तिलहन फसलों में अहम स्थान रखने वाले सरसों की सरकारी खरीद बंद हो चुकी है. लेकिन, इस साल इसका दाम बढ़ने का नाम नहीं ले रहा है. अब भी किसान इसे एमएसपी से कम दाम पर बेचने के लिए मजबूर हैं. इसके सबसे बड़े उत्पादक राजस्थान की ज्यादातर मंडियों में अधिकतम दाम भी सरकारी भाव से कम ही है. वजह यह है कि भारत में खाद्य तेलों का रिकॉर्ड आयात हो रहा है. ऐसे में घरेलू तेलों की वैल्यू घट गई है. जबकि सेहत के लिहाज से पाम ऑयल ठीक नहीं माना जाता है. बहरहाल, राज्य की ज्यादातर मंडियों में 3,650 से लेकर 5300 रुपये प्रति क्विंटल तक का भाव चल रहा है. जबकि रबी मार्केटिंग सीजन 2023-24 के लिए सरसों का एमएसपी 5450 रुपये प्रति क्विंटल तय है.
पिछले तीन साल में यह पहली बार है जब सरसों उत्पादक किसानों को एमएसपी से कम दाम मिल रहा है. दरअसल, इसकी दो बड़ी वजह है. पहली यह कि खाद्य तेलों पर आयात शुल्क अब न के बराबर रह गया है इससे कारोबारियों को इंपोर्ट सस्ता पड़ रहा है और दूसरी बात यह कि नियमों के तहत सरसों की जितनी सरकारी खरीद होनी चाहिए थी उसकी सिर्फ एक तिहाई ही हुई है. ऐसे में व्यापारी किसानों की मजबूरी का फायदा उठा रहे हैं. उन्हें कम दाम दे रहे हैं और जब सरकारी खरीद नहीं हो रही है तो फिर किसान घाटा सहकर बेच रहे हैं.
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अभी हम राजस्थान में सरसों के दाम की बात कर रहे हैं, इसलिए राजस्थान में हुई सरसों खरीद के आंकड़ों को समझते हैं. राजस्थान में इस साल एमएसपी पर सिर्फ 3,91,508.23 मीट्रिक टन सरसों खरीदा गया है. जबकि नियमों के मुताबिक यहां पर 15 लाख मीट्रिक टन की खरीद होनी चाहिए थी. देश के कुल सरसों उत्पादन में राजस्थान की हिस्सेदारी 48 फीसदी से अधिक है, लेकिन यहां के किसान उचित दाम के लिए तरस रहे हैं. एक तरफ हम खाद्य तेलों के बड़े आयातक हैं तो दूसरी ओर अपने देश में तिलहन फसलों की खेती करने वालों को सही दाम नहीं मिल पा रहा है.
(यह सभी मंडी भाव ई-नाम से लिए गए हैं)
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