्वार उत्पादक क्षेत्रों में इस फसल की बिजाई की जाती है. एक बार कटाई वाली इस ज्वार के सूखे चारे की उपज 152.67 क्विंटल/हेक्टेयर, हरा चारा उपज 482.81 क्विंटल/हेक्टेयर और बीज उपज 13.39 क्विंटल/हेक्टेयर है.
ज्वार सीएसवी 64 एफ (एकल कटाई) की हरे चारे की उपज 466.3 क्विंटल/हेक्टेयर, सूखे चारे की उपज 121.8 क्विंटल/हेक्टेयर और बीज उपज 15.2 क्विंटल/हेक्टेयर है. यह किस्म उत्तर भारत के सभी चारा ज्वार क्षेत्रों के लिए सिफारिश की जाती है.
यह काबुली चने की एक उच्च उपज देने वाली और जल्दी पकने वाली किस्म है. यह किस्म उखेड़ा रोग के प्रति सहनशील है. हरियाणा में बिजाई के लिए उपयुक्त किस्म है जिसकी औसत पैदावार 24.55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और यह 151 दिन में पकने वाली किस्म है.
इस फसल की औसत उपज 15-16 क्विंटल/हेक्टेयर है. इसकी मध्यम परिपक्वता की अवधि 130 से 135 दिन है. रतुआ रोग प्रतिरोधक क्षमता वाली यह फसल उखेड़ा रोग प्रतिरोधक क्षमता रखती है.
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