भारत में बड़े पैमाने पर गन्ने का उत्पादन किया जाता है. बीते एक दशक में कई राज्यों में गन्ने की पैदावार में बदलाव आया है, लेकिन इन बदलावों के बावजूद उत्तर प्रदेश गन्ना उत्पादन में पहले पायदान पर बना हुआ है और देश के कुल उत्पादन में आधे से ज्यादा का योगदान दे रहा है. वहीं कई राज्यों में उत्पादन पहले की तुलना में अब काफी कम हो गया है. उत्तर प्रदेश में सीजन 2011-12 में देश के कुल गन्ना उत्पादन का 40.9 फीसदी हिस्सा होता था, जो सीजन 2020-21 में 10 प्रतिशत बढ़कर 50.9 फीसदी हो गया.
वहीं, प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्य महाराष्ट्र की सीजन 2011-12 में 18.7 प्रतिशत योगदान था, जो 2020-21 में बढ़कर 19.5 प्रतिशत हो गया. दो प्रमुख राज्यों में उत्पादन बढ़ने के साथ ही तमिलनाडु से निराशाजनक आंकड़े सामने आए है, जहां सीजन 2011-12 में गन्ना उत्पादन का योगदान 11.4 प्रतिशत था, जो 2020-21 में घटकर मात्र 3.5 प्रतिशत रह गया.
इसके अलावा कर्नाटक की सीजन 2011-12 में देश के कुल गन्ना उत्पाद में 7.9 प्रतिशत हिस्सेदारी थी, जो वर्ष 2020-21 में मामूली रूप से घटकर 7.7 प्रतिशत रह गई. वहीं, बिहार का 2011-12 में योगदान 3.9 प्रतिशत था, जो 2020-21 में 3.8 दर्ज किया गया.
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वहीं, गुजरात में गन्ने के उत्पादन में बढ़ोतरी दर्ज की गई है. वर्ष 2011-12 में इसका देश के कुल गन्ना उत्पादन में 3.8 प्रतिशत योगदान था, जबकि 2020-21 4.7 प्रतिशत योगदान दिया. भारत सरकार के सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने इस संबंध में आंकड़े जारी कर यह जानकारी दी.
वहीं, इस बार देश के कई राज्यों में गन्ना किसान चिंतित नजर आ रहे हैं. गन्ने की फसल में कीटों के हमले से उत्पादन में कमी आ सकती है. ऐसे में किसानों को आमदनी कम होने का डर है. वहीं, शुगर मिलों के चीनी उत्पादन के लक्ष्यों को पूरा करने में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है.
कीटों के हमले के कारण उत्पादन में गिरने के साथ ही चीनी की मात्रा और इथेनॉल डायवर्जन पर प्रभाव पड़ सकता है. चालू सीजन (अक्टूबर 2024-सितंबर 2025) में देश का गन्ना उत्पादन 440 मिलियन टन के शुरुआती अनुमान से कम हो सकता है, जिससे उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे शीर्ष गन्ना उत्पादक राज्यों में कीटों के हमले की रिपोर्ट के बाद चीनी के लिए गन्ने की कमी हो सकती है.
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