Rice Varieties: इसे कहते हैं 'चावल का राजकुमार', मॉनसून में होती है इसके धान की कटाई

Rice Varieties: इसे कहते हैं 'चावल का राजकुमार', मॉनसून में होती है इसके धान की कटाई

इस चावल के बारे में जानकार आपके मुंह में भी पानी आ सकता है और आपका भी इस चावल को खाने का मन हो सकता है. दरअसल, बिहार, बंगाल और अन्य राज्यों में होने वाला गोविंद भोग चावल अपने आप में बेहद खास है. यह चावल की बेहद खास किस्म है और इस चावल की खुशबू आपका मन मोह लेगी.

Advertisement
Rice Varieties: इसे कहते हैं 'चावल का राजकुमार', मॉनसून में होती है इसके धान की कटाईगोविंद भोग चावल

आपने कई तरह के चावल खाए होंगे, लेकिन जिस चावल के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं, इस चावल को खाने वाले लोगों के मुंह में इसका नाम सुनकर ही पानी आने लगता है. यही कारण है कि लोग इसे चावल का राजकुमार भी कहते हैं. इस चावल के बारे में जानकार आपके मुंह में भी पानी आ सकता है और आपका भी इस चावल को खाने का मन हो सकता है. दरअसल, बिहार, बंगाल और अन्य राज्यों में होने वाला गोविंद भोग चावल अपने आप में बेहद खास है. यह चावल की बेहद खास किस्म है और इस चावल की खुशबू आपका मन मोह लेगी. स्थानीय लोग इसे सोनाचूर चावल भी कहते हैं. यह चावल की बेहद खास किस्म है और इसके धान की कटाई इसी मौसम यानी मॉनसून के समय की जाती है. और क्या-क्या है इस चावल की खासियत आइए जानते हैं.

अगर कहीं यह चावल पक रहा हो तो पूरा वातावरण सुगंधित हो जाता है. अपने बेहद खास स्वाद और सुगंध के कारण इसकी मांग काफी अधिक है. लोग इस चावल को पाने के लिए मांग कर अपनी इच्छा जाहिर करने को मजबूर हो जाते हैं. 

300 वर्षों से हो रही है इसकी खेती

बंगाल के बर्दवान जिले की एक खासियत, गोबिंदभोग सुगंधित चावल की एक देशी किस्म है जिसकी खेती लगभग 300 वर्षों से की जा रही है. अपनी खास सुगंध और पौष्टिक स्वाद के कारण, यह गैर-बासमती चावल प्रीमियम किस्म का है और इसे प्यार से 'चावल का राजकुमार' भी कहा जाता है. यह छोटे दाने वाला चावल चिपचिपा बनावट वाला सफ़ेद रंग का होता है और मॉनसून के मौसम में काटा जाता है. जिससे इसमें कीड़े लगने की संभावना कम होती है. ऐसा माना जाता है कि इस चावल की किस्म को 'गोबिंदभोग' नाम तब दिया गया जब इसका इस्तेमाल कोलकाता सेट के कुल देवता भगवान 'गोविंदा जीउ' को प्रसाद तैयार करने में किया जाता था.

ये भी पढ़ें: गैर-बासमती धान की वैरायटी को बढ़ावा दें प्रधानमंत्री, किसान संगठन ने उठाई मांग

बंगाली व्यंजन के लिए खास है ये चावल

इसकी मीठी और मनमोहक सुगंध इसे कई स्वादिष्ट व्यंजनों के लिए एक बेहतर विकल्प बनाती है. गोबिंदभोग चावल पयेश, मिष्टी पोलाऊ, खिचड़ी (लगभग हर बंगाली घर में चावल और दाल से बना एक मुख्य व्यंजन) और मछली के सिर से बना प्रसिद्ध बंगाली व्यंजन- मुरी घोंटो में मुख्य सामग्री है. इसे आसानी से खाया जा सकता है, क्योंकि यह भूरे चावल की तुलना में हमारे शरीर द्वारा बेहतर तरीके से पच जाता है.

ये भी पढ़ें: ओडिशा की पुरानी चावल किस्‍म से तैयार हुई नई वैरायटी, बाढ़ तक झेलने में सक्षम और स्वाद में दमदार

क्या है इस चावल की कहानी

रसगुल्ले की तरह ही भारत सरकार गोविंद भोग चावल की उत्पत्ति पश्चिम बंगाल को मानती है. इस संबंध में, 2017 में भारत सरकार ने गोविंद भोग चावल की खेती के लिए पश्चिम बंगाल को भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग आवंटित किया. बंगाल से आने वाले लोग इसके अनोखे स्वाद से अच्छी तरह वाकिफ होंगे. हालांकि, सिर्फ पश्चिम बंगाल ही नहीं, ओडिशा, असम और बिहार भी इसकी खेती की जाती है. शोध के अनुसार, इस चावल का उपयोग भगवान कृष्ण को परोसने के लिए पोलाओ, पायेश या चावल की खीर और खिचड़ी (हॉटचपॉट) जैसे व्यंजन तैयार करने के लिए किया जाता है. आप जानते ही होंगे कि कृष्ण के 108 नाम हैं और गोविंद उनमें से एक है. चावल के इस नाम के पीछे यही कहानी है.

POST A COMMENT