पिछले 50 वर्षों के दौरान वैश्विक बागवानी उद्योग ने काफी प्रगति की है. फलों एवं सब्जियों के उत्पादन एवं उत्पादकता ने नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं. इस अवधि में इन बागवानी फसलों की उपज 25 मिलियन मीट्रिक टन से 13 गुना बढ़कर 331 मिलियन मीट्रिक टन के रिकार्ड स्तर पर जा पहुंच चुकी है. इन्हीं सफलताओं की बदौलत भारत, विश्व का दूसरा सबसे बड़ा बागवानी फसलों का उत्पादक बन चुका है. फलोत्पादन बढ़कर 676.9मिलियन टन तो सब्जी उत्पादन 879.2 मिलियन टन के स्तर को छू रहा है. इसी प्रकार ताजा फूलों का कारोबार 40-60 बिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक हो चुका है.
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि विश्व में पुष्प यानी फूल उत्पादन में चीन के बाद भारत का स्थान है. इस प्रकार देखा जाए तो विश्वव्यापी स्तर पर बागवानी उद्योग की चहुंमुखी उन्नति से अनुसंधान, रोजगार, प्रसंस्करण उद्योग सहित तमाम क्षेत्रों में नए अवसरों का बड़े पैमाने पर सृजन हुआ है. इतना ही नहीं ऐसे देश कम नहीं है जिनकी अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने में बागवानी फसलों के निर्यात से प्राप्त विदेशी मुद्रा की भूमिका अत्यंत अहम् हो गई है.
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भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद यानी आईसीएआर के वैज्ञानिक अशोक सिंह ने इस बारे में विस्तार से जानकारी दी है. उनके अनुसार भारत में भी बागवानी फसलों का कृषि के सकल घरेलू उत्पादन में योगदान बढ़कर अब 30 फीसदी तक हो चुका है. यहां यह बताना प्रासंगिक होगा कि मात्र 14 प्रतिशत कृषि क्षेत्र में ही बागवानी फसलें लगाई जाती हैं और कुल कृषि निर्यात की 40 प्रतिशत आय हासिल करने का श्रेय भी इसी क्षेत्र को जाता है.
देश में बागवानी फसलों की इस सफलता गाथा में भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बेंगलुरु के उल्लेखनीय योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है. संस्थान के वैज्ञानिकों के अथक प्रयासों से इन फसलों की तमाम उच्च पैदावार देने वाली किस्मों के साथ ही टिकाऊ एवं आय बढ़ोतरी में योगदान देने वाली कृषि तकनीकों को भी सफलतापूर्वक विकसित कर बागवानों तक पहुंचाया गया है. हाल के वर्षों में बागवानी फसलों के संरक्षण तथा इनके प्रसार-प्रचार पर संस्थान द्वारा काम किया जा रहा है ताकि इन फसलों की अधिकाधिक विविधता को बरकरार रखते हुए पोषण सुरक्षा को बढ़ाया जा सके.
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