दिल्ली एनसीआर की आलू की जरूरत पूरी करने वाले प्रमुख राज्यों में शामिल हिमाचल प्रदेश के कुछ जिलों में आलू पैदावार में गिरावट आने की बात कही जा रही है. ऐसे में दिल्ली के बाजारों में पहले से ही 40 फीसदी की उछाल के साथ बिक रहे आलू के दाम में और आग लगने की आशंका बढ़ गई है. दिल्ली के थोक बाजार में भी आलू का दाम तेजी से बढ़ रहा है. बता दें कि सब्जियों की महंगाई को देखते हुए आरबीआई भी अक्टूबर की खुदरा महंगाई दर में उछाल की आशंका जता चुका है. क्योंकि, टमाटर, प्याज और लहसुन के दाम भी ऊपर चढ़ते जा रहे हैं.
दिल्ली में सब्जियों की महंगाई ने रसोई का बजट बिगाड़ रखा है. इसकी वजह से अक्टूबर में घर की बनी थाली की कीमत 20 फीसदी तक बढ़ गई है. प्याज, जो हर डिश का बेसिक इंग्रीडिएंट है, उसकी कीमतें कई जगह 60 से 80 रुपए प्रति किलो तक पहुंच चुकी हैं. वहीं, टमाटर और आलू के दाम भी 30 से 40 परसेंट तक बढ़ गए हैं. नया आलू दिल्ली एनसीआर के बाजार में 60 रुपये प्रति किलो तक बिक रहा है, जो पहले 40 रुपये में था. वहीं, नई आलू की नई आवक शुरू होने पर ही दाम में गिरावट की संभावना जताई जा रही है. दिल्ली की थोक बाजार आजादपुर में 1 अक्टूबर को आलू का थोक मॉडल प्राइस 1992 रुपये प्रति क्विंटल था, जो 9 नवंबर तक बढ़कर 2068 रुपये प्रति क्विंटल पहुंच गया है.
दिल्ली एनसीआर के बाजारों में आलू की सप्लाई उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और हिमाचल प्रदेश से सबसे ज्यादा होती है. लेकिन, हिमाचल प्रदेश के ऊना समेत कुछ जिलों में आलू की पैदावार में गिरावट की आशंका जताई गई है, जिसके बाद से दिल्ली में आलू का दाम चढ़ने की बात कही जा रही है. एजेंसी के अनुसार ऊना जिले में मौसम बदलाव के चलते आलू की पैदावार में 30 फीसदी की गिरावट आई है. किसानों का कहना है कि इस साल ऊना जिले में गेहूं और मक्का के बाद आलू तीसरी मुख्य फसल है और इसे किसानों की आर्थिकी में बड़ा सहारा माना जाता है.
हिमाचल के ऊना में आलू की खेती का रकबा करीब 1,200 हेक्टेयर पर स्थिर बना हुआ है. हालांकि, किसानों के अनुसार पैदावार में करीब 30 फीसदी की गिरावट से इस साल उत्पादन प्रभावित होगा. जिले में सालाना करीब 20,000-25,000 टन आलू का उत्पादन होता है. किसान रविंद्र सैनी, अजय कुमार, देसराज और सुखविंदर ने बताया कि आलू की फसल को 3,000-3,600 रुपये प्रति क्विंटल का अच्छा भाव मिल रहा है, लेकिन सितंबर के पहले हफ्ते में अधिक तापमान के चलते पैदावार बहुत कम रही. किसानों का कहना है कि कई खेतों में फसल उत्पादन घटकर एक से दो क्विंटल प्रति कनाल रह गया है, जबकि सामान्य तौर पर प्रति कनाल 7-8 क्विंटल उत्पादन होता है.
मौसम के उतार-चढ़ाव से फसल प्रभावित होती है. कृषि उपनिदेशक कुलभूषण धीमान ने जिले में आलू की पैदावार का जिक्र करते हुए कहा कि इस बार गर्मी ज्यादा रही और बाद में बेमौसम बारिश ने फसल को नुकसान पहुंचाया है. उन्होंने कहा कि जिले में आलू की जुताई शुरू हो गई है. जिन क्षेत्रों में आलू की खेती नहीं होती है, वहां किसान नवंबर की शुरुआत में गेहूं की बुआई करते हैं, जबकि आलू उत्पादक क्षेत्रों में देर से बुआई होती है, लेकिन पिछले डेढ़ महीने से जिले में बारिश नहीं होने से किसानों को गेहूं की बुआई में दिक्कत आ रही है.
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