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क्या है कैमूर का मोकरी चावल जो एक एकड़ में देता है 3 क्विंटल पैदावार? जून में होती है खेती

क्या है कैमूर का मोकरी चावल जो एक एकड़ में देता है 3 क्विंटल पैदावार? जून में होती है खेती

कैमूर जिले का मोकरी चावल भी ऐसा ही है. यह बहुत खास चावल है, इसल‍िए पूरी दुनिया में धूम मचा रहा है. इसके धान की कीमत भी पांच से छह हजार रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल है. इसी जिले के भभुआ प्रखंड के मोकरी गांव का सोनाचूर चावल अपने सुगंध और गुणवत्ता को लेकर देश-विदेश में अपनी अलग पहचान बनाए हुए है.मोकरी चावल की खेती जून-जुलाई के बीच होती है. इसके बाद सिंचाई, खाद और पानी दिया जाता है.

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मोकरी चावल मोकरी चावल

हमारे देश में चावल की एक से बढ़कर एक क‍िस्में हैं. जो स्थानीय स्तर पर लोकप्र‍िय हैं. देश के हर इलाके में ऐसी क‍िस्में म‍िलेंगी. ब‍िहार के भी कई क्षेत्रों में व‍िशेष चावल की खेती होती है. कैमूर जिले का मोकरी चावल भी ऐसा ही है. यह बहुत खास चावल है, इसल‍िए पूरी दुनिया में धूम मचा रहा है. इसके धान की कीमत भी पांच से छह हजार रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल है. इसी जिले के भभुआ प्रखंड के मोकरी गांव का सोनाचूर चावल अपने सुगंध और गुणवत्ता को लेकर देश-विदेश में अपनी अलग पहचान बनाए हुए है. भभुआ प्रखंड स्थित मोकरी गांव में इसका उत्पादन होता है. अब व्यापक स्तर पर इसका निर्यात किया जा रहा है. 

इस चावल की मांग हमेशा बड़े पैमाने पर रहती है, जिसे किसान अपने पास कुछ चावल रखकर बाकी शेष बेचकर अच्छा मुनाफा कमाते हैं. मोकरी चावल की खेती करने वाले किसानों से काफी पहले ही व्यापारी चावल खरीद को लेकर समझौता कर लेते हैं. इसकी मांग में इजाफा तब और हुआ, जब अयोध्या में भगवान श्री राम को भोग लगाने के लिए इस चावल का इस्तेमाल किया गया. किसान बताते हैं कि मोकरी गांव में पहले 150 एकड़ जमीन में इस चावल की खेती होती थी, जो बढ़कर 200 एकड़ से अधिक में होने लगी है. 250 किसान मोकरी चावल का उत्पादन करते हैं. परसियां, मोकरी, बौरई आदि इलाके में यह फसल लगाई जाती रही है. लगातार इसका एर‍िया बढ़ रहा है. 

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कब होती है इसकी खेती

मोकरी चावल की खेती जून-जुलाई के बीच होती है. इसके बाद सिंचाई, खाद और पानी दिया जाता है. नवंबर से दिसंबर के बीच धान की कटनी शुरू की जाती है. इसके बाद धान मिल में ले जाकर किसान उसे कुटवाते हैं. वहीं, खेतों से धान की कटनी शुरू होने के साथ व्यापारी पहुंचने लगते हैं. किसानों ने बताया कि प्रति क्विंटल छह हजार रुपये फसल की कीमत मिल रही है. किसान जंग बहादुर ने बताया कि इस क्षेत्र की मिट्टी कुछ खास है. पहाड़ से सटे होने के काारण मिट्टी काफी उपजाऊ है. पहाड़ी से पानी रिसाव कर खेतों में आता है, जो खेतों की मिट्टी को उपजाऊ बनाता है. इस तरह खास धान का उत्पादन होता है.

सिंचाई के लिए कोई व्यवस्था नहीं

इतने लोकप्र‍िय चावल को उगाने के बावजूद किसानों का एक दर्द है. उन्होंने कहा कि कैमूर की यह फसल पूरी दुनिया में धूम मचा रही है, लेकिन राज्य सरकार के स्तर पर यहां सिंचाई की कोई व्यवस्था नहीं की जा रही है. जिले एवं मोकरी गांव में सिंचाई की गंभीर समस्या है. किसान मोटर से सिंचाई करने के लिए मजबूर हैं या बारिश होने पर फसलों की अच्छी सिंचाई होती है. वहीं, जब बारिश नहीं होने पर किसानों की परेशानी बढ़ जाती है. फ‍िलहाल, ज्यादा दाम म‍िलने और अपनी गुणवत्ता की वजह से यहां का चावल धूम मचा रहा है. इससे क‍िसान खुश हैं.

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