सिक्किम के लिए ICAR ने तैयार की ऑर्गेनिक बैंगन की ये दो किस्में, 60 रुपये किलो तक बिकेगी पैदावार

सिक्किम के लिए ICAR ने तैयार की ऑर्गेनिक बैंगन की ये दो किस्में, 60 रुपये किलो तक बिकेगी पैदावार

सिक्किम के लेप्चा किसान सबसे अधिक ऑर्गेनिक बैंगन की खेती करते हैं जिस पर बारिश के दौरान नमी बढ़ने से कीट हमला बोल देते हैं. इससे उपज को नुकसान होता है. यहां के किसानों की शुरू से आदत है कि वे फसलों को बचाने या उसकी सुरक्षा के लिए आधुनिक तौर-तरीकों का प्रयोग नहीं करते. वे पूरी तरह से प्राकृतिक स्रोतों का सहारा लेते हैं. इसे देखते हुए ICAR ने बैंगन की ऐसी किस्म इजाद की है जिस पर कीट नहीं लगते. इससे किसानों की ऑर्गेनिक खेती में पैदावार बढ़ रही है.

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सिक्किम के लिए ICAR ने तैयार की ऑर्गेनिक बैंगन की ये दो किस्में, 60 रुपये किलो तक बिकेगी पैदावारसिक्किम में ऑर्गेनिक बैंगन की खेती

सिक्किम में लेप्चा आदिवासी किसान शुरू से ऑर्गेनिक खेती करते आए हैं. इसमें वे परंपरागत फसलों की खेती करते हैं, खासकर सब्जियों की. इसमें वे मिक्स क्रॉपिंग यानी कि कई सब्जियों की एकसाथ खेती वाली तकनीक अपनाते हैं. लेप्चा किसान इस तरह की खेती कमाई के लिए नहीं बल्कि खुद की खपत के लिए करते हैं. इसी सब्जी से उनके खाने का इंतजाम होता है. ऑर्गेनिक खेती से उन्हें अधिक उपज मिलती है, साथ ही उन्हें कीटनाशक या दवाओं का खर्च बचता है. हालांकि इन किसानों और उनकी सब्जियों को कई मुसीबतों से जूझना पड़ता है. इसमें कुछ कीट हैं जो फसलों को हानि पहुंचाते हैं.

लेप्चा किसान सबसे अधिक ऑर्गेनिक बैंगन की खेती करते हैं जिस पर बारिश के दौरान नमी बढ़ने से कीट हमला बोल देते हैं. इससे उपज को नुकसान होता है. यहां के किसानों की शुरू से आदत है कि वे फसलों को बचाने या उसकी सुरक्षा के लिए आधुनिक तौर-तरीकों का प्रयोग नहीं करते. वे पूरी तरह से प्राकृतिक स्रोतों का सहारा लेते हैं. इसे देखते हुए ICAR ने बैंगन की ऐसी किस्म इजाद की है जिस पर कीट नहीं लगते. इससे किसानों की ऑर्गेनिक खेती में पैदावार बढ़ रही है.

इन दो किस्मों का इजाद

लेप्चा किसानों की मदद में आईसीएआर एनईएच सिक्किम ने बैंगन की पूसा पर्पल लॉन्ग और पूसा पर्पल क्लस्टर किस्म तैयार की है. ये दोनों किस्में ऑर्गेनिक खेती के लिए उपयुक्त हैं. साथ ही इन किस्मों पर शूट और फ्रूट बोरर कीटों का हमला नहीं होता. इसके अलावा इन दोनों किस्मों पर बैक्टीरियल विल्ट का भी प्रकोप नहीं होता. इन किस्मों की खेती उत्तरी सिक्किम के आदिवासी क्षेत्र लेप्चा के गांवों और लोअर जोंगू में की जा रही है.

यहां के किसानों ने ऑर्गेनिक खेती की कई तकनीक अपनाई है. वे परंपरागत खेती में ही ऑर्गेनिक तौर-तरीकों को अपना रहे हैं. इसमें वे वर्मी कंपोस्ट, मल्चिंग, समुद्री शैवाल का इस्तेमाल कर रहे हैं. इससे उन्हें बैंगन से 21-30 टन प्रति एकड़ तक उपज मिल रही है. इस उपज के लिए किसानों को अधिक खर्च करने की जरूरत नहीं पड़ती और वे कम लागत में अधिक पैदावार ले रहे हैं.

50-60 रुपये बिकती है उपज

किसान पहले जहां खुद के खर्च के लिए बैंगन उगाते थे, वे अब अधिक पैदावार का फायदा लेते हुए इसे नजदीक के बाजारों में बेचकर मुनाफा भी कमा रहे हैं. यहां के किसान बताते हैं कि बैंगन की टहनी और फल छेदक (ल्यूसिनोड्स ऑर्बोनेलिस) कीटों ने सिक्किम हिमालय में जैविक बैंगन की खेती के लिए एक बड़ी चुनौती पेश की, जिससे बरसात के मौसम में 80 परसेंट तक उपज का नुकसान हुआ. 

2022 से, ICAR NEH सिक्किम ने कंचनजंगा बायोस्फीयर रिजर्व के आदिवासी लेप्चा गांवों में ऑर्गेनिक बैंगन की खेती पर एक डेमो दिया. इसमें किसानों को ऑर्गेनिक बैंगन की खेती के बारे में बताया गया. इसमें कुल 136 किसानों ने सहनशील किस्मों जैसे पूसा पर्पल लॉन्ग (फल और टहनी छेदक प्रतिरोध के लिए) और पूसा पर्पल क्लस्टर (बैक्टीरियल विल्ट के लिए) को अपनाया. किसानों ने रोपाई के दौरान वर्मीकंपोस्ट (0.6-0.8 टन प्रति एकड़) डाला और खरपतवार और श्रम लागत को कम करने के लिए मल्चिंग का इस्तेमाल किया. साथ ही विकास को बढ़ावा देने के लिए समुद्री शैवाल का अर्क भी डाला. बैंगन 75-90 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो गया, अक्टूबर के मध्य तक 4-7 बार तुड़ाई की गई, जिसकी कीमत 50-60 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गई.

 

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