केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आज कृषि भवन, नई दिल्ली में फसल अवशेष प्रबंधन के मुद्दों पर मंत्री स्तरीय अंतर-मंत्रालयी बैठक में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से शामिल हुए. बैठक के दौरान उन्होंने पराली जलाने के मुद्दे पर चर्चा की और किसानों से आग्रह किया कि वे पराली को जलाने के बजाय इसके प्रबंधन के बेहतर उपायों को अपनाएं. उन्होंने किसानों को एक्स-सीटू, इन-सीटू और बायोडीकंपोज़र जैसे आधुनिक तकनीकों को अपनाने की सलाह दी, ताकि पराली को एक समस्या के रूप में नहीं बल्कि एक संसाधन के रूप में उपयोग किया जाए.
उन्होंने यह भी कहा कि पराली जलाने से बचने और इसके वैकल्पिक उपयोग से न केवल पर्यावरण को लाभ होगा, बल्कि किसानों के लिए भी यह आर्थिक रूप से फायदेमंद साबित होगा. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पराली समस्या नहीं, बल्कि समाधान है और इसे सही तरीके से उपयोग में लाने से कृषि क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव लाए जा सकते हैं. वर्चुअल मीटिंग में केंद्रीय वन पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव, केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री भागीरथ चौधरी, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली के कृषि मंत्री, दिल्ली के वन पर्यावरण मंत्री, राज्यों के मुख्य सचिव और कृषि सचिव सहित प्रमुख अधिकारी शामिल हुए.
ये भी पढ़ें - हरियाणा के धान और बाजरा किसानों को मिले 6,833 करोड़ रुपये, सीधा बैंक खाते में आया MSP का पैसा
बैठक के दौरान सामने आया कि पिछले साल से इस साल तक पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में पंजाब में 35% कमी आई है. हरियाणा में 21% कमी आई है. 2017 के मुकाबले पराली जलाने की घटनाओं में भी 51% से भी ज्यादा की कमी आई है, लेकिन अभी लगातार ध्यान देने की जरूरत है. राज्यों ने बताया कि वह लगातार मॉनिटरिंग कर रहे हैं, उनके नोडल अफसर तय हैं. माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का पालन कर रहे हैं और सरकारी अपनी ओर से भी सारे प्रयत्न कर रही है.
पिछले साल सब्सिडी पर केंद्र सरकार ने 3 लाख से ज्यादा मशीनें दी हुई हैं, जो जलाने की जगह पराली प्रबंधन का काम करती है. उन मशीनों का प्रभावी प्रयोग किया जाएगा और किया भी जा रहा है. कई बार छोटे किसानों तक इन मशीनों की पहुंच नहीं हो पाती है, जिनके पास छोटे खेत होते हैं तो कस्टम हायरिंग सेंटर से मशीनें लेकर वह कैसे पराली का प्रबंधन कर पाएं.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today