गेहूं उत्पाद संवर्धन सोसायटी के अध्यक्ष अजय गोयल का कहना है कि इस साल गेहूं का आयात करना जरूरी हो सकता है. उनकी माने तो केंद्र सरकार के पास ओपन मार्केट में नीलामी के जरिए गेहूं बेचने के लिए पर्याप्त गेहूं का स्टॉक नहीं है. उनका कहना है कि सरकारी भंडार में मौजूदा स्टॉक बफर और विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों के लिए पर्याप्त है, लेकिन बाजार में महत्वपूर्ण हस्तक्षेप के लिए पर्याप्त नहीं है. ऐसे डिमांड के अनुसार, ओपन मार्केट में गेहूं की आपूर्ति करने के लिए इसका आयात करना पड़ेगा.
सीएनबीसी टीवी 18 की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के सरकारी गोदामों में 1 मई को गेहूं का स्टॉक साल दर साल 10.3 फीसदी कम होकर 2008 के बाद सबसे कम हो गया. क्योंकि दो साल तक कम उत्पादन के कारण घरेलू आपूर्ति बढ़ाने और स्थानीय कीमतों को कम करने के लिए रिकॉर्ड मात्रा में गेहूं बिक्री की गई. गोयल ने कहा कि अगस्त या सितंबर तक, अगर मांग आपूर्ति से अधिक हो जाती है, तो सरकार को आयात को सुविधाजनक बनाने के लिए आयात शुल्क को 44 फीसदी से घटाकर शून्य करना पड़ सकता है.
उन्होंने कहा कि गेहूं कटाई के मौसम के बाद, मई और जून के आसपास मार्केट में चुनौतियां आती हैं. इस समय मंडियों में गेहूं की आवक बंद हो जाती है. इस समय, हर कोई सरकार से बाजार में स्टॉक जारी करने की उम्मीद करता है. गोयल ने कहा कि साल 2022 में, सरकार ने बहुत अधिक फसल का अनुमान लगाते हुए वास्तव में निर्यात की अनुमति दी, और फिर एक या दो महीने के भीतर, उन्हें निर्यात पर प्रतिबंध लगाना पड़ा. क्योंकि ज़मीन पर फसल वास्तव में उतनी बड़ी नहीं दिखी जितनी वे अनुमान लगा रहे थे. ऐसे में मुझे लगता है कि हम इस साल फिर भी उसी स्थिति में हैं.
अजय गोयल की माने तो पिछले साल और इस साल दोनों ही खरीद लक्ष्य पूरे नहीं हुए. इस साल का लक्ष्य 36 मिलियन टन निर्धारित किया गया था, लेकिन लगभग 26 मिलियन टन की खरीद की गई. आदर्श रूप से, बाजार की कीमतें सरकार के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से लगभग 3-4 फीसदी कम होनी चाहिए, लेकिन वे वर्तमान में 4-5 फीसदी अधिक हैं. उन्होंने संकेत दिया कि एक नई सरकार गेहूं के आयात के संबंध में नीतिगत बदलाव ला सकती है.
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