सूरजमुखी की फसल में आवश्यकतानुसार सिंचाई एवं निराई-गुड़ाई करें तथा पौधों पर मिट्टी चढ़ायें. जायद में बोयी गई सूरजमुखी की फसल में तीन सिंचाइयों की आवश्यकता पड़ती है. पहली सिंचाई बुआई के 30-35 दिनों बाद करें व इसी अवस्था में नाइट्रोजन की 1/3 मात्रा का उपयोग करें. द्वितीय सिंचाई 20-25 दिनों बाद फूल आने की अवस्था में करें एवं अंतिम सिंचाई बीज बनने की अवस्था में करें. फूल आने के समय मधुमक्खियां प्राकृतिक रूप से बहुत सक्रिय होती हैं व परागण में बहुत सहायक होती हैं. इससे पूरे फल में दाना भरता है व पैदावार में वृद्धि तथा बीजों से अधिक तेल प्राप्त होता है.
जायद में बोई गई सूरजमुखी की फसल में पत्ती खाने वाले कीट (लीफ हॉपर) के लिए मोनोक्रोटोफॉस 0.05 प्रतिशत या डाइमेथोएट 0.03 प्रतिशत का छिड़काव करना चाहिए. रस चूसक कीट, एफिड, जैसिड की रोकथाम के लिए इमिडाक्लोरोप्रिड 125 ग्राम/हैक्टर या एसिटामिप्रिड 125 ग्रा/हैक्टर की दर से छिड़काव करें. सूरजमुखी की फसल में रतुआ, डाउनी मिल्ड्यू, हेड रॉट, राइजोपस हेड रॉट जैसे-रोगों से समस्याएं आती हैं.
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पत्ती झुलसा रोग के नियंत्रण हेतु मैंकोजेब 3 ग्राम/लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें. पुष्पण की अवस्था पर 2 प्रतिशत बोरेक्स और 1 प्रतिशत जिंक सल्फेट के छिड़काव से दाने भरे हुए, मोटे और तेल उपज में वृद्धि होती है. चेंपा पौधों से रस चूसते हैं. इनका प्रकोप हो तो नियंत्रण के लिए 200 मिली. मैलाथियान 50 ई.सी. को 200 लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव करें. रोगों से रोकथाम के लिए फफूंदीनाशक दवा जैसे बाविस्टिन या थीरम नामक दवा से बीजोपचार ही सबसे सर्वोत्तम तरीका है.
बीजों में उत्पन्न होने वाली बीमारियों की रोकथाम के लिए बीजों में 3 ग्राम/किलों की मात्रा में थैरम या कप्टन मिलाना चाहिए. जिन क्षेत्रों में डौनि मिल्डिव रोग अधिक होता है वहां बीजों में 6 ग्राम/किलों की मात्रा में मेटलक्सिल मिला लेना चाहिए.अंकुरण के बाद उत्पन्न पौधों को एक जगह अधिक मात्रा में नहीं होना चाहिए. इससे उत्पादन में वृद्धि होती है, जुताई संबंधी अन्य कार्य आसान हो जाते हैं और कीटनाशक प्रबंधन और रोगों के रोकधाम में सहयोग मिलता है.
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