शकरकंद एक प्राकृतिक रूप से मीठी जड़ वाली फसल है. इसकी खेती पूरे साल की जाती है. लेकिन यह विशेष रूप से सर्दियों के मौसम में ज्यादा होती है. शकरकंद की बाज़ार में हमेशा मांग बनी रहती है. आलू की तरह दिखने वाली शकरकंद की खेती अलग-अलग राज्यों में बड़े पैमाने पर की जाती है. भारत में उगने वाली शकरकंद का स्वाद आज पूरी दुनिया को भा रहा है. शकरकंद की बुवाई के लिए सितंबर और अक्टूबर महीने का पहला पखवाड़ा सबसे बेहतर माना जाता है. आइए जानते हैं भारत की पांच मशहूर शकरकंद की किस्मों के बारे में जिनकी खेती बेहतर पैदावार देती है और किसान इसकी खेती कर अच्छा मुनाफा भी कमा सकते हैं.
अगर आप किसान हैं और इस सितंबर महीने में किसी फसल की खेती करना चाहते हैं तो यह काम जल्दी कर सकते हैं. किसान शकरकंद की कुछ उन्नत किस्मों की खेती कर सकते हैं. इन उन्नत किस्मों में श्रीभद्र किस्म, गौरी किस्म, श्री कनका किस्म, सिपस्वा 2 किस्म और एस टी- 14 किस्म किस्में शामिल हैं. इन किस्मों की खेती करके अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है.
यह शकरकंद की अधिक उपज देने वाली किस्म है. ये किस्म 90 से 105 दिन में तैयार हो जाती है. इसकी चौड़ी पत्तियां होती हैं. ये कंद आकार में छोटे और गुलाबी होते हैं. इस कंद में 33 फीसदी शुष्क पदार्थ, 20 फीसदी स्टार्च और 2.9 फीसदी चीनी होती है.
शकरकंद की इस किस्म को साल 1998 में इजाद किया गया था. गौरी किस्म को तैयार होने में लगभग 110 से 120 दिन का समय लग जाता है. शकरकंद की इस किस्म के कंद का रंग बैंगनी और लाल होता है. गौरी किस्म की शकरकंद से औसतन उत्पादन तकरीबन 20 टन तक हो जाती है.
शकरकंद की श्री कनका किस्म को साल 2004 में विकसित किया गया था. इस किस्म के कंद का छिलका दूधिया रंग का होता है. इसको काटने पर पीले रंग का गूदा नजर आता है. यह किस्म 100 से 110 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. इस किस्म का उत्पादन 20 से 25 टन प्रति हेक्टेयर है.
शकरकंद की इस किस्म का उत्पादन अम्लीय मिट्टी में किया जाता है. इनमें केरोटिन की प्रचुर मात्रा होती है. शकरकंद की यह किस्म 110 दिन में पककर तैयार हो जाती है. इसकी उपज 20 से 24 टन प्रति हेक्टेयर है.
शकरकंद की यह किस्म साल 2011 में इजाद की गई थी. शकरकंद की इस किस्म के कंद का रंग थोड़ा पीला होता है. वहीं गूदे का रंग हरा और पीला होता है. इस किस्म के अंदर उच्च मात्रा में वीटा केरोटिन (20 मिली ग्राम प्रति 30 ग्राम) पाया जाता है. इस किस्म को तैयार होने में 110 दिन का वक्त लगता है. यदि इसकी उपज की बात की जाए तो वह लगभग 70 टन प्रति हेक्टेयर होती है.
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