दलहल फसलों के मामले में भारत के आत्मनिर्भर बनने की कोशिशों को झटका लग सकता है. साथ ही दाम और बढ़ सकता है. क्योंकि इसकी बुवाई इस बार काफी पिछड़ गई है. पिछले वर्ष के मुकाबले इस बार 12.32 लाख हेक्टेयर कम क्षेत्र कवर हुआ है. यह हाल तब है जब हमारा दलहन इंपोर्ट बढ़ रहा है. ऐसे में रकबा बढ़ने की जगह बुवाई घटने से इसकी महंगाई को लेकर चिंता और बढ़ेगी. कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, ओडिशा, तेलंगाना और झारखंड में इसकी बुवाई में कमी दर्ज की गई है. इसकी बड़ी वजह असामान्य बारिश को बताया जा रहा है. भारत दुनिया का सबसे बड़ा दलहन उत्पादक और उपभोक्ता है. इसके बावजूद इस मामले में आत्मनिर्भर नहीं हो सका है. क्योंकि बढ़ती जनसंख्या के साथ ही इसकी मांग बढ़ रही है. दाल शाकाहारी लोगों का प्रमुख भोजन है. उनके लिए यह प्रोटीन का एक सस्ता सोर्स है.
फिलहाल, सबसे पहले बात करते हैं बुवाई की. देश में इसकी बुवाई का सामान्य एरिया 139.75 लाख हेक्टेयर है. जिनमें से इस साल 28 जुलाई तक सिफ 96.84 लाख हेक्टेयर क्षेत्र कवर हो सका है. जबकि पिछले साल इसी अवधि तक 109.15 लाख हेक्टेयर में दलहन फसलों की बुवाई पूरी हो चुकी थी. बुवाई पिछड़ेगी या कम होगी तो उत्पादन पर बुरा असर पड़ेगा. अरहर की बुवाई में 5.99 लाख हेक्टेयर की कमी है. जबकि उड़द 4.23 और मूंग 2.14 लाख हेक्टेयर कम बोई गई है. भारत में दलहन फसलों की खेती रबी, खरीफ और जायद तीनों फसल सीजन में की जाती है.
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केंद्र सरकार दालों की कमी को पूरा करने के लिए मोजांबिक, म्यांमार और तंजानिया आदि देशों से आयात करती है. कृषि विशेषज्ञों के अनुसार देश में मसूर दाल के उत्पादन और मांग में लगभग 8 लाख टन का गैप है. जबकि उड़द दाल की मांग और उत्पादन में 5 लाख टन का अंतर है. अरहर दाल के उत्पादन और मांग में 7 लाख टन का अंतर आ रहा है. भारत ने साल 2021-22 में 16,628 करोड़ रुपये की दालों का आयात किया है. जबकि 2020-21 में यह सिर्फ 11,938 करोड़ रुपये था.
जहां तक भाव की बात है तो इस समय अरहर, मूंग और उड़द की दाल का दाम बढ़ा हुआ है. अरहर का थोक दाम 106 रुपये प्रति क्विंटल और रिटेल 200 रुपये तक पहुंच गया है. मूंग का दाम थोक में 80 रुपये जबकि रिटेल में 130 के आसपास पहुंच गया है. कमोडिटी एक्सपर्ट कह रहे हैं कि बुवाई घटी तो दाम और बढ़ना तय है.
भारत में सभी तरह की दालों को मिलाकर बात करें तो उत्पादन 2022-23 में 278.10 लाख टन हुआ है. यह अब तक का रिकॉर्ड है. रिकॉर्ड उत्पादन इसलिए क्योंकि यह पिछले साल के 273.02 लाख टन उत्पादन की तुलना में 5.08 लाख टन अधिक है. यह केंद्रीय कृषि मंत्रालय का दिया हुआ आंकड़ा है. इसमें कोई शक नहीं कि दलहन फसलों की खेती बढ़ रही है. लेकिन, इसका एरिया और उत्पादन बढ़ने की जो रफ्तार चाहिए वो जनसंख्या वृद्धि की वजह से बढ़ती मांग को मैच नहीं कर पाता. इस वक्त देश में सभी तरह की दालों का कुल कारोबार लगभग 2 लाख करोड़ रुपये के आसपास का बताया गया है.
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