देश में खाद्य तेलों के आयात में तेजी बनी हुई है. खासकर वनस्पति तेल (वेज ऑयल) विदेशों से अधिक मात्रा में खरीदी जा रही है. इसमें भी पाम तेल का नाम सबसे ऊपर है. खाद्य तेलों में पाम तेल का आयात अभी सबसे अधिक हो रहा है. नवंबर 2022 से मार्च 2023 के बीच खाद्य तेलों में सबसे अधिक पाम तेल का 63 परसेंट आयात हुआ है. इसी अवधि में देखें तो देश में खाद्य तेलों के आयात में 22 फीसद की तेजी आई है.
सॉलवेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन का एक आंकड़ा बताता है कि पिछले साल नवंबर से इस साल मार्च तक लगभग 70 लाख टन खाने के तेल का आयात हुआ है. पिछले साल आयात की यह मात्रा 56 लाख टन के आसपास थी. इस तरह देश में खाद्य तेलों का आयात समय के साथ बढ़ता हुआ दिख रहा है. दूसरी ओर, बिना खाने के तेल के आयात में 50 परसेंट तक की कमी आई है. बिना खाने के तेल में एसिड ऑयल, फैटी एसिड, वैक्स, स्टेरिन, सोप स्टॉक, कैस्टर ऑयल, करंज ऑयल, कुसुम ऑयल, महुआ ऑयल आदि आते हैं.
खाद्य तेलों के आयात में सबसे बड़ी हिस्सेदारी पाम तेल की है. इस साल मार्च महीने में पाम तेल के आयात में 24 फीसद की तेजी दर्ज की गई. दूसरी ओर सोयाबीन तेल के आयात में 27 परसेंट की गिरावट रही. यही स्थिति सूरजमुखी तेल की रही जिसके आयात में पांच फीसद की गिरावट देखी गई है.
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देश में बीआरडी पामोलीन तेल के बढ़ते आयात पर लगातार चिंता जताई जा रही है. सॉलवेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ने इस बारे में सरकार के समक्ष अपनी राय रखी है. पाम ग्रुप के तेल में सबसे अधिक आयात इसी पामोलीन तेल का होता है. इस तेल का आयात बढ़ने से घरेलू स्तर पर उन किसानों को भारी नुकसान होता है जो केरल या दक्षिण के अन्य राज्यों में पाम की खेती करते हैं. इस किसानों को तभी फायदा होगा जब पामोलीन तेल का आयात कम होगा या उसे धीरे-धीरे बंद किया जाएगा.
यही हाल भारत के पाम तेल उद्योग का भी है. यह उद्योग आज बड़ा नुकसान झेल रहा है क्योंकि पाम तेल बाहर से मंगाया जा रहा है. आयात होने के चलते देश में पाम तेल का बनना कम हो रहा है. इससे उन उद्योगों के काम ठप हो रहे हैं जो अब तक इसके निर्माण में लगे थे. हालत ये हो गई है कि जो फैक्ट्रियां पहले पाम तेल और उससे जुड़े प्रोडक्ट बनाती थीं, आज उनका काम केवल पैकिंग का रह गया है क्योंकि तेल बाहर से मंगाया जा रहा है.
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पामोलीन तेल के आयात को कम करने और देश के किसानों-उद्योग चलाने वालों को राहत देने के लिए इंपोर्ट टैक्स बढ़ाने की मांग की जा रही है. इंपोर्ट टैक्स बढ़ने से पामोलीन तेल का आयात महंगा पड़ेगा और व्यापारी इसे विदेशों से खरीदने से बचेंगे. लिहाजा देसी पाम तेल का इस्तेमाल और उसका बिजनेस बढ़ेगा. इससे किसान और पाम ऑयल इंडस्ट्री को मदद मिलेगी. यही वजह है कि एक्सपर्ट कच्चा पाम तेल और पामोलीन तेल के बीच टैक्स के अंतर को 7.5 परसेंट से बढ़ाकर 15 परसेंट किए जाने की मांग कर रहे हैं.
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