रबी सीजन का प्याज अब ज्यादातर किसानों के खेतों में तैयार हो गया है और वो उसे बाहर निकालने में लगे हैं. इसकी वजह से मंडियों में आवक बढ़ने लगी है. व्यापारी इसे किसानों से खरीद कर स्टोर कर रहे हैं, ताकि लोकसभा चुनाव के बाद अगर निर्यातबन्दी खत्म हो तब मुनाफा कमाया जा सके. जिन किसानों के पास प्याज को रखने की जितनी क्षमता है वो भी उतनी स्टोर करने की कोशिश कर रहे हैं. जिससे कि आगे चलकर निर्यातबन्दी की वजह से हुए घाटे की भरपाई की जा सके. महाराष्ट्र देश का लगभग 43 प्रतिशत प्याज उत्पादन करता है और राज्य के कुल उत्पादन में लगभग 65 प्रतिशत का योगदान रबी सीजन के प्याज का होता है. यही प्याज स्टोर करने लायक होता है.
केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अनुसार प्याज का उत्पादन इस साल पूरे देश में कम हो सकता है. जिसमें सबसे ज्यादा कमी महाराष्ट्र में 34.31 लाख टन की हो सकती है. इसी प्रकार कर्नाटक में 9.95 लाख टन, आंध्र प्रदेश में 3.54 लाख टन और राजस्थान में 3.12 लाख टन कम रहने का अनुमान लगाया गया है. इस कारण आगे चलकर प्याज महंगा हो सकता है. इसलिए किसान इसे स्टोर कर रहे हैं. क्योंकि इस समय प्याज की जितनी आवक होनी चाहिए वैसी नहीं दिख रही है.
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इस बीच निर्यातबन्दी जारी रहने के बावजूद अब कई मंडियों में न्यूनतम दाम में सुधार देखा जा रहा है. नागपुर जिले की हिंगणा मंडी में 28 मार्च को प्याज का न्यूनतम दाम 1700 और अधिकतम 2000 रुपये प्रति क्विंटल रहा. पुणे जिले की मंचर मंडी में 9838 क्विंटल प्याज बिकने के लिए आया. इसके बावजूद न्यूनतम दाम 1000 रुपये प्रति क्विंटल रहा. इसी प्रकार पुणे की ही खेड़ चाकण मंडी में न्यूनतम दाम 1200 रुपये प्रति क्विंटल रहा. किसानों का कहना है जब तक उन्हें 3000 रुपये क्विंटल का दाम नहीं होगा तब तक फायदा नहीं होगा.
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