अब धान की खेती में 500 रुपये प्रति एकड़ कम आएगी लागत, 30 प्रतिशत तक पानी की होगी बचत, जानें पूरा प्लान

अब धान की खेती में 500 रुपये प्रति एकड़ कम आएगी लागत, 30 प्रतिशत तक पानी की होगी बचत, जानें पूरा प्लान

नर्चर फार्म में सस्टेनेबिलिटी के प्रमुख हर्षल सोनवणे ने कहा कि यह कार्यक्रम मीथेन उत्सर्जन को 50 प्रतिशत तक कम करने में मदद करेगा. साथ ही चावल की खेती में पानी के उपयोग को 30 फीसदी तक कम करेगा. ऐसे में किसानों के लिए इनपुट लागत 500 रुपये प्रति एकड़ कम हो जाएगी.

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अब धान की खेती में 500 रुपये प्रति एकड़ कम आएगी लागत, 30 प्रतिशत तक पानी की होगी बचत, जानें पूरा प्लानधान की खेती में अब कम होगा पानी का दोहन. (सांकेतिक फोटो)

एगटेक स्टार्ट-अप नर्चर फार्म ने रबी 23 सीजन के लिए अपना सस्टेनेबल राइस प्रोग्राम शुरू किया है. इस प्रोग्राम का मुख्य उद्देश्य किसानों को आधुनिक तकनीक से लैस करना है, ताकि वे अधिक से अधिक मुनाफा कमा सकें. साथ ही इस कार्यक्रम के तहत किसानों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और जल संरक्षण के बारे में भी जानकारी देनी है, ताकि वे अधिक से अधिक रकबे में धान की खेती करें.

नर्चर फार्म में सस्टेनेबिलिटी के प्रमुख हर्षल सोनवणे ने कहा कि यह कार्यक्रम मीथेन उत्सर्जन को 50 प्रतिशत तक कम करने में मदद करेगा. साथ ही चावल की खेती में पानी के उपयोग को 30 फीसदी तक कम करेगा. ऐसे में किसानों के लिए इनपुट लागत 500 रुपये प्रति एकड़ कम हो जाएगी. उनके अनुसार इसका सबसे बड़ा फयदा यह होगा कि धान की उपज 10 प्रतिशत बढ़ जाएगी. 

1 मिलियन एकड़ में खेती

नर्चर फार्म ने एक बयान में कहा कि इस प्रोग्राम को पायलट प्रोजेक्ट के रूप में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में 10,000 एकड़ जमीन पर लागू किया जा रहा है. वहीं, 5000 से अधिक किसानों ने पहले ही कार्यक्रम के लिए साइन कर दिया है. अब ये किसान सस्टेनेबल राइस प्रोग्राम के तहत धान की खेती करेंगे. साथ ही बयान में यह भी कहा गया है कि इसे 2030 तक 1 मिलियन एकड़ से अधिक तक बढ़ाने की योजना है.

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GHG उत्सर्जन में 1.5 प्रतिशत का योगदान देता है

खास बात यह है कि यह कार्यक्रम किसानों को मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार करने में भी मदद करेगा. इससे किसानों को सीधा फायदा होगा और फसलों की पैदावार बढ़ जाएगी. वहीं, यूपीएल एसएएस के सीईओ आशीष डोभाल ने कहा कि भारत चावल का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है, जिसकी दुनिया के कुल चावल उत्पादन में 21 प्रतिशत हिस्सेदारी है. यह अकेले चावल की खेती कुल GHG उत्सर्जन में 1.5 प्रतिशत का योगदान देता है. उन्होंने कहा कि चावल की खेती में बहुत अधिक पानी का दोहन होता है.

मीथेन उत्सर्जन होता है

उनकी माने तो बाढ़ वाले खेतों से मिट्टी के कार्बनिक पदार्थों का अवायवीय अपघटन होता है, जिससे मीथेन उत्सर्जन होता है और मिट्टी की गुणवत्ता पर असर पड़ता है. इससे पोषक तत्वों का रिसाव होता है और मिट्टी का क्षरण होता है. ऐसे में फसल की पैदावार कम हो जाती है. लेकिन सस्टेनेबल राइस प्रोग्राम से सारी समस्याओं का निदान हो जाएगा.

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