दुधारू पशुओं में दूध उत्पादन बढ़ाने और भारवाहक पशुओं की कार्य क्षमता बढ़ाने के लिए हरा चारा बहुत जरूरी है. ज्वार खरीफ मौसम में एक लोकप्रिय हरा चारा फसल है. ज्वार पौष्टिक तत्वों से भरपूर, स्वादिष्ट, पौष्टिक और एक उत्कृष्ट पशु चारा है. ज्वार पशुओं को हरी अवस्था में और करबी के रूप में सुखाकर भी खिलाया जाता है. देश के कुछ भागों में ज्वार की खेती अनाज के रूप में भी की जाती है. ऐसे में आइए जानते हैं कि किसान अगर चारे के लिए ज्वार लगा रहे हैं तो उन्हें प्रति हेक्टेयर कितने बीज कि जरूरत पड़ सकती है.
ज्वार की HC-136, 171, 308 और HJ-513 किस्मों की बुवाई के लिए सिफारिश की जाती है. मीठी सूडान घास की बुवाई करके मई से नवंबर तक चार से पांच कटाई की जा सकती है. ज्वार के लिए अच्छे जल निकास वाली भारी दोमट मिट्टी अच्छी होती है. दो से अधिक कटाई के लिए ग्रीष्मकालीन फसल की बुवाई 20 मार्च से 15 अप्रैल तक करें और वर्षा ऋतु की फसल की बुवाई मध्य मई से 10 जुलाई तक करें.
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ज्वार की हरी चारा फसल के लिए प्रति हेक्टेयर 40 किलोग्राम बीज पर्याप्त है. हरे चारे की गुणवत्ता और उपज बढ़ाने के लिए प्रति हेक्टेयर ज्वार के बीज में 10-20 किलोग्राम लोबिया के बीज मिलाकर बोएं. ज्वार की बुवाई 25-30 सेमी की दूरी पर पंक्तियों में 5-7 सेमी की गहराई पर सीड ड्रिल से करें. ज्वार के बीजों को 4 ग्राम थायरम या सल्फर पाउडर प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित करके बोएं. बीजों को एजोटोबैक्टर जीवाणु खाद से उपचारित करके बोएं.
दोपहर में जब फसल मुरझाने लगे तो सिंचाई कर दें. आमतौर पर गर्मी के मौसम में 10-12 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहें. ज्वार की एक कटाई वाली किस्मों में 50 प्रतिशत फूल आने पर ही कटाई करें. बहु कटाई वाली किस्मों में पहली कटाई बुवाई के लगभग 60-70 दिन बाद करनी चाहिए. शुष्क क्षेत्रों में जब पानी की कमी होती है तो उगाई गई कच्ची ज्वार में प्रूसिक एसिड अधिक मात्रा में होता है जो पशुओं के लिए हानिकारक होता है. इसलिए बुवाई के 66-70 दिन बाद ही ज्वार की कटाई करनी चाहिए. कच्ची ज्वार पशुओं को न खिलाएं. फसल की उचित सिंचाई करते रहें. 10-12 सेमी की ऊंचाई से कटाई करें ताकि फिर से अंकुरण अच्छा हो.
ज्वार की एकल कटाई किस्मों से औसतन प्रति हेक्टेयर 350-450 क्विंटल हरा चारा प्राप्त होता है, तथा बहु कटाई किस्मों से औसतन प्रति हेक्टेयर 550-800 क्विंटल हरा चारा प्राप्त होता है.
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