Cotton Farming: स‍िर्फ गुलाबी सुंडी ही नहीं है 'सफेद सोना' का दुश्मन, सूक्ष्म पोषक तत्वों में कमी ने भी ब‍िगाड़ा खेल

Cotton Farming: स‍िर्फ गुलाबी सुंडी ही नहीं है 'सफेद सोना' का दुश्मन, सूक्ष्म पोषक तत्वों में कमी ने भी ब‍िगाड़ा खेल

कॉटन एक गहरी जड़ वाली फसल होने के कारण म‍िट्टी से बड़ी मात्रा में पोषक तत्वों का उपयोग करती है. इसल‍िए म‍िट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी क‍िसानों पर भारी पड़ रही है. शायद इसील‍िए भारत कॉटन की उत्पादकता के मामले में दुन‍िया के कई देशों से बहुत पीछे है. ऐसे में कॉटन की खेती में खासतौर पर सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के लक्षणों को पहचान‍िए और उसे समय रहते दूर कर‍िए.

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Cotton Farming: स‍िर्फ गुलाबी सुंडी ही नहीं है 'सफेद सोना' का दुश्मन, सूक्ष्म पोषक तत्वों में कमी ने भी ब‍िगाड़ा खेलक्यों कम हो रही है कॉटन की खेती?

सफेद सोना कही जाने वाली फसल कपास की खेती को लेकर अब क‍िसानों का मोहभंग होने लगा है. आंकड़े इसकी तस्दीक कर रहे हैं. केंद्रीय कृष‍ि मंत्रालय के मुताब‍िक साल 2020-21 में 132.86 लाख हेक्टेयर में कॉटन की खेती हुई थी जो 2024-25 में कम होकर स‍िर्फ 113.60 लाख हेक्टेयर रह गई है. कॉटन के रकबे में इतनी बड़ी कमी की एक वजह गुलाबी सुंडी के प्रकोप को बताया जा रहा है. साथ ही उपज में कमी भी कम बड़ा कारण नहीं है. ऐसा इसल‍िए है क्योंक‍ि कॉटन के अच्छे बीजों और जमीन में सूक्ष्म पोषक तत्वों की बड़ी कमी है. दरअसल, कॉटन एक गहरी जड़ वाली फसल होने के कारण म‍िट्टी से बड़ी मात्रा में पोषक तत्वों का उपयोग करती है. इसल‍िए म‍िट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी क‍िसानों पर भारी पड़ रही है. शायद इसील‍िए भारत कॉटन की उत्पादकता के मामले में दुन‍िया के कई देशों से बहुत पीछे है. ऐसे में कॉटन की खेती में खासतौर पर सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के लक्षणों को पहचान‍िए और उसे समय रहते दूर कर‍िए.

हाईब्रिड बीटी कॉटन की अधिक उत्पादकता बनाए रखने के लिए इसे गैर बीटी कॉटन की तुलना में अधिक मात्रा में पोषक तत्वों की जरूरत होती है. भारतीय कृष‍ि अनुसंधान पर‍िषद (ICAR) से जुड़े कृष‍ि वैज्ञान‍िकों अमरप्रीत सिंह, ऋषि कुमार, एसके सैन, देबाशीष पॉल और संजीव कुमार ने कॉटन की खेती में पोषक तत्वों की कमी और उसके लक्षणों के बारे में व‍िस्तार से जानकारी दी है. क‍िसान अपने खेत में इन लक्षणों को देखकर सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को दूर कर सकते हैं.

पोटेशियम की कमी

पोटेशियम की कमी के लक्षण अक्सर कॉटन के पौधे के निचले हिस्से में सबसे पहले पुरानी, निचली या परिपक्व पत्तियों पर दिखाई देते हैं. पत्तियां भूरे-लाल रंग की होकर मुड़ जाती हैं और टूट जाती हैं. आमतौर पर, पोटेशियम की कमी के लक्षण फूल आने के बाद पौधे के ऊपरी शीर्ष पर कपास की नई पत्तियों पर भी पाए जा सकते हैं. वर्ष 2017-18 में आई कृषि की स्थायी संसदीय समिति की रिपोर्ट के मुताब‍िक देश की खेती में पोटैशियम की करीब 50 फीसदी कमी है.

जिंक की कमी

इसकी कमी से पौधा छोटा रह जाता है. कॉटन में छोटी पत्ती का होना एक विशिष्ट लक्षण की कमी का होना है. कॉटन में जिंक की कमी से नई पत्तियों का हरापन खत्म हो जाता है और उसमें कुरूपता आ जाती है. भारत की खेती में जिंक की 49 फीसदी कमी बताई गई है.  

नाइट्रोजन

कॉटन में नाइट्रोजन की कमी के लक्षण आमतौर पर पहले पुरानी पत्तियों पर दिखाई देते हैं और फिर तेजी से पौधों की पुरानी से नई पत्तियों में चले जाते हैं. शुरुआत में, पुरानी पत्तियां समान रूप से हल्के हरे से हल्के पीले रंग की हो जाती हैं, फिर पीली हो जाती हैं. 

फॉस्फोरस

इस पोषक तत्व की कमी के लक्षण कॉटन के निचले या पुराने पत्तों पर दिखाई देते हैं और आगे बढ़कर ऊपर की ओर दिखाई देते हैं. इसकी कमी से पत्तियां बैंगनी रंग की हो जाती हैं. 

मैग्नीशियम

कॉटन में मैग्नीशियम की कमी से पत्तियां लाल हो जाती हैं और शिरायें हरी रहती हैं. विशिष्ट लक्षण पुरानी और परिपक्व पत्तियों पर दिखाई देते हैं. 

सल्फर

कॉटन की खेती में सल्फर की कमी के लक्षण पहले नई पत्तियों पर अधिक स्पष्ट होते हैं, जबकि पुरानी पत्तियां हरी रहती हैं. नए पत्ते हल्के हरे से पीले रंग के हो जाते हैं. भारत की खेती में सल्फर की 41 फीसदी कमी बताई गई है.

आयरन

इसकी कमी के लक्षणों में शीर्ष कॉटन की पत्तियों पर पीलापन दिखाई देता है. क्लोरोसिस पहले नई पत्तियों में शिराओं के बीच हल्के पीले धब्बों के रूप में प्रकट होता है और फिर नई पत्तियां हल्के हरे से हल्के पीले रंग की हो जाती हैं, जबकि पुरानी पत्तियां हरी और सामान्य रहती हैं. भारत में आयरन की 12 फीसदी कमी बताई गई है. 

बोरॉन

बोरॉन की कमी के लक्षण कॉटन के पौधे के शीर्ष पर दिखाई देते हैं. ऊपर की पत्तियों का सूखना, फुलडोडी और नए टिंडे का अत्यधिक झड़ना बोरॉन की कमी के लक्षण हैं. भारत की जमीन में बोरान की लगभग 33 फीसदी कमी बताई गई है. 

उत्पादकता में भारी कमी 

अब सवाल यह है क‍ि भारत कॉटन की उत्पादकता में व‍िश्व मानच‍ित्र पर कहां है? जवाब यह है क‍ि कॉटन की उत्पादकता के मामले में भारत फ‍िसड्डी है. व‍िश्व में कॉटन की औसत उत्पादकता 756 क‍िलोग्राम प्रत‍ि हेक्टेयर है. जबक‍ि भारत में प्रत‍ि हेक्टेयर 450 क‍िलोग्राम कॉटन भी पैदा नहीं होता. जबक‍ि चीन 1993 क‍िलोग्राम प्रत‍ि हेक्टेयर के साथ उत्पादकता के मामले में दुन‍िया भर में अव्वल है.  

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