भारत में उगाई जाने वाली सभी फसलों की अपनी अलग पहचान होती है. ये सभी फसलें अपनी बेहतर क्वालिटी और फायदों के लिए मशहूर होती हैं. कई फसलें अपने अनोखे नाम के लिए तो कई अपने स्वाद के तौर पर जानी जाती हैं. ऐसी है एक फसल है जिसकी वैरायटी का नाम 'पूसा 3022'है. दरअसल, ये वैरायटी काबुली चने की एक खास किस्म है, जिसकी खेती रबी सीजन में की जाती है. वहीं, बात करें काबुली चने की तो बाज़ार में इसकी हमेशा मांग बनी रहती है. लोग इस चने का छोला खाना खुब पसंद करते हैं. इसकी खेती अलग-अलग राज्यों में बड़े पैमाने पर की जाती है. ऐसे में आइए जानते हैं चने की 5 बेस्ट वैरायटी के बारे में.
पूसा 3022: काबुली चने की पूसा 3022 सूखा सहिष्णु किस्म है. ये किस्म अपने बेहतर पैदावार देने के लिए जानी जाती है. काबुली चने की नई किस्म पूसा 3022 को विकसित करने के लिए ’जीनोमिक असिस्टेड ब्रीडिंग’ तकनीकों का उपयोग किया गया है. इस किस्म को पककर तैयार होने में 90 से 95 दिनों का वक्त लगता है.
श्वेता: श्वेता काबुली चना एक ऐसी किस्म है जो कम समय पक जाती है, इसका दूसरा नाम ICC-2 भी है. इस किस्म के दाने मध्यम मोटाई के होते हैं, इसके पकने का समय तकरीबन 85 से 90 दिन का रहता है. इस किस्म का उत्पादन प्रति हैक्टेयर 15 से 20 क्विंटल तक प्राप्त कर सकता है.
मेक्सिकन बोल्ड: यह काबुली चना की विदेशी किस्म है. इसकी अधिक पैदावार बीरानी जमीन पर ली जा सकती है यानी इसको कम में उगाया जा सकता है. ये किस्म पकने में तकरीबन 90 से 100 दिन लेती है. इसके दानों का साइज बड़ा और सफेद होता है.
हरियाणा काबुली नं-1: इस किस्म को हरियाणा के हिसार में स्थित, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा अधिक पैदावार के विकसित की गई है. इस किस्म को पकने में 110 से 130 दिन का समय लगता है. वही, उत्पादन में उससे 25 से 30 क्विंटल प्राप्त किया जा सकता है. इसकी एक खासियत यह है कि इसमें रोग नहीं लगता है.
काक-2: इस किस्म को पकने में मध्यम समय लगता है. इस किस्म में रोग लगने की समस्या इस पौधे में नहीं आती है. यह तकरीबन 110 से 120 दिन लेती है. उत्पादन के लिहाज से यह तकरीबन 15 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर देती है. इसके फल यानी दानों का आकार सामान्य होता है.
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