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Rat Control: चूहों से हैं परेशान तो उल्लू करेगा समाधान, किसानों का मददगार बना ये पक्षी

Rat Control: चूहों से हैं परेशान तो उल्लू करेगा समाधान, किसानों का मददगार बना ये पक्षी

चूहों की बढ़ती संख्या से परेशान किसानों के लिए एक अद्वितीय समाधान आगे आया है जिसका ना है उल्लू. उल्लू की संख्या बढ़ने कैसे चूहों की संख्या कम हो सकती है, इस पर अध्ययन किया गया है. बहुत से देशों में चूहों के प्रकोप से निपटने के लिए किसानों का भरोसा अब उल्लू पर है. खेतों के पास उल्लू की उपस्थिति बढ़ाकर चूहों के प्रकोप से निपटा जा सकता है.

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किसानों का मददगार उल्लू किसानों का मददगार उल्लू

चूहों की विवशता है कि बिना कुतरे नहीं रह सकते क्योंकि उनके दांत हर रोज 8.4 मिमी से बढ़ते हैं और साल में 12 से 15 मिमी तक बढ़ जाते हैं. अगर ये न काटें या कुतरें, तो स्वयं ही विनाश के करीब पहुंच जाएंगे. खेती के मामले में खेत से लेकर अनाज के गोदामों तक ये नुकसान पहुंचा सकते हैं. चाहे वह पौधों की बढ़वार की स्थिति हो, या उनके फलने-फूलने का समय हो, चूहे लगातार नुकसान पहुंचाते रहते हैं. रबी फसलों में जैसे कि गेहूं और मक्के के खेतों में बिल बनाकर मुलायम पौधों और बालियों, दानों को काट कर नुकसान पहुंचाते हैं. एक अनुमान के अनुसार, रबी फसलों में लगभग 11 प्रतिशत तक का नुकसान हो सकता है.

खेत से स्टोरेज तक, चूहों के कारण नुकसान

आरपीसीएयू कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर के प्लांट पैथोलॉजी और नेमेटोलॉजी के हेड डॉ. संजय कुमार सिंह ने बताया कि गेहूं में चूहों के कारण होने वाले नुकसान खड़ी फसल, भंडारण और यहां तक कि परिवहन के दौरान एक बड़ी समस्या है. उन्होंने बताया कि चूहे बड़ी मात्रा में गेहूं खाते हैं, जिससे प्रत्यक्ष नुकसान होता है. चूहे खेतों में गेहूं के पौधों को क्षति पहुंचाते हैं. तने और पुष्पक्रम को कुतरते हैं. इसके बाद वे गेहूं के दानों को सीधे खेतों से, कटाई के दौरान, परिवहन में या भंडारण के दौरान खा सकते हैं. दूसरा, चूहे अपने मल, मूत्र से गेहूं को दूषित करते हैं, जिससे गेहूं मानव या पशु उपभोग के लिए बेकार हो जाता है. तीसरा, चूहे से स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है. 

हर तरह से किसान के लिए आफत

डॉ. सिंह ने बताया कि स्टोरेज में चूहे पैकेजिंग और भंडारण संरचनाओं को नुकसान पहुंचाते हैं. चूहों के गेहूं को क्षतिग्रस्त या दूषित करने से गेहूं की गुणवत्ता खराब होती है, जिससे गेहूं का बाजार मूल्य भी काफी प्रभावित होता है. चूहे मनुष्यों और पशुओं दोनों में रोग फैला सकते हैं. गेहूं के खेतों या भंडारण क्षेत्रों में चूहे की उपस्थिति संभावित बीमारियों के प्रसार के कारण स्वास्थ्य जोखिम पैदा करती है. चूहों के कारण गेहूं के नुकसान से किसानों को बहुत अधिक आर्थिक नुकसान होता है. 

फसलों और अनाज का खतरनाक दुश्मन है चूहा

चूहों के दुश्मन उल्लू को संरक्षण दें

डॉ. संजय कुमार सिंह ने सुझाव दिया कि उल्लू या अन्य शिकारी पक्षियों को खेतों के पास आश्रय देने से चूहों की आबादी को नियंत्रित करने में मदद मिलती है. उन्होंने बताया कि जब फरवरी माह में गेहूं की बालियां उगने लगती हैं, तो खेत के मेंढ़ पर खड़े होकर देखने पर कुछ जगहों पर गेहूं की बालियां उठी हुई दिखाई देती हैं. ये इस बात का संकेत है कि चूहों का आक्रमण हो चुका है. इन जगहों पर बांस की फट्टी पर पॉलीथिन का पहिया बांधना चाहिए, जिसे स्थानीय भाषा में "धुआं" कहते हैं. इससे रात में उल्लू उस पर बैठेंगे और चूहों का शिकार करेंगे. साथ ही जब रात को हवा चलेगी तो पॉलीथिन के पन्नों से फरफराहट की तेज आवाज निकलेगी, जिससे चूहे खेत से भाग जाएंगे. इस प्रकार बिना किसी लागत के और मेहनत के चूहों का प्राकृतिक नियंत्रण किया जा सकता है. यह विधि चूहों के संक्रमण को प्रबंधित करने के लिए पर्यावरण के अनुकूल दृष्टिकोण देती है.

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किसानों का मददगार है उल्लू 

डॉ सिंह के अनुसार, धरती पर पारिस्थितिकी संतुलन बनाने में उल्लू अहम भूमिका निभाता है. हानिकारक कीड़े मकोड़ों का शिकार करने के कारण इन्हें प्रकृति का सफाईकर्मी भी कहते हैं. हमारे देश में दीपावली पर तंत्रमंत्र और अंधविश्वास के चक्कर में कुछ लोग उल्लू को मार देते हैं. उल्लू के संरक्षण के लिए ऐसे लोगों की सूचना वन विभाग और पुलिस को दें. उल्लू एक ऐसा पक्षी है जिसे दिन के मुकाबले रात में साफ दिखाई देता है. इसीलिए ये रात को ही शिकार करता है. ये अपनी तेज सुनने की शक्ति के दम पर ही शिकार करता है. छछूंदर, सांप और रात को उड़ने वाले कीट पतंगे खाता है. एक उल्लू एक साल में एक हजार के आसपास चूहे खा जाता है.

चुहों से नियंत्रण की कारगर तकनीक
चूहों से फसल बचाव के लिए कारगर तकनीक

मलेशिया में लोग पाल रहे उल्लू

दुनियाभर में उल्लू की करीब 200 प्रजातियां हैं. भारत में मुख्य दो प्रजाति मुआ और घुग्घू पाई जाती है. मुआ पानी के करीब और घुग्घू खंडहरों और पेड़ों पर रहते हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार मलेशिया में किसान फसल बचाने के लिए उल्लू पाल रहे हैं. मलेशिया के पाम उत्पादकों ने फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले जंतुओं और कीटों से बचाने के लिए उल्लू को पालना शुरू किया है. उन्हें पाम पेड़ों का रक्षक मानकर उनके करीब निवास बनाकर दिया जाता है. भारतीय वन्य जीव अधिनियम,1972 की अनुसूची एक के तहत उल्लू संरक्षित हैं. ये विलुप्त प्राय जीवों की श्रेणी में दर्ज हैं. इनके शिकार या तस्करी पर कम से कम तीन वर्ष सजा का प्रावधान है. अगर कोई उल्लू का शिकार कर रहा है तो उसके बारे में वन विभाग को सूचना दें.

जानिए उल्लू पक्षी की खासियत

डॉ संजय कुमार सिंह ने कहा कि उल्लू बुद्धिमान पक्षी होता है. ये इंसान के मुकाबले 10 गुना धीमी आवाज सुन सकता है. उल्लू अपने सिर को दोनों तरफ 135 डिग्री तक घुमा सकता है. बेहद शांत उल्लू के आकार में एक जैसे नहीं होते हैं. दुनिया का सबसे छोटा उल्लू 5-6 इंच और सबसे बड़ा 32 इंच का होता है. उल्लू अंटार्टिका के अलावा सब जगह पाए जाते हैं. पलकें नहीं होने के कारण इनकी आंखें हरदम खुली रहती हैं. उल्लू के पंख चौड़े और शरीर हल्का होता है, इस कारण उड़ते वक्त ये ज्यादा आवाज नहीं करते. उल्लू झुंड में नहीं रहते, ये अकेले रहना पसंद करते हैं.

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गेहूं के खेतों और भंडारण की सुविधाओ में चूहों से नुकसान को रोकना और फसल की गुणवत्ता बनाए रखना बहुत जरूरी है. चूहों की आबादी को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने के लिए सफाई , जैविक नियंत्रण, केमिकल दवा इस्तेमाल किया जा सकता है. हालांकि, इन विधियों को सुरक्षा, पर्यावरणीय प्रभाव और लागत-कम करने के लिए सावधानी और विचार के साथ लागू किया जाना चाहिए.