चुनावी सीजन में प्याज की निर्यात बंदी को 31 मार्च से आगे जारी रखने के फैसले ने किसानों को परेशानी में डाल दिया है. नए फैसले के बाद बाजार में दाम उठने की बजाय गिर गए हैं. हालात यह है कि किसान लागत भी नहीं निकाल पा रहे हैं. देश के सबसे बड़े प्याज उत्पादक महाराष्ट्र की कई मंडियों में इसका दाम 100 और 200 रुपये प्रति क्विंटल रह गया है. इसका मतलब एक और दो रुपये किलो. इसलिए किसान सरकार से काफी नाराज हैं. किसानों का कहना है कि सरकार सिर्फ 5 लाख टन प्याज खरीदने की घोषणा करके किसानों को बरगला रही है. जबकि देश में 255 लाख टन प्याज होने का अनुमान है. इसलिए सबको समझ में आता है कि यह सिर्फ लीपापोती है. इतने उत्पादन में सिर्फ 5 लाख टन की खरीद से क्या होगा. इससे बाजार में दाम नहीं बढ़ेगा. सरकार एक्सपोर्ट खोले और प्याज के दाम को बार-बार गिराने का काम बंद करे.
दाम इतना कम मिल रहा है कि खेत से निकालने और बाजार तक पहुंचाने का खर्च भी नहीं निकलेगा. महाराष्ट्र एग्रीकल्चरल मार्केटिंग बोर्ड के एक अधिकारी ने बताया कि 26 मार्च को धुले और अहमदनगर की जामखेड़ मंडी में प्याज का न्यूनतम दाम सिर्फ 100 रुपये प्रति क्विंटल रहा. राहता, सिन्नर और सोलापुर मंडी में 200 रुपये क्विंटल, अहमदनगर की पाथर्डी मंडी में 300 और येवला मंडी में सिर्फ 400 रुपये प्रति क्विंटल रहा. यह लागत से बहुत कम दाम है. अधिकांश बाजारों में दाम का यही हाल है.
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महाराष्ट्र कांदा उत्पादक संगठन के अध्यक्ष भारत दिघोले का कहना है कि केंद्र सरकार के अधिकारी बताएं कि लागत कितनी आती है. तब पता चलेगा कि किसान सिर्फ इतनी कम कीमत पर प्याज बेचकर कितने घाटे में है. हमारी जानकारी यह है कि 2014 में ही महाराष्ट्र में प्याज की उत्पादन लागत 724 रुपये प्रति क्विंटल आती थी. यह सरकारी रिपोर्ट के आधार पर कह रहा हूं. अब 10 साल में यह लागत बढ़कर डबल से भी ज्यादा हो चुकी है. सरकार बताए कि किसान कब तक घाटे में खेती करेंगे. ज्यादातर किसानों को न्यूनतम दाम से ही संतोष करना पड़ता है.
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