देश के सबसे बड़े प्याज उत्पादक राज्य महाराष्ट्र में प्याज की खेती एक साल में तीन बार होती है. लेकिन सभी राज्यों में ऐसा नहीं होता. अधिकांश प्रदेशों में रबी सीजन के प्याज का उत्पादन होता है. लेकिन अब बिहार में भी बारिश के सीजन प्याज की खेती होगी. खास बात यह है कि इसकी खेती के लिए किसानों को नर्सरी तैयार करने की जरूरत नहीं होगी. असल में यह खेती कंद से होगी. भागलपुर स्थित कृषि विज्ञान केंद्र की बागवानी वैज्ञानिक डॉ. ममता कुमारी ने इस तरीके से प्याज की खेती करवाने की लगभग तीन साल पहले शुरुआत की थी. इसका परिणाम भी बेहतर मिलने का दावा किया जा रहा है. किसान भी प्याज की परंपरागत खेती छोड़कर खरीफ की खेती की ओर मुड़ने लगे हैं.
बागवानी वैज्ञानिकों के अनुसार बारिश में नासिक से भी प्याज की आवक कम होती है. ऐसे में स्थानीय किसान बेहतर फायदा उठा सकते हैं. डॉ. ममता ने बताया कि कृषि विज्ञान केंद्र के मार्गदर्शन में सुल्तानगंज ब्लॉक के रन्नूचक निवासी मुरारी भूषण, कहलगांव मंडल के नंदलालपुर के किसान ब्रह्मादेव सिंह व पुदिन यादव और आलमपुर के पीएन सिंह कंद से प्याज की खेती कर रहे हैं. परिणाम अच्छा रहा है. इनकी खेती देखकर दूसरे किसानों का भी इस तरफ रुझान हो रहा है.
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डॉ. ममता ने बताया कि खरीफ प्याज की खेती सपाट खेत के बजाय उठी हुई क्यारियों में में आलू की तरह कंद से की जाएगी. अब तक किसान परंपरागत तरीके से नर्सरी तैयार करते थे और यहां के पौधे खेतों में लगाते थे.
जनवरी के अंत व फरवरी के प्रथम सप्ताह में किसान नर्सरी में पांच-पांच सेंटीमीटर की दूरी पर बीज डाल सकते हैं. मई के प्रथम सप्ताह में स्वस्थ कंदों का चयन कर किसान इसे डेढ़-दो सेंटीमीटर के जूट के बैग में भंडारित करेंगे. इन कंदों की रोपाई अगस्त के दूसरे सप्ताह में की जाएगी. नवंबर-दिसंबर में प्याज की फसल तैयार हो जाएगी.
डॉ. ममता ने बताया कि कृषि विज्ञान केंद्र के मार्गदर्शन में सुल्तानगंज प्रखंड के रन्नूचक निवासी मुरारी भूषण, कहलगांव अनुमंडल के नंदलालपुर के किसान ब्रह्मादेव सिंह और पुदिन यादव के अलावा आलमपुर के पीएन सिंह कंद से प्याज की खेती कर रहे हैं. इसका सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिल रहा है. अन्य किसानों को भी इसकी खेती के लिए जागरूक किया जा रहा है.
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