गेहूं की बुवाई का उपयुक्त समय आमतौर पर नवंबर तक माना जाता है, लेकिन खरीफ फसल की कटाई के बाद दिसंबर में भी गेहूं की बुवाई की जा सकती है. गेहूं की खेती के लिए दोमट और रेतीली दोमट मिट्टी सर्वोत्तम होती है, क्योंकि यह नमी को बनाए रखने के साथ मिट्टी की उपजाऊ क्षमता को भी बढ़ाती है. अच्छी पैदावार के लिए सही किस्म और समय पर बुवाई बहुत जरूरी होती है. बेहतर किस्में न केवल पैदावार बढ़ाती हैं, बल्कि फसल की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाती हैं. यदि इस रबी सीजन में आप उच्च गुणवत्ता वाली गेहूं की किस्में चुनते हैं, तो आपकी पैदावार में बड़ा सुधार हो सकता है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा विकसित ये किस्में ना सिर्फ अधिक उत्पादन देती हैं, बल्कि हर तरह के मौसम में पैदावार पर भी कोई फर्क नहीं पड़ता.
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के संस्थानों ने बदलती जलवायु परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए कुछ बेहतरीन गेहूं की किस्मों को विकसित किया है, जो किसानों को बदलती मौसम की चुनौतियों के बावजूद उच्चतम पैदावार देने में सक्षम हैं. इन किस्मों को खासतौर पर भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में उगाने के लिए डिज़ाइन किया गया है, ताकि किसानों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बचाया जा सके और उनकी आय में वृद्धि हो सके. यदि किसान नवम्बर में इन 5 किस्मों की बुवाई करते हैं, तो उन्हें बेहतरीन पैदावार मिल सकती है.
एचडी 3226 जिसे पूसा यशस्वी के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा द्वारा विकसित एक उन्नत गेहूं की किस्म है. यह किस्म पीले, भूरे और काले जंग जैसे रोगों के प्रति अत्यधिक प्रतिरोधी है. इसकी खेती से प्रति एकड़ 30-32 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है. इसकी बुआई का सर्वोत्तम समय 5 से 25 नवंबर के बीच है. अधिकतम उपज के लिए अक्टूबर के दूसरे पखवाड़े में बुआई करना लाभकारी होता है. इसे पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जम्मू और कश्मीर में सफलता से उगाया जा सकता है. सही समय पर बुआई और देखभाल करने से किसान अधिकतम लाभ प्राप्त कर सकते हैं.
डीबीडब्ल्यू 187 यानी करण वंदना गेहूं की एक नई और उन्नत किस्म है, जिसका विमोचन 2019 में हुआ था. यह किस्म उत्तर-पूर्वी भारत के मैदानी इलाकों, जैसे पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, असम और पश्चिम बंगाल के उत्तर-पूर्वी हिस्सों के लिए विशेष रूप से विकसित की गई है. करण वंदना किस्म पत्तों के झुलसने जैसी बीमारियों के प्रति बेहतर प्रतिरोधी है. यह किस्म 77 दिनों में फूल देती है और 120 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. इसकी औसत ऊंचाई 100 सेंटीमीटर होती है. इसकी उपज 25 क्विंटल प्रति एकड़ होती है.
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एचडी 2967 गेहूं की एक अत्यधिक अनुकूलित और बेहतरीन किस्म है, जो पूरे भारत में लोकप्रिय है. इसकी फसल लगभग 150 दिनों में तैयार होती है और प्रति एकड़ 22-23 क्विंटल उत्पादन देती है. यह पीले रतुआ रोग के प्रति प्रतिरोधी है. इस किस्म की खेती पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और राजस्थान (कुछ क्षेत्रों को छोड़कर) में सफलतापूर्वक की जा सकती है. विशेषज्ञों के अनुसार, अगेती बुवाई का उपयुक्त समय 1 से 15 नवंबर के बीच है, जिससे पैदावार पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
पूसा गौतमी एचडी 3086 (Pusa Gautami HD 3086) गेहूं की एक किस्म है, जो समय पर बुवाई और सिंचित क्षेत्रों के लिए विशेष रूप से उपयुक्त मानी जाती है. यह किस्म उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्र में 145 दिनों में पककर तैयार हो जाती है, जबकि उत्तर-पूर्वी मैदानी क्षेत्रों में इसे पकने में केवल 121 दिन लगते हैं. औसत उपज 22-23 कुंतल प्रति एकड़ होती है. इसकी सबसे खास बात यह है कि यह पीले और भूरे रतुआ रोग के प्रति प्रतिरोधी है, जिससे इन रोगों का प्रभाव कम होता है. इस किस्म के बीज की मांग के लिए 204 बीज कंपनियों को लाइसेंस मिला है.
एचडी सीएसडब्ल्यू 18 की उपज 25 से 26 क्विंटल प्रति एकड़ होती है. यह पीला रतुआ रोग के प्रति प्रतिरोधी है और 150 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. यह किस्म हीट वेव और उच्च तापमान में भूरे रतुआ रोग के प्रति भी प्रतिरोधी है. इस किस्म की बुवाई 15 नवंबर तक कर लेनी चाहिए और पौधे की औसत ऊंचाई 110 सेंटीमीटर होती है.
इन गेहूं की किस्मों को अपनाकर किसान बदलती जलवायु परिस्थितियों में भी अधिक पैदावार प्राप्त कर सकते हैं. अगर किसान नवम्बर में इन किस्मों की बुवाई करते हैं, तो वे जलवायु में होने वाले उतार-चढ़ाव से प्रभावित होने के बावजूद अच्छी उपज और बेहतर आय पा सकते हैं.
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