Toor Dal Farming: अरहर की खेती से अच्छी कमाई कर सकते हैं क‍िसान, जान‍िए इसके बारे में सबकुछ  

Toor Dal Farming: अरहर की खेती से अच्छी कमाई कर सकते हैं क‍िसान, जान‍िए इसके बारे में सबकुछ  

भारत में अरहर की खेती सबसे अध‍िक कर्नाटक और महाराष्ट्र में की जाती है. इसके अलावा मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हर‍ियाणा और ब‍िहार में भी इसकी खेती होती है. भारत में इसकी खेती क‍िसानों के ल‍िए फायदे का सौदा है. क्योंक‍ि इसे हम आयात कर रहे हैं. 

Advertisement
Toor Dal Farming: अरहर की खेती से अच्छी कमाई कर सकते हैं क‍िसान, जान‍िए इसके बारे में सबकुछ  जानिए अरहर की खेती के बारे में

अरहर भारत की एक महत्वपूर्ण फसल हैं. यही कारण है कि अरहर का हमारे देश में शाकाहारी भोजन में महत्वपूर्ण स्थान है.  इसका दाल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें 20.9 प्रतिशत प्रोटीन है. इसके अलावा खनिज, लोहा, आयोडीन और कुछ अन्य विटामिनों का भी अच्छा स्रोत है. विश्व कृषि एवं खाद्य संगठन तथा स्वास्थ्य संगठन के अनुसार संतुलित आहार के ल‍िए दाल की न्यूनतम आवश्यकता ग्राम प्रति व्यक्ति 80 प्रतिदिन है. भारत में अरहर लगभग 33.8 लाख हेक्टेयर भूमि पर लगाई जाती है. लेक‍िन इसकी खेती में भारत आत्मन‍िर्भर नहीं है. घरेलू जरूरतों को पूरा करने के ल‍िए इसे आयात क‍िया जाता है. इसल‍िए क‍िसान इसकी खेती से अच्छी कमाई कर सकते हैं. 

भारत में अरहर की खेती सबसे अध‍िक कर्नाटक और महाराष्ट्र में की जाती है. इसके अलावा मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हर‍ियाणा और ब‍िहार में भी इसकी खेती होती है. बिहार में अरहर की खेती लगभग 40,000 हेक्टेयर भूमि पर लगाई जाती है, जबकि उपज क्षमता प्रति हेक्टेयर 12.81 क्विटल है. भारत में इसकी औसत उपज क्षमता केवल 6.81 क्विटल प्रत‍ि हेक्टेयर है. दालों की प्रति व्यक्ति प्रतिदिन उपलब्धता जो कि सन् 1951 में 60.7 ग्राम थी वो 2001 में केवल 30 ग्राम ही रह गई थी.  

भूमि का चुनाव

अरहर की खेती क‍िसानों के ल‍िए फायदे का सौदा है. क्योंक‍ि इसे हम आयात कर रहे हैं. इसके ल‍िए उत्तम जल निकासी वाली हल्की या मध्यम भारी मिट्टी अधिक उपयुक्त है. अम्लीय क्षारीय तथा जलमग्न भूमि इसके लिए उपयुक्त नहीं हैं. अरहर की खेती से जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ती है. क्योंक‍ि यह वातावरण से नाइट्रोजन लेकर उसे जमीन में फ‍िक्स करती है. अरहर की अधिक उपज लेने के लिए 100 किलोग्राम डीएपी तथा 35 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के समय खेत में मिला देना चाहिए. 

ये भी पढ़ें: Onion Prices: खरीफ फसल की आवक में देरी, महाराष्ट्र में बढ़ी प्याज की थोक कीमत 

खेत की तैयारी

मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करनी चाहिए. क्योंकि अरहर की जड़े भूमि में काफी गहराई तक जाती हैं. इसके बाद दो जुताई कल्टीवेटर या देशी हल से करके पाटा लगाकर समतल कर लेना चाहिए. अच्छी सड़ी हुई गोवर की खाद या कम्पोस्ट 20-25 क्विटल प्रत‍ि हेक्टेयर तथा कीड़ा और दीमक आदि का प्रकोप हो तो 6 प्रतिशत हेप्टाक्लोर 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिला दें.  

बीज उपचार तथा बीज की मात्रा

खरीफ फसल के लिए 20-25 क‍िलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है. बुवाई के 24 घंटे पहले बीज को फफूंदनाशक दवा जैसे थीरम या कैप्टान (2.5 ग्राम) प्रतिकिलो ग्राम बीज की दर से उपचारित करें. उपचारित बीज को राइजोबियम लेग्यूमिनोसेरम नामक कल्चर से 200 ग्राम प्रति 10 किलो बीज को सुबह के समय उपचारित करके बुवाई करें. 

खरपतवार नियंत्रण

अरहर में खरपतवारों के नियंत्रण के लिए पहली निराई, बुवाई के 25-30 दिन बाद करें. दूसरी निराई बुवाई के 45-60 दिन के भीतर कर देनी चाहिए. खेत की अंतिम तैयारी के समय एक किलोग्राम बेसालीन सक्रिय तत्व 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़क कर मिट्टी में अच्छी प्रकार मिला देने से खरपतवार का नियंत्रण हो जाता है. रासायनिक उर्वरक का प्रयोग मिट्टी जांच रिपोर्ट के अनुसार करना चाहिए.

ये भी पढ़ें: पीएम मोदी ने 86 लाख क‍िसानों को द‍िया द‍िवाली का तोहफा, खाते में पहुंचे 1720 करोड़ रुपये 

 

POST A COMMENT