आसान नहीं है क्वालिटी प्रोटीन मक्का की खेती, रखनी पड़ती है विशेष सावधानी 

आसान नहीं है क्वालिटी प्रोटीन मक्का की खेती, रखनी पड़ती है विशेष सावधानी 

QPM Hybrid Maize Farming: उत्तराखंड स्थित विवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों के मुताबिक क्यूपीएम और गैर-क्यूपीएम यानी सामान्य मक्का फसल की बुवाई अलग-अलग जरूरी है. वरना क्यूपीएम के दानों में ट्रिप्टोफैन व लाइसीन की मात्रा में कमी आ जाएगी.

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आसान नहीं है क्वालिटी प्रोटीन मक्का की खेती, रखनी पड़ती है विशेष सावधानी जानिए क्वालिटी प्रोटीन वाले मक्के की खेती के बारे में

क्यूपीएम मक्का क्या है और इंसानों के लिए यह कितना फायदेमंद है इसे हम आपको बता चुके हैं. अब इसकी खेती के बारे में जानते हैं. इसकी खेती सामान्य मक्का की तरह ही की जाती है, लेकिन उसमें कुछ सावधानियां बरतनी पड़ती हैं. जिनमें सबसे प्रमुख है पृथक्करण. इसका मतलब हदबंदी या सेपरेशन है. क्यूपीएम यानी क्वालिटी प्रोटीन मक्का को गैर-क्यूपीएम यानी सामान्य मक्का फसल से अलग रखना आवश्यक है, अन्यथा परपरागण द्वारा इसकी गुणवत्ता प्रभावित हो जाएगी. जिससे दानों में ट्रिप्टोफैन व लाइसीन की मात्रा में कमी आ जाएगी. यह पृथक्करण दो प्रकार से प्राप्त किया जा सकता है .इसमें एक है भौतिक पृथक्करण और दूसरा सामयिक पृथक्करण. 

विवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि क्यूपीएम की फसल को अवांछित परपरागण से बचाने के लिए उसे गैर क्यूपीएम फसल से कम से कम 200 मीटर की दूरी पर लगाना चाहिए. यह भौतिक पृथक्करण है. लेकिन, आमतौर पर देखा गया है कि भौतिक पृथक्करण करना संभव नहीं होता है ऐसे में सवाल ये है कि किसान क्या करें. 
 

अनचाहे परपरागण से फसल को कैसे बचाएं

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार किसान क्यूपीएम की फसल को गैर-क्यूपीएम फसल से सामयिक अंतराल (बसंत-ग्रीष्म में लगभग 30 दिन व खरीफ में लगभग 20 दिन) पर लगा सकते हैं, जिससे दोनों फसलों की पुष्पावस्था अलग-अलग समय पर होगी. इस तरह क्यूपीएम की फसल को अवांछित परपरागण से बचाया जा सकता है. इस तरीके को सामयिक पृथक्करण कहते हैं. 

क्यूपीएम फसल के लिए खेत की तैयारी

मक्का की खेती रेतीली भूमि से लेकर चिकनी मिट्टी तक में की जा सकती है. दोमट से भारी मिट्टी जिसमें कार्बनिक पदार्थ व नमी बनाए रखने की क्षमता अधिक हो तथा जल निकास का उचित प्रबंध हो, मक्का की खेती के लिये सर्वोत्तम रहती है. मिट्टी की भौतिक स्थिति को दुरुस्त रखने एवं उसकी जल ग्रहण क्षमता बढ़ाने के लिए पहली जुताई के समय 100-150 क्विंटल प्रति हैक्टेयर (2-3 क्विंटल/नाली) की दर से गोबर की खाद डालनी चाहिए. जबकि दूसरी जुताई में बुआई करनी चाहिए. चूंकि फास्फोरस व पोटाश की आवश्यकता हर खेत में समान नहीं होती है इसलिए मक्का की बुवाई से पहले मिट्टी की जांच करवा कर उर्वरकों की उचित मात्रा निर्धारित कर डालनी चाहिए. 

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क्या होगी बीज दर एवं बुआई की विधि

जुलाई में इसकी बुवाई का सही वक्त होता है. कृषि वैज्ञानिकों की सलाह है कि किसानों को अच्छी फसल के लिए उपयुक्त किस्मों के प्रमाणित बीज ही बोने चाहिए. बुआई कतार में करनी चाहिए. कतार से कतार की दूरी 60 सेमी व कतार में पौधे से पौधे की दूरी 20 सेमी रखनी चाहिए. ऐसा करने से प्रति हैक्टेयर 80-85 हजार पौधे रखे जा सकते हैं. यह दूरी पर्वतीय क्षेत्रों के लिए है. इस प्रकार एक हैक्टेयर के लिए 22 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है. 

मैदानी क्षेत्रों में कृषि कार्यों के यांत्रिक क्रियान्वयन में सुविधा के लिए कतार से कतार की दूरी 75 व कतार में पौधे से पौधे की दूरी 20 सेमी रखी जाती है. बुवाई के समय जमीन में पर्याप्त नमी होनी चाहिए. बीज 5-6 सेमी की गहराई में बोने चाहिए. बीज में फफूंद लगने से जमाव प्रभावित होता है. प्रारंभिक अवस्था में पौधों की जड़े व तना सड़ने लगते हैं. इसके बचाव के लिए कवकनाशी थीरम 3 ग्राम या कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीज को उपचारित करें.

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