महाराष्ट्र में किसी न किसी फसल को उगाने वाले किसान दाम को लेकर अक्सर परेशानी में बने हुए हैं. एक तरफ जहां प्याज़ और अंगूर की खेती करने वाले किसानों को उचित दाम नहीं मिलने से उन्हें संकट का सामना करना पड़ रहा है, तो वहीं अब सोयाबीन उत्पादक किसानों के सामने भी समस्या आ खड़ी हुई है. राज्य की अधिकांश मंडियों में किसानों को सोयाबीन का एमएसपी से कम भाव मिल रहा है. पंजाब-हरियाणा के किसान एमएसपी की गारंटी को लेकर ही आंदोलन कर रहे हैं. उधर, महाराष्ट्र की कई मंडियों में किसानों को सोयाबीन का दाम तय एमएसपी से बहुत कम मिल रहा है. राज्य की लासलगाव मंडी में सोयाबीन 3500 रुपये प्रति क्विंटल पर बिक रहा है. ऐसे में किसान गिरती कीमतों से परेशान हैं.
मंडियों में आवक बहुत कम होने के बावजूद दाम कम मिल रहा है. किसान इसकी वजह से खासे परेशान हैं. यवतमाल जिले में भी सोयाबीन की कीमतों में भारी गिरावट के चलते किसानों के आंखों से आंसू निकाल रहे हैं. एक महीने पहले बाजार में सोयाबीन 6500 रुपये प्रति क्विंटल बिका था. इसके बाद किसानों ने अपनी सोयाबीन की उपज मंडी में बेचना शुरू किया. किसानों का कहना है कि लेकिन अब भाव बहुत कम मिल रहा है.
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महाराष्ट्र स्टेट एग्रीकल्चर प्राइस कमीशन के पूर्व चेयरमैन पाशा पटेल दावा करते हैं कि महाराष्ट्र में सोयाबीन उत्पादन की लागत प्रति क्विंटल 6234 रुपये आती है. यह लागत चार कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा दी गई रिपोर्ट के आधार पर निकाली गई है. दूसरी ओर केंद्र सरकार ने सोयाबीन की एमएसपी में 300 रुपये का इजाफा करके 2023-24 के लिए इसे 4600 रुपये प्रति क्विंटल किया है. पटेल के दावों के उलट सरकार ने सोयाबीन की लागत प्रति क्विंटल 3029 रुपये ही बताई है.
महाराष्ट्र में कपास, प्याज और गन्ने के अलावा सोयाबीन भी महत्वपूर्ण फसल है. सोयाबीन को तिलहन और दलहन दोनों फसल माना जाता है लेकिन खाद्य तेलों की कमी की वजह से इसका इस्तेमाल तिलहन में ज्यादा है. भारत खाद्य तेलों पर दूसरे देशों पर ही निर्भर है. इसके बावजूद इसके किसानों को अच्छा दाम नहीं मिल रहा. भारत में सोयाबीन का कॅमर्शियल प्रोडक्शन लगभग पांच दशक पहले शुरू हुआ था.
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