अब प्याज की खेती फायदे का सौदा बन चुकी है. साल भर इसके रेट रॉकेट बने रहते हैं. यहां तक कि किसान इस पछतावे में रहते हैं कि अगर उनके पास और भी उपज होती तो अच्छा होता. ऐसा इसलिए क्योंकि खपत के मुताबिक उपज नहीं निकल पा रही है. दूसरा कारण यह भी है कि उपज खराब जल्दी हो जा रही है जिससे मार्केट में सप्लाई कम पड़ जाती है. इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए वैज्ञानिक प्याज की ऐसी किस्में बना रहे हैं या बना चुके हैं जो कई समस्याओं का हल करेगी. ऐसी किस्में मार्केट में आ चुकी हैं. बस किसानों को इन किस्मों की खेती शुरू करने की जरूरत है. आइए इन किस्मों के बारे में जान लेते हैं.
प्याज की यह आकर्षक किस्म है जो दिखने में एकदम लाल और ग्लोब आकार की है. यह किस्म डबल्स और बोल्टर्स से मुक्त है. इस प्याज की सबसे बड़ी खासियत है कि इसे 2-3 महीने तक स्टोर रख सकते हैं. इसकी पैदावार भी बंपर है. 207 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज ले सकते हैं. मात्र 100-105 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है. इसकी खेती खरीफ सीजन में उपयुक्त होती है. इसे जबलपुर, रायपुर, चिंपलिमा, अकोला और झालावाड़ में खेती के लिए उपयुक्त बताया गया है. इसे आईसीएआर-डायरेक्टरेट ऑफ अनियन एंड गार्लिक रिसर्च राजगुरुनगर, पुणे महाराष्ट्र में विकसित किया गया है.
यह प्याज की अधिक उपज देने वाली किस्म है. इसमें प्याज का रंग सुर्ख लाल और आकार ग्लोब की तरह होता है. यह किस्म भी डबल्स और बोल्टर्स बीमारी से मुक्त है. इस बीमारी में प्याज के कंद नहीं बनते बल्कि उसकी जगह पर फूल आ जाते हैं और बीज बनने लगते हैं. प्याज की यह किस्म 217 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उपज देती है. इस किस्म को तैयार होने में 105-110 दिनों का समय लगता है. इस किस्म की खेती खरीफ सीजन में की जाती है. इसे जबलपुर, रायपुर, चिंपलिमा, अकोला और झालावाड़ के लिए विकसित किया गया है. इसे आईसीएआर-प्याज और लहसुन रिसर्च इंस्टीट्यूट, पुणे ने बनाया है.
ये भी प्याज की अधिक उपज देने वाली किस्म है. इसके कंद लाल और आंडाकार के होते हैं. इसमें भी बोल्टर्स और डबल्स की समस्या नहीं आती. यह किस्म जल्द तैयार होने वाली है. रबी सीजन में इस प्याज की खेती होती है. रबी सीजन में इसके तने आराम से और अपने आप टूट जाते हैं जिससे कंद के खराब होने की आशंका नहीं रहती. यह किस्म 278 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज देती है. इसे 5-6 महीने तक स्टोर किया जा सकता है. इसे जूनागढ़, नासिक, राहुरी और पुणए के इलाके में उगाया जा सकता है. इसे भी पुणे स्थित प्याज और लहसुन रिसर्च इंस्टीट्यूट ने तैयार किया है.
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